स्वतंत्रता के बाद गौरक्षा और सामाजिक समरसता के लिये जीवन समर्पित किया

13 सितम्बर 1984 सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संत स्वामी ब्रह्मानंद का निधन

Update: 2023-09-12 20:14 GMT

रमेश शर्मा

भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में जितना योगदान सार्वजनिक संघर्ष करने वाले राजनेताओं का है उससे कहीं अधिक उन संतों का भी है जिन्होंने सार्वजनिक संघर्ष में तो सहभागिता की और जेल गये पर अपना पूरा जीवन सामाजिक और साँस्कृतिक जागरण के लिये समर्पित किया। स्वामी बह्मानंद जी ऐसे ही संत थे जो 1930 और 1942 के आँदोलन में तो जेल गये ही थे, स्वतंत्रता के बाद गौरक्षा आँदोलन में भी जेल गये।

स्वामी ब्रह्मानंद का जन्म 4 दिसम्बर 1894 में उत्तर प्रदेश के हमीर पुर जिले की राठ तहसील के अंतर्गत बरहरा नामक गांव में हुआ था। पिता मातादीन लोधी एक साधारण किसान थे। और माता जशोदाबाई भी एक साधारण गृहिणीं लेकिन परिवार सनातन संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा था। बालक का नाम शिवदयाल रखा गया। घर में संतों का आना जाना था और गाँव के मंदिर में रामायण पाठ होता था। बालक की रुचि रामायण पाठ में थी। अनेक चौपाइयाँ कण्ठस्थ हो गईं थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हमीरपुर में ही हुई। इसके पश्चात् उन्होंने घर आने वाले संतों और पुरोहितों के सानिध्य में रामायण, महाभारत एवं गीता का अध्ययन करने लगे। गाँव की परंपरा के अनुसार केवल नौ वर्ष की आयु में उनका विवाह पास के गाँव में किसान गोपाल दास की पुत्री राधाबाई से हो गया। समय के साथ एक पुत्र और एक पुत्री के पिता बने। लेकिन उनका चित्त न परिवार में लगा न कृषि में। वे आध्यात्मिकता की खोज के लिये चौबीस वर्ष की आयु में घर से चल दिये। अनेक तीर्थस्थलों पर गये। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी आदि होकर हरिद्वार पहुँचे। जहाँ सन्यास की दीक्षा ली और ब्रह्मानंद नाम मिला। यहाँ रहकर उन्होंने वेदों और उपनिषद का अध्ययन किया। और धर्म प्रचार के लिये भारत यात्रा पर निकल पड़े। धर्म प्रचार के साथ सामाजिक जागरण और शिक्षित होने का संदेश देते थे। उन्होंने शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े बुन्देलखण्ड में शिक्षा की अलख जगाई और हमीरपुर के राठ में वर्ष 1938 में ब्रह्मानंद इंटर कॉलेज़, 1943 में ब्रह्मानंद संस्कृत महाविद्यालय तथा 1960 में ब्रह्मानंद महाविद्यालय की स्थापना की। इसके अलावा शिक्षा प्रचार के लिए अन्य कई शैक्षणिक संस्थाओं के प्रेरक और सहायक रहे। भारत यात्रा के दौरान ही पंजाब के भटिंडा में उनकी भेंट गांधी जी से हुई। गाँधी जी से भेंट के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम स्वदेशी आँदोलन से भी जुड़ गये।

स्वामी जी के आग्रह पर गाँधीजी हमीरपुर के राठ क्षेत्र में पधारे। सभा हुई और स्वतंत्रता आँदोलन तेज करने का संकल्प लिया गया। इस संकल्प के साथ क्षेत्र में सविनय अवज्ञा, नमक आंदोलन में भाग लिया और भारत छोड़ों आँदोलन में जेल गये।

स्वतंत्रता के बाद भी समाज में कुरीतियों के निवारण और स्वत्व जागरण का उनका अभियान तेज हुआ। इसके साथ वे गौरक्षा का संकल्प दिलाते। गौरक्षा को लेकर उन्होंने अनेक स्थानों पर सभाएँ कीं और माँग पत्र प्रस्तुत किये और 1966 में देश व्यापी गौरक्षा आँदोलन आरंभ हुआ तो ब्रह्मानंद जी की उसमें विशेष सक्रियता रही। उन्होंने पूरे बुन्देलखण्ड क्षेत्र में घूमकर संतों को एकत्र किया और प्रदर्शन के लिये दिल्ली पहुँचे। यह इतिहास प्रसिद्ध गौरक्षा आँदोलन करपात्री जी महाराज के संयोजन में हुआ था । इस आँदोलन में लाठीचार्ज हुआ गोली चली। ब्रह्मानंद जी बंदी बनाकर तिहाड़ जेल भेज दिये गये। रिहाई के बाद पुन: अपने क्षेत्र में सक्रिय हुये। 1967 में भारतीय जनसंघ के आग्रह पर उन्होंने हमीरपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी होकर संसद पहुँचे। स्वतंत्रता के बाद वे पहले संत थे जो संसद में पहुँचे थे। उन्होंने संसद में गौरक्षा पर एक घंटे का व्याख्यान दिया जिसे पूरी संसद ने ध्यान से सुना।

संन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी जी ने पैसा न छूने का प्रण लिया था। उन्होंने जीवन भर इस प्रण का पालन किया। और कोई निजी संपत्ति नहीं बनाई। सांसद के रूप में जो मानदेय मिलता था वह धन छात्र-छात्राओं की पढ़ाई में सहायता, समाज सुधार और शिक्षा के प्रसार के कार्य में ही लगाते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और राष्ट्र को ही अर्पित कर दिया था। अपने इन्हीं सेवा समर्पण के साथ 13 सितम्बर 1984 में उन्होंने संसार से विदा ली। बुन्देलखण्ड की गणना एक पिछड़े क्षेत्र में हुआ करती थी लेकिन स्वामी ब्रह्मानंद जी ने अपने जीवन में अनेक शिक्षण संस्थाएँ स्थापित कीं। इसके लिये पूरे हमीरपुर और इसके आसपास के जन जीवन में वे आज भी लोकप्रिय हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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