घर वापसी अभियान से नाराज कट्टरपंथी ने मारी थी गोली

23 दिसम्बर 1926 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी स्वामी श्रृद्धानंद का बलिदान पर विशेष

Update: 2023-12-22 21:16 GMT

रमेश शर्मा

आर्यसमाज के प्रखर वेदज्ञ वक्ता, उच्चकोटि के अधिवक्ता, ओजस्वी वक्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्राँतिकारियों की एक पूरी पीढ़ी तैयार करने वाले स्वामी श्रृद्धानंद की हत्या केवल एक धर्मान्ध कट्टरपंथी द्वारा की गई हत्या भर नहीं थी बल्कि वह एक ऐसे षड्यंत्र का अंग था जो भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता और धर्मान्तरण के लिये विवश किये गये हिन्दुओं की घर वापसी अभियान को रोकने का था।

जीवनवृत: उनका जन्म 22 फरवरी 1856 को पंजाब के जालंधर जिले के अंतर्गत ग्राम तालवान में हुआ था । उनके पिता नानकचंद विज ब्रिटिश सरकार में पुलिस अधिकारी थे। बचपन में उनका नाम बृहस्पति मुंशीराम विज रखा गया। लेकिन वे मुंशीराम नाम से ही प्रसिद्ध हुये। पिता की पदस्थापना अलग-अलग स्थानों पर होती रही इस कारण उनकी शिक्षा घर पर ही हुई। फिर आरंभिक शिक्षा जालंधर में हुई। उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज और प्रयागराज के म्यो कॉलेज से भी पढ़ाई की जबकि वकालत की परीक्षा लाहौर से उत्तीर्ण की। वे लाहौर में ही वकालत करने लगे। 1857 की क्रांति के समय पिता की पदस्थापना जालंधर में थी। अंग्रेजों के अत्याचार उनके पिता ने अपनी आँख से देखे थे। इसके साथ पुलिस बल के भीतर भारतीय जवानों के साथ अपमान जनक व्यवहार भी। क्रांति का भले दमन हो गया था फिर भी पुलिस बल के उन अधिकारियों के प्रति अंग्रेजों को सदैव अविश्वास रहा जो घर के भीतर परंपराओं से जुड़े रहे । ऐसे अनेक प्रसंग बालक मुंशीराम ने अपने पिता से सुने थे। इस कारण स्वत्व का बोध उन्हें बचपन से ही हो गया था। उनके जीवन में परिवर्तन का दूसरा कारण एक पादरी द्वारा एक बालिका के साथ दरिन्दगी की घटना भी बनी। उन दिनों अंग्रेजों द्वारा छोटी आयु की भारतीय लड़कियों के साथ दुराचार सामान्य बात थी जिसकी कहीं कोई रिपोर्ट नहीं होती थी। और न किसी पर कोई कार्रवाई होती। उनके परिवर्तन का तीसरा निमित्त उनकी पत्नी बनी उनका विवाह शिवा देवी से हो गया था। तब उनकी आयु 21 वर्ष थी। पत्नी के आग्रह पर घर में सत्यार्थ प्रकाश पत्रिका आना आरंभ हुई। यह पत्रिका स्वामी दयानंद सरस्वती के संपादन में प्रकाशित होती थी। पत्नी के समर्पण और पादरी के बलात्कार की घटना उल्लेख स्वयं श्रृद्धानंद जी ने अपनी आत्मकथा 'कल्याण मार्ग का पथिकÓ में किया है । और चौथी घटना स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रवचन रहे । यह घटना उत्तर प्रदेश के बरेली में 1889 की है तब उनकी आयु 23 वर्ष की थी । स्वामी दयानंद सरस्वती का आगमन बरेली में हुआ । सत्यार्थ प्रकाश के कारण उनका प्रभाव तो था ही । पत्नी के आग्रह पर मुंशी राम प्रवचन सुनने गये। और आर्य समाज से जुड़ गये। लौटकर जालंधर आये एवं आर्य समाज के प्रचार प्रसार में लग गये । वे जालंधर आर्य समाज के अध्यक्ष भी बने।

1901 में उन्होंने देश का पहला गुरूकुल काँगड़ी की स्थापना की । बच्चो से 1500 रुपये एकत्र कर द अफ्रीका में भारतीय नागरिकों के अधिकारों का संघर्ष कर रहे गाँधी जी को भेजे। समय के साथ वे काँग्रेस के सदस्य बने तथा स्वतंत्रता आंदोलन में लग गये। तभी पत्नी का निधन हो गया । पत्नी के निधन के बाद 24 अप्रैल 1917 में उन्होनें संन्यास लिया और विधिवत् स्वामी श्रृद्धानंद सरस्वती बने। दिल्ली की जामा मस्जिद क्षेत्र में उनका भाषण और उनके द्वारा धर्मान्तरित बंधुओं से स्वधर्म में वापसी के अभियान से मिशनरी और मुस्लिम लीग, तथा अन्य मुस्लिम संगठनों के लोग उनसे नाराज हो गये। दूसरा खिलाफत आँदोलन को असहयोग आँदोलन से जोड़ने का विरोध करने पर काँग्रेस और गाँधी जी से भी उनकी दूरियाँ बढ़ीं। तभी केरल के मालाबार से हिन्दुओं के सामूहिक नर संहार की खबर आई। स्वामी श्रृद्धानंद जी, डॉ. मुँजे और डा केशव हेडगेवार के साथ मालावार गये। वे चाहते थे कि कांग्रेस इस हिंसा की निंदा करे पर काँग्रेस और गाँधी जी इसके लिये तैयार नहीं हुये। परिणाम स्वरूप उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और राष्ट्र भाव के प्रचार में लग गये। उनके द्वारा बड़ी संख्या में मेवाती और मलकान राजपूतों की घर वापसी कराने से कुछ धर्माध लोग बुरी तरह चिढ़ गये और उनकी हत्या का षड्यंत्र करने लगे। 23 दिसम्बर 1926 का दिन था। स्वामी जी दिल्ली में चाँदनी चौक में नया बाजार स्थित आवास में विश्राम की तैयारी कर रहे थे तभी एक अब्दुल रशीद नामक युवक आया। उसने स्वामी जी से धर्म पर चर्चा की अनुमति मांगी और भीतर आ गया। वह पिस्तौल छिपाकर लाया था। भीतर आते ही उसने गोलियों की बौछार कर दी। स्वामी जी की आयु सत्तर वर्ष थी। वे अपनी निर्जीव देह को छोड़कर परम ज्योति में विलीन हो गए।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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