1969 के शीत युद्ध के दिनों में कार्ल योगलेस्बी नाम के एक अमेरिकन व्यक्ति जो कि धुर युद्ध विरोधी थे ने शीत युद्ध में 'ग्लोबल नॉर्थÓ के द्वारा 'ग्लोबल साउथÓ के देशों का दमन करने का विरोध किया औऱ सर्वप्रथम इस शब्दावली का उपयोग किया। कार्ल एक संगीतकार, लेखक और प्रोफेसर थे जो अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए शीत युद्ध में अमेरिका एवं अन्य साथी देशों के द्वारा करे जा रहे दमन का मुखर विरोध करने के लिए जाने जाते हैं। अमेरिका द्वारा विएतनाम पर थोपे गए युद्ध के समय एक निबंध में उन्होंने लिखा कि, विश्व के उत्तरी देशों के द्वारा दक्षिणी देशों पर की जा रही आक्रामकता संसार में असंतुलन के लिए जिम्मेदार है एवं भविष्य के युद्धों का एक बड़ा कारण बनकर उभर रही है।
ग्लोबल साउथ की इस शब्दावली ने यूएन ऑफिस फ़ॉर साउथ साउथ कोऑपरेशन के बनने के लिए उत्प्रेरक का कार्य किया जिसका गठन 1974 में हुआ। इस संगठन का उद्देश्य दक्षिणी देशों एवम विकसित देशों के बीच समन्वय का कार्य करना था एवं यह संगठन जी 77 देशों के बीच दक्षिणी देशों के मुद्दों को प्रभावशाली ढंग से उठाने में सक्षम रहा।
दशकों की अवहेलना एवं विरोधाभासी प्रलाप के बीच भारत में 9 एवं 10 सितंबर को राजधानी दिल्ली में आयोजित हुए जी20 शिखर सम्मेलन का आगाज़ इस तथ्य को बलवती करता है कि बहुत देर तक अब ग्लोबल साउथ के देशों को अनसुना एवं अनदेखा करना वैश्विक परिदृश्य के लिये असंभव होगा। शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में ग्लोबल साउथ देशों की बढ़ती अर्थव्यवस्था एवं प्रभाव का ही परिणाम है कि भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश जी20 शिखर सम्मेलन की निरंतर सफल मेंज़बानी करने में सफल हुए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2023 के जनवरी महीने में अपने वर्चुअल उद्बोधन में इन ग्लोबल साउथ देशों के सफ़ल भविष्य को सफल विश्व की सफलता के लिए अपरिहार्य मानते हुए जोर देकर कहा था कि विश्व की तीन चौथाई जनता इन देशों में निवास करती है इसलिए हमारी आवाज भी पुरजोर तरीके से समान रूप से सुनी जानी चाहिए और आठ दशकों से निरंतर चले आ रहे वैश्विक परिदृश्य को धीरे ही सही पर बदल देने का समय आ गया है। प्रधानमंत्री जी का यह आव्हान सफल परिणीति की तरफ अग्रसर होता हुआ तब दिखा जब पचपन देशों की अफ्रीकन यूनियन का विलय सितंबर में आयोजित जी 20 शिखर सम्मेलन में प्रभावी रूप से संभव हुआ।
वैश्विक रूप से तेज़ी से बदलता हुआ यह परिवर्तन 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित नहीं होता था और विकसित देश भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, एवं अन्य विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था एवं व्यक्तिगत हितों के लिए अपरिहार्य नहीं माना करते थे। पर 2019 के अंत में उठी कोरोना रूपी प्रलय एवं इससे उपजी अपार जनहानि झेलने के बाद ग्लोबल साउथ एवं तृतीय विश्व के देशों को अपनी सुरक्षा एवं अपने संसाधनों के बेहतर समायोजन के लिये एक साथ आने पर मजबूर होना पड़ा। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग एवम रूस पर अमेरिका द्वारा थोपे गए प्रतिबंधों को देखते हुए विकासशील देशों ने एक प्रभावशाली गठबंधन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
जी-7, जी-20, ब्रिक्स, यूरोपियन यूनियन, शंघाई कॉर्पोरेशन, क्वैड, इंडो पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम आदि सभी संगठन ग्लोबल साउथ के मुद्दों को अब विश्व पटल पर रखने में झिझक या शर्म महसूस नहीं करते है यह बताता है कि ग्लोबल साउथ के देश अपना एक स्वतंत्र व्यक्तित्व एवं पहचान गढ़ने में सक्षम बन पा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप जापान में इस साल हुए विकसित देशों के जी 7 सम्मेलन में विकासशील देश जैसे भारत, ब्राज़ील, विएतनाम, इंडोनेशिया, कुक एवम कोमोरोस आइलैंड भी शामिल हुए ।
ग्लोबल साउथ के देशों को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए हवाना में हुए सम्मेलन में यूनाइटेड नेशन्स के सचिव जनरल एंटोनियो गुटरर्स ने कहा कि ग्लोबल साउथ का गठबंधन समानता, अन्यायपूर्ण न्याय एवम समरूपता को पूर्ण रूप से समर्पित है। उपरोक्त तथ्य विकासशील देशों की महत्ता को वर्तमान एवम भविष्य में अवश्यम्भावी बनाता है एवं भारत के प्रधानमंत्री अपने कौशलपूर्ण नेतृत्व से भारत को इस ग्लोबल साउथ समूह में असीम ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सक्षम सिद्ध हो सकते हैं।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)