भारत में लगभग हर महीने किसी न किसी लोक पर्व, मेला, महोत्सव, धार्मिक यात्राओं का आयोजन होता है। साथ ही महिलाओं द्वारा कई व्रत भी रखे जाते हैं। उन्हीं व्रतों में एक खास व्रत है-अहोई अष्टमी। अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। संतान के सुख-सौभाग्य और लंबी आयु का यह व्रत महिलाएं बहुत आस्था से रखती हैं। कई नि:संतान महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। यह व्रत भी करवा चौथ की तरह निर्जला व्रत है। अहोई अष्टमी को भगवान महादेव और माता पार्वती के साथ-साथ भगवान गणेश और कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है। सुबह से व्रत रख कर शाम को प्रदोष काल में मां पार्वती के पावन स्वरूप मानी जाने वाली अहोई माता की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कथा सुनते समय हाथ में सात प्रकार का अनाज व कुछ दक्षिणा रखनी चाहिए। कुछ जगहों पर इस अनाज को गाय को खिलाने और दक्षिणा पंडित जी को या अनाज व दक्षिणा घर की बुजुर्ग महिला को देकर आशीर्वाद लेने का चलन है। अहोई अष्टमी व्रत की शुुरूआत भी भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना से की जाती है। व्रत की कथा आप खुद भी पढ़ सकते हैं। किसी बुजुर्ग महिला से भी सुन सकते हैं या फिर मंदिर में पंडितजी से भी सुन सकते हैं। कोशिश होती है कि जब आप व्रत की कथा सुन रही हों तो बच्चों को भी अपने साथ पूजा में बिठाएं। उनके लिए हो रही पूजा का श्रवण उन्हें भी कराएं। मान्यता है कि इस दिन व्रती महिलाओं को मिट्टी से जुड़ा कोई काम नहीं करना चाहिए। व्रती महिलाओं के लिए चाकू व कैंची का प्रयोग भी वर्जित माना गया है। कोशिश करें कि इस दिन अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें व किसी को डांट-फटकार न लगाएं। इस दिन तामसिक चीजों का सेवन न करें। व्रत वाले दिन में सोएं नहीं बल्कि बच्चों के साथ ज्यादा व अच्छा समय बिताने का प्रयास करें। अहोई अष्टमी की पूजा-विधान में व्रत वाले दिन महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठ जाती हैं। उसके बाद स्नान कर पूजा स्थल की सजावट की तैयारी शुरू करती हैं। पूजा के लिए अहोई माता की तस्वीर को रखा जाता है। विधान है कि माता की तस्वीर के साथ ही सही की भी तस्वीर होनी चाहिए। यह कांटेदार जीव होता है जो कि मां अहोई के नजदीक बैठता है। अहोई माता की तस्वीर के पास आटे की चकोर रंगोली भी बनाई जाती है, साथ ही पूजा का कलश भी रखा जाता है। कलश के किनारे को हल्दी से रंगा जाता है। पूजा में साफ स्थान से लाई गई दूब घास भी रखी जाती है। इस दिन माता को लाल व सफेद रंग के पुष्प अर्पित किए जाते हैं। अहोई माता को चंदन का टीका लगाया जाता है। यदि आसपास पीपल का पेड़ हो तो आप पेड़ के नीचे दिया भी जलाकर रख सकते हैं। पूजा-स्थल को सजाने के बाद कथा का कार्यक्रम शाम को होता है। कथा सुनने के बाद अहोई माता को कई जगह खीर प्रसाद का तो कई जगहों पर आटा व सूजी के हलवे का भोग लगाने का चलन है। फिर चंद्रमा को अर्घ्य देकर तारों को देखकर उपवास पूर्ण किया जाता है। यदि सक्षम हैं तो गरीब, अनाथ व बेघर बुजुर्गों को इस दिन भोजन कराएं।