प्रदीप औदिच्य
आपके घर आपसे मिलने आए मेहमान का मन आपसे ज्यादा बात करने में नहीं लग रहा और वह थोड़ी-थोड़ी देर में इधर-उधर देख रहा है तो आप समझ जाइए कि उसकी रुचि आप में नहीं है। ना वह आपके घर में रखे महंगे फूलदान देख रहा है। ना उसकी रुचि दीवार पर टंगे आपकी डिग्री और बड़े लोगों के साथ आप खड़े हो ऐसे फोटो पर है। आप ये सोच कर मन ही मन भले ही खुश होते रहो कि वह अलमारी में रखे आपके पुराने अवार्ड ट्रॉफी देख रहा है। उसकी निगाह उधर भी नही रुकती, वह फिर भी इधर-उधर देख रहा है तो आप परेशान मत हो, उसकी निगाह सिर्फ मोबाइल चार्जर तलाश रही हैं।
आजकल दुनिया में हरेक शख्स किसी तलाश में है तो वह है... फास्ट चार्जिंग चार्जर। चार्जर ही एक ऐसी चीज हो गई है जिसे किसी भी हालत में इग्नोर नहीं कर सकते, आप जब अपने शहर से बाहर जाते समय भले ही टूथ ब्रश पेस्ट ले जाना भूल जाएं, पर आप बैग में चार्जर रखना नहीं भूलते। ब्रश का क्या है... आप एक दिन बिना ब्रश किए भी रह सकते हैं,ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, आपके मुंह से बदबू आएगी कोई मुंह सूंघने नहीं आ रहा। बिना मोबाइल चार्ज किए तो आप जीवित रह पाएंगे ये शायद नहीं हो सकता है।
अब मोबाइल हमारे जीवन का हिस्सा ये लिखना जरूरी नहीं है, पर चार्जर के बगैर भी मोबाइल का कोई जीवन नहीं। चार्ज करते समय मोबाइल को आप ध्यान से देखिए ऐसा लगेगा कि ये मरीज को खून चढ़ाने की प्रक्रिया चल रही है, या आईसीयू में ऑक्सीजन लगी है। ये ऑक्सीजन आपके मन और तन को चैतन्य करने वाली है। आप अपने मोबाइल को चार्ज पर लगा कर जाएं, एक घंटे बाद आप देखेंगे कि आप चार्जर का स्विच चालू करना भूल गए, कसम से ऐसा लगेगा कि आपकी दुनिया ही लुट गई। आप खुद को जूते मारने से रोक नहीं पाएंगे।
आपके घर मेहमान आते हैं, आप उनके आते ही चाय पानी की पूछे बगैर सीधे उनसे पूछें - सी टाइप या पुराना वाला...?
बस वह समझ जाएंगे कि आप बेहद सुसंस्कारित व्यक्ति हैं। आप मेहमानों की इज्जत करना जानते हैं, यही सच्चा सम्मान है मेहमान का। सामान्य घर में जाइए, आपको प्रत्येक कमरे एक चार्जर लटका हुआ मिल जायेगा। जैसे सबके अपने-अपने चड्डी-बनियान वैसे अपने अपने चार्जर । चार्जर अब बेचारा नहीं रहा, वह वीवीआईपी हो गया है। हमारी ट्रेन में भी परिवर्तन सिर्फ चार्जर के लिए किया है... बाकी टॉयलेट वही पुराने टाइप के है। जनता ने भी सरकार से ये नहीं कहा कि आप बैग, थैले रखने की जगह बड़ी बना दो जनता की परेशानी सिर्फ चार्जर प्वाइंट को लेकर है। लोग अपना चार्जर हाथ में लिए, डिब्बे भर में घूमते रहते हैं। इधर थोड़ी देर आपको आवाज आनी शुरू हो जाएगी,भाई साहब आपका चार्जर बहुत देर से लगा है, अब मेरा लगा दीजिए।
अरे आपका कौन सा है..ये इसमें नहीं लगेगा...। थोड़ा सा पिन हिला दीजिए चालू हो जायेगा। भाई ये चार्जर इसमें नहीं लग रहा, इसके स्विच खराब हैं। ये रेलवे कभी नही सुधर सकता, बिजली के स्विच खराब हंै,पंखे चले ना चले पर, मोबाइल चार्जर के स्विच ठीक होने चाहिए। सरकार को ट्रेन में जितनी सीट उतने चार्जर लगाने चाहिए। हम भारत के गरीब लोग हैं, हम सरकार से ये कह ही नहीं रहे है कि सामान्य डिब्बे में सीट बढ़ा लो, हम ऐसी कोई मांग ही नहीं कर रहे। वह तो हम ठस-ठस कर, खड़े होकर सफर कर लेंगे। बस चार्जर पॉइंट बढ़ाने की मांग है, यही मूलभूत जरूरत में शामिल है।
आप होटल पहुंच कर अपने बैग में रखे सामान को उलट-पलट कर देखते हैं और आपको चार्जर नहीं मिलता है, तो आप अपने आप को ढेर सारी गाली दे कर बेहद लापरवाह घोषित करने वाले होते ही है कि बैग के एक कोने में पड़ा चार्जर आपको देख कर मुस्कुरा रहा होता है...आप तुरंत अपने भाग्य को सराहते हुए उसे सम्मान पूर्वक उचित स्थान देते हैं।
मोबाइल के चार्जर भी चार वर्ग के हैं, सी टाइप यानी अभिजात्य वर्ग, बी टाइप यानी मध्यम वर्ग पतली पिन के यानी गरीबी रेखा के ऊपर और चौथा मोटी पिन का मतलब गरीबी रेखा के नीचे वाला। मेरी मोदी सरकार से ये मांग है कि एक देश एक चुनाव का मामला एक तरफ रखिए और पहले चार्जर का भेदभाव मिटाइए। इस देश में एक देश एक चार्जर का इसी सत्र में कानून लाइए। तभी ये देश विश्व गुरु बनेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)