भारत बनाम इंडिया

वीरेंद्र सिंह परिहार

Update: 2023-09-14 20:31 GMT

मोदी सरकार ने देश का नाम अधिकृत रूप से इंडिया की जगह भारत रखने की बात क्या की, विरोधी दल कुछ ऐसे टूट पड़े, जैसे कुछ अनहोनी हो गई हो। विरोधी दलों का नया-नया बना गठबंधन जिसे उन्होंने इंडिया नाम दिया है, उसका कहना है कि हमारे गठबंधन का नाम इंडिया होने से घबराकर मोदी सरकार ने ऐसा फैसला किया है। जबकि संविधान में ही लिखा हुआ है- 'इंडिया दैट इज भारतÓ इसका अर्थ तो यही हुआ, की इंडिया वहीं जो भारत है। ऐसा भी नहीं की विश्व की यह पहली घटना हो जिसमें कोई देश अपना नाम बदल रहा हो। सीलोन श्रीलंका हो गया, म्यांमार बर्मा हो गया, तुर्की तुर्किए हो गया। इसी तरह से देश के अंदर कई नगरों के नाम बदले गए। मद्रास, चेन्नई हो गया, बंबई, मुंबई हो गया, इलाहाबाद प्रयागराज हो गया। गौर करने की बात यह है की असलियत में 2000 वर्ष पूर्व इस देश का नाम क्या था? विष्णु पुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है- उत्तर यतसमुद्रस्य हिमार्देश्चव दक्षिणम, वर्ष तद भारतम् नाम भारती यत्र संतति। इसी तरह से महाभारत में और दूसरे भी प्राचीन ग्रंथो में देश का नाम भारत ही आया है। इस तरह से अपने देश का मूल नाम भारत ही है और सदियों से प्रचलित भी है। इंडिया नाम तो यूनानियों के चलते पड़ा, जिन्होंने सिंधु नदी के आधार पर इसका नामकरण इंडिया कर दिया और जिसे अंग्रेजों की गुलामी के समय वैधानिक रूप दे दिया गया। इसीलिए संविधान सभा में हरि विष्णु कामत और सेठ गोविंद दास जैसे नेताओं ने देश का नाम भारत ही रखने पर जोर दिया था, क्योंकि यह नाम हमारे होने का अर्थ स्पष्ट करता है। उनका कहना था कि हम भारत माता की जय के नारे लगाकर ही आजादी की लड़ाई लड़े हैं इसलिए इसका नाम भारत ही होना चाहिए। दुर्भाग्य से तब तक स्वदेशी और भारतीयता के पक्षधर गांधी जी भी नहीं रह गए थे, इसलिए अंग्रेजी सोच से पूरी तरह प्रभावित नेताओं ने देश का नाम इंडिया रखने को वरीयता दी। एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का कहना था- सभी राष्ट्र अपने स्व की कामना रखते हैं, इसीलिए वह स्वतंत्र होना चाहते हैं। इस अमृत काल के दौर में जब राष्ट्र अपने स्व की तलाश में है और अपनी प्रकृति के अनुरूप देश के समग्र विकास की ओर अग्रसर है। ऐसी स्थिति में भारत नाम ही उसकी प्रकृति और संस्कृति कसार्थक करता है। अभी तक कहा जाता था कि इस देश में इंडिया और भारत अलग-अलग है। यानी एक और शहरी चकाचौध इंडिया तो गरीबी और अभावग्रस्त ग्रामीण क्षेत्र भारत! लेकिन जब देश का नाम भारत हो जाएगा तो यह सारे विभेद मिट जाएंगे तथा एकात्म और समरस भारत बनाने में मदद मिलेगी। पर जी 20 के सम्मेलन में मोदी सरकार ने इंडिया की जगह भारत के नाम का उपयोग क्या किया, दूसरों की बात छोड़ दी जाए समाजवादी पार्टी तक ने पूरी ताकत से विरोध किया। जबकि डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अंग्रेजों के अवशेषों को पूरी तरह मिटाने के पक्षधर रहे, और आजीवन इंडिया की जगह देश का नाम भारत करने की आवाज बुलंद करते रहे।

जब योगी अरविंद इस देश को आदिशक्ति, महामाया और महादुर्गा कहकर संबोधित करते हैं तब भारत को लक्ष्य करके ऐसा कहते हैं। जब विश्व कवि रवींद्रनाथ ' देवी भुवन मनमोहिनी नील सिंधु जल धौत चरणÓ लिख करके अभ्यर्थना करते हैं, तो उसके पीछे इंडिया नहीं भारत का भाव होता है। जब बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम गान की रचना किया और उसे गाकर सैकड़ो क्रांतिकारी फांसी पर चढ़ गए तो उसके पीछे भारत की राष्ट्रीयता ही थी। उपरोक्त संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरु जी का दृष्टिकोण देखने लायक है। उन्होंने कहा- यह भूमि जो अनंत काल से पावन भारत माता है, जिसका नाम हमारे हृदय को शुद्ध, सात्विक भक्ति की लहरों से आपूर्ण कर देता है, अहो यही तो हम सब की मां है। हमारी तेजस्विनी मातृभूमि। तमिल के महाकवि सुब्रमण्यम भारती ने कुछ इसी भाव भूमि पर लिखा है- भारत माता के करोड़ों चेहरे हैं, पर उसका हृदय एक है। अनेक भाषाएं बोलियां हैं, पर पर उसका प्रज्ञा- चिंतन एक है।खान अब्दुल गफ्फार खान ने कहा था- हम पठान लोग पहले आर्य थे फिर बौद्ध हुए, अब मुसलमान हो गए, किंतु हमारी राष्ट्रीयता तो भारतीय ही रहेगी। इस तरह से हम पाते हैं कि भारत या भारतीयता ही सभी के लिए श्रद्धेय और वंदनीय है।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

Similar News