भूटान की देहरी पर चीन

प्रमोद भार्गव

Update: 2023-11-17 20:56 GMT

भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने इसी माह बीते दिनों आठ दिन की यात्रा की है। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से बातचीत की। भूटान और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर चल रही वार्ता और भूटान के चीन के प्रति बदलते नरम रूख के चलते इस यात्रा को अत्यंत अहम् माना जा रहा है। क्योंकि कुछ समय पहले ही भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने चीन की राजधानी बीजिंग की यात्रा की थी। 23 अक्टूबर 2023 को दोरजी के साथ चीनी विदेश मंत्री वांग यी और इसके अगले दिन चीन के राष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की थी। इसके पहले अक्टूबर-2021 में चीन और भूटान ने 'थ्री-स्टेप रोडमैप' के समझौते पर दस्तखत किए थे। तभी से भारत भूटान को लेकर चिंतित है, क्योंकि भारत को लग रहा है कि चीन भूटान की देहरी तक आने की कोशिश में लगा है।

दोरजी की चीन यात्रा के बाद हुई बातचीत के जो संकेत मिले थे, वे भारत के लिए स्वाभाविक रूप से चिंताजनक थे। इस समय वांग यी ने भूटान से चीन के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करने और दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी मुद्दे यथाशीघ्र सुलझाने का आग्रह किया था। नतीजतन दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों को कानूनी रूप दिया जा सके। भविष्य में ऐसा संभव हो जाता है तो चीन-भूटान के बीच मैत्रीपूर्ण रिश्ते कानूनी रूप ले लेंगे। इस बातचीत के बाद चीनी विदश मंत्री वांग यी का कहना था कि भूटान 'एक चीन सिद्धांतÓ का मजबूती से समर्थन करता है। इसका अर्थ है कि ताइवान और तिब्बत चीन के हिस्से हैं और भूटान चीन से जुड़े सीमा मुद्दे को सुलझाने के उद्देश्य से समाधान की दिशा में आगे बढ़ेगा। चीन ने अपने 12 अन्य पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद सुलझा लिया है, लेकिन भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं, जिन्होंने बीजिंग के साथ सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भूटान नरेश जिग्मे खेसर के बीच हुई बातचीत से साफ है, कि अब भूटान एकाएक चीन से बहुत गहरे संबंध स्थापित नहीं करेगा? बातचीत के बाद आए संयुक्त बयान से पता चलता है कि भारत भूटान को असम से जोड़ने वाले कोकराझार-गेलेफू रेल लिंक का सर्वेक्षण पूरा करने के साथ एक अन्य रेल लिंक के जरिए भूटान-बांग्लादेश व्यापार को आसान बनाने और भारत-भूटान सीमा पर चैक नाकों को उन्नत बनाने की बात आगे बढ़ी है। ये योजनाएं उस भविष्य की सूचनाएं देती हैं, जिससे इस क्षेत्र में पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर और भूटान का दक्षिणी व पूर्वी जोंगखा जिला शामिल हैं। विकास की ये परियोजनाएं जमीन पर उतरती हैं तो दोनों देशों के बीच चीन को लेकर जो शंकाएं पैदा हुई हैं, उन पर विराम लग सकता है। इसमें चीन और भूटान के बीच राजनयिक संबंध न बन पाएं यह मुख्य बिंदु है।

भारत और भूटान दोनों का चीन के साथ सीमा विवाद है। चीन और भूटान की 600 किमी की सीमा जुड़ी है। इसमें सबसे ज्यादा गंभीर मामला डोकलाम का है, जहां चीन, भारत और भूटान इन तीनों देशों से सीमा जुड़ती है। भारत-डोकलाम को लेकर अत्यंत सर्तक है, क्योंकि यह संवेदनशील सिलीगुड़ी गलियारा (चिकननेक) के साथ जुड़ा हुआ है। यही गलियारा भारत को उत्तर-पूर्व क्षेत्र से जोड़ता है। चीन ने भूटान को डोकलाम में भूमि परिवर्तन यानी जमीन की अदला-बदली का प्रस्ताव दिया है। भारत इस प्रस्ताव से सशंकित है। क्योंकि इस बदलाव के बाद चीन का इस गलियारे तक पहुंचना आसान तो हो ही जाएगा, भारत के लिए एक खतरा भी उत्पन्न हो जाएगा। हालांकि भारत और भूटान के बीच 1949 में एक संधि हुई है, जिसके अंतर्गत भूटान की विदेश नीति, व्यापार और सुरक्षा गारंटी भारत के पास है। 2007 तक विदेश नीति भी भारत के पास थी, इस प्रावधान को अब खत्म कर दिया है।

चालाकी बरतते हुए चीन ने विवादित डोकलाम क्षेत्र को नया नाम डोगलांग दे दिया था, जिससे यह क्षेत्र उसकी विरासत का हिस्सा लगे। इस क्षेत्र को लेकर चीन और भूटान के बीच कई दशकों से विवाद जारी है। चीन इस पर अपना मालिकाना हक जताता है, जबकि वास्तव में यह भूटान के स्वामित्व का क्षेत्र है। दरअसल चीन अर्से से इस कवायद में लगा है कि चुंबा घाटी जो कि भूटान और सिक्किम के ठीक मघ्य में सिलीगुड़ी की ओर 15 किलोमीटर की चौड़ाई के साथ बढ़ती है, उसका एक बड़ा हिस्सा सड़क निर्माण के बहाने हथिया ले। चीन ने इस मकसद की पूर्ति के लिए भूटान को यह लालच भी दिया था, कि वह डोकलाम पठार का 269 वर्ग किलोमीटर भू-क्षेत्र चीन को दे दे और उसके बदले में भूटान के उत्तर पश्चिमी इलाके में लगभग 500 वर्ग किलोमीटर भूमि ले ले। लेकिन 2001 में जब यह प्रस्ताव चीन ने भूटान को दिया था, तभी वहां के शासक जिग्में सिग्ये वांगचुक ने भूटान की राष्ट्रीय विधानसभा में यह स्पष्ट कर दिया था कि भूटान को इस तरह का कोई प्रस्ताव मंजूर नहीं है।

भारत और भूटान के बीच 1950 में हुई संधि के मुताबिक भारतीय सेना की एक टुकड़ी भूटान की सेना को प्रशिक्षण देने के लिए भूटान में हमेशा तैनात रहती है। इसी कारण जब चीन भूटान और सिक्किम सीमा के त्रिकोण पर सड़क निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने का काम करता है, तो भूटान इसे अपनी भौगोलिक अखंडता एवं संप्रभुता में हस्तक्षेप मानकर आपत्ति जताता है। लिहाजा संधि के अनुसार भारतीय सेना का दखल अनिवार्य हो जाता है। किंतु चीन से नजदीकियां बढ़ने के चलते भूटान अब इस विवाद के हल में चीन को भी शामिल करने की बात कर रहा है। गोया, भारत का चिंतित होना स्वाभाविक है। क्योंकि चीन दक्षिण एशिया के कई देशों को भारत के खिलाफ भड़काने में जुटा है।

(लेखक साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Similar News