हिन्दी सिनेमा में नायिका का पानी में नहाना और उसके प्रेमी का उसे देख कर गीत गाना एक बहुत आम सी बात है। मगर ध्यान देने लायक बात यह है कि उसी नायिका को देख कर शैलेन्द्र फ़िल्म 'संगमÓ में लिखते हैं, 'मेरे मन की गंगा, और तेरे मन की जमुना का, बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं।Ó और उसी स्थिति में फ़िल्म 'तीन चोरÓ के लिये राजेन्द्र कृष्ण लिखते हैं, 'नदिया के पानी में, हाय रे हाय / नदिया के पानी में / जवानी देखो आग लगाती है / बदन मल-मल के नहाती है।Ó यानी कि बात कहने का सलीक़ा बहुत महत्वपूर्ण है। क्लास में पढ़ाई जाने वाली मानव शरीर की संरचना और ब्लू फ़िल्म का वीडियो चाहे एक ही विषय के बारे में चर्चा कर रहे हों, उनका उद्देश्य भिन्न होता है। पहले का उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना है तो दूसरे का उद्देश्य मज़ा लेना है।
भोजपुरी फ़िल्में तो अश्लीलता के लिये बदनाम हैं। यही बिहार की भाषा भी है। मगर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बोलते हुए इस बात का ख़ास ख्याल रखना होगा कि वे भोजपुरी सिनेमा में द्विअर्थी संवाद नहीं बोल रहे हैं; बल्कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर विधानसभा और विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों के बीच गंभीर मुद्दे पर अपनी बात रख रहे हैं। पत्रकार अविनाश राय ने एक वेबसाइट पर लिखा है, 'जिस बिहार के भोजपुरी गानों के बोल में 'गमछा बिछाकरÓ सब कुछ मांग लिया जाता है, एसी से लेकर कूलर तक को लहंगा और चोली में लगा दिया जाता है, जहां सब कुछ 'फटाफट खोलकरÓ दिखाने की मांग की जाती है, लहंगे को उठाने के लिए रिमोट तक का ईजाद कर लिया गया है, खाली चुम्मा से काम नहीं चलता है, वहां पर सेक्स एजुकेशन जैसे जटिल विषय और खास तौर से उसमें भी पुल आउट मेथड जैसे विषय को समझाने के लिए नीतीश कुमार ने सीधे सरल शब्दों का सहारा ले लिया तो उसमें इतनी हाय तौबा क्यों।Ó
भाई अविनाश राय वही भूल कर रहे हैं जिसकी ओर मैंने ऊपर इशारा किया है। नीतीश कुमार किसी घटिया भोजपुरी फ़िल्म में अभिनय नहीं कर रहे थे। वे विधान सभा जैसे प्रतिष्ठित स्थल में अपनी बात रख रहे थे जहां असंसदीय शब्दों का प्रयोग वर्जित है। यहां तो नीतीश कुमार हंसते-मुस्कुराते और मज़ा लेते अपने हाथों से अश्लील मुद्राएं बना कर विधान सभा के अध्यक्ष, सदस्यों और पत्रकारों को निगाहें मटका-मटका कर, मज़े ले-लेकर और हाथों से संभोग-क्रिया प्रदर्शित करते हुए अंतिम पलों में बाहर निकाल लेने की प्रक्रिया समझा रहे थे। मुझे याद नहीं पड़ता कि इससे पहले कभी किसी भी मुख्यमंत्री ने इतने भोंडे तरीके से सेक्स पर विधानसभा अथवा विधान परिषद में अपनी बात रखी हो। वैसे नीतीश कुमार कोई बहुत बूढ़े भी नहीं हैं। वे केवल 72 वर्ष के हैं। मगर उनका व्यवहार पिछले कुछ समय से सठियाया हुआ सा महसूस होने लगा है। वे मतिभ्रम का शिकार होते दिखाई देते हैं। मैंने उन्हें विधान सभा में भाषण देते हुए सुना और देखा। वे बार-बार अपने पेट पर दोनों हाथ ऊपर से नीचे फिराते हैं जैसे कि आत्मविश्वास की बहुत कमी हो।
हम यह भी नहीं कह सकते कि नीतीश कुमार जी की जुबान फिसल गई थी या उनसे गलती हो गई थी क्योंकि उन्होंने जो शब्द विधानसभा में बेहूदगी से इस्तेमाल किये, वही शब्द विधान परिषद में उसी तरह आंखें मटका-मटका कर मुंह में पानी भर-भर कर इस्तेमाल किये। ध्यान देने लायक बात यह है कि नीतीश कुमार ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हुई है। यदि उन्होंने विश्वविद्यालय में डॉक्टरी की पढ़ाई की होती तो शायद उन्हें विधानसभा में सेक्सॉलॉजी का लेक्चर देने की छूट मिल सकती थी।
ज़ाहिर है कि नीतीश कुमार की इस बेजा हरकत पर पूरे देश में हो हल्ला तो मचना ही था। उनके इंडी अलाएंस में तो भयानक चुप्पी छा गई। सत्तारूढ़ दल पर बंदूक साधे नेताओं को जैसे अचानक साँप सूंघ गया हो। उन्होंने कान पर मोटे-मोटे हेडफ़ोन लगा लिये थे ताकि उन्हें नीतीश कुमार की आवाज़ सुनाई ही न दे और नीतीश के समर्थन में ऐसी कमज़ोर दलीलें सुनने को मिल रही थीं कि उन पर टिप्पणी करते हुए भी अजीब-सा महसूस होता है। नीतीश के उप-कप्तान तेजस्वी यादव ने तो अपने सेक्स टीचर का बचाव किया ही किया क्योंकि उन्हें गठबंधन सरकार को बचाना है; तेजस्वी की माताश्री और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री रबड़ी देवी ने भी नीतीश कुमार का बचाव करते हुए कहा, 'गलती से उनके मुंह से निकल गया। उन्होंने इस बयान के लिए सदन में माफी मांगी है। विपक्ष को सदन चलने देना चाहिए।Ó
कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो एक तरह से पूरे बिहारी समाज को लपेटे में ले लिया। उनका मानना है कि बिहारी जब इक_े बैठते हैं तो हंसी मज़ाक में बहुत कुछ कह लेते हैं। ज़रूरी नहीं कि हमें उनकी बात समझ में आए। मुख्यमंत्री ने भी मज़ाक में कुछ कह दिया होगा।
ज़ाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी भला ऐसे सुनहरे अवसर को क्यों हाथ से जाने देती। बीजेपी की महिला विधायक भागीरथी देवी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि हम लोगों ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का काम किया था लेकिन उन्होंने अब सदन में गंदा काम किया है। भागीरथी देवी ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री जी का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है उन्हें इलाज की जरूरत है। भागीरथी देवी ने कहा कि नीतीश कुमार भाषण तब ही देते हैं जब वह गांजा पीते हैं। प्रशांत किशोर ने कहा कि आप कल की बात मत कीजिए, कई महीनों से नीतीश कुमार बोलना कुछ चाहते हैं, बोल कुछ जाते हैं। जो उन्होंने फर्टिलिटी पर बात कही है, स्वतंत्र भारत के इतिहास में कोई सिटिंग मुख्यमंत्री इस तरह की भाषा और इस तरह के उदाहरण का प्रयोग विधानसभा के पटल पर करे ऐसा आज तक कोई उदाहरण नहीं दिखता। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे बयान दिखाते हैं कि नीतीश कुमार की मनोस्थिति और मनोदशा क्या है। नीतीश कुमार को या तो समझ नहीं है या वो डेल्यूजनल हो गए हैं। नीतीश कुमार ने जब देखा कि पानी सिर से ऊपर चढ़ता जा रहा है तो उन्होंने विधानसभा में माफ़ी मांग ली। माफ़ी मांगते हुए भी वे किसी गली मुहल्ले में लड़ने वाले व्यक्ति की तरह अपने को कोस रहे थे। माफ़ी मांगने में भी गंभीरता नहीं दिखाई दे रही थी।
सदन में नीतीश के विवादित बयान के बाद बीजेपी की महिला विधान पार्षद निवेदिता सिंह फूट-फूट कर रोने लगीं। उन्होंने सदन के बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने आज सदन में जिस तरह का बयान दिया है, उससे महिलाएं शर्मसार हुई हैं। मैं सदन में उनका प्रवचन सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाई और बाहर आ गई। नीतीश कुमार के बयान ने बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश की महिलाओं को शर्मसार किया है। अभी विवादग्रस्त टिप्पणी का शोर थमा भी नहीं था कि अगले ही दिन नीतीश कुमार ने विधान सभा में वरिष्ठतम सदस्य जीतनराम माँझी के साथ तू-तड़ाक वाली बातचीत कर दी। टीवी समाचार में साफ़ दिखाया गया कि 80 वर्षीय जीतनराम माँझी बहुत सलीके से माननीय मुख्यमंत्री कह कर अपनी बात सदन में कह रहे थे। मगर न जाने क्यों नीतीश कुमार भड़क गये। उन्होंने कहा कि यह मेरी गलती थी कि मैंने इस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना दिया था। दो महीने में ही मेरी पार्टी के लोग कहने लगे कि कुछ गड़बड़ है इन्हें हटाओ। उसके बाद मैं फिर सीएम बन गया। वे (जीतन राम मांझी) कहते रहते हैं कि वह भी मुख्यमंत्री थे। वह मेरी मूर्खता के कारण मुख्यमंत्री बने थे। नीतीश के आपा खोने के बाद उनके पास बैठे उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने उन्हें रोकने की कोशिश की। नीतीश इतने गुस्से में थे कि उन्होंने तेजस्वी के निवेदन को दरकिनार कर जीतनराम माँझी के लिए तू-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल किया। माँझी ने सदन से बाहर आकर नीतीश कुमार के व्यवहार पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि मैं नीतीश कुमार से उम्र में चार साल बड़ा हूं। ये ही नहीं मैं 1980 में विधायक बना था। नीतीश कुमार 1985 में विधायक बने थे। मैं उम्र और राजनीति दोनों में ही उनका सीनियर हूं। वो अपनी मर्यादा को लांघ रहे हैं। वह कह रहे हैं कि मैं गवर्नर बनना चाहता हूं, यह बिल्कुल गलत है। मैं दलित हूं इसलिए नीतीश कुमार ने मेरे लिए तू तड़ाक की भाषा का उपयोग किया।
वे यहां तक कह गये कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खाने में विषैला पदार्थ इसलिए दिया जा रहा है कि वे जल्दी से जल्दी नाकाबिल साबित हो जाएं। माँझी ने कहा कि उन्हें गद्दी से हटाकर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने की जल्दबाजी में हैं, इसलिए उनकी पार्टी से बने विधानसभा अध्यक्ष भी आँख बंद कर गलत बातें होने दे रहे हैं। अंतिम उद्देश्य मुख्यमंत्री की छवि खराब करना ही है। सवाल यह उठता है कि कल तक यही इंसान इंडी गठबंधन के माध्यम से भारत का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहा था। मगर इनके पिछले दो दिनों के व्यवहार ने इनकी मानसिक स्थिति पर ढेरों सवाल खड़े कर दिये हैं। राहुल गांधी शायद चुपके-चुपके मुस्कुरा रहे होंगे। उन्हें यह तो साफ़ महसूस हो रहा होगा कि उनके प्रधानमंत्री पद की रेस में से एक प्रतिद्वंदी बाहर हो गया है। मगर यह भी सच है कि ज़िम्मेदार पदों पर आसीन व्यक्तियों का अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखना बहुत आवश्यक है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं एवं लंदन में रहते हैं)