देश में कोरोना फिर सिर उठा रहा है। यह चिंता का सबब है। वह इसलिए कि देश में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। यही वह अहम वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के देशों से निगरानी बढ़ाने का आग्रह किया है। संगठन ने दुनिया के देशों को चेतावनी देते हुए कहा है कि सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना का उप स्वरूप जे एन-1 तेजी से उभर रहा है और इसमें उतनी ही तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इसलिए जरूरी यह है कि सभी देश इस बाबत जानकारी लगातार आपस में साझा करते रहें।
्रगौरतलब है कि देश में अब तक कोरोना से 5,33,332 से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक देश में तकरीबन साढ़े चार करोड़ से भी ज्यादा लोगों को कोरोना हो चुका है। सबसे ज्यादा चिंता तो कोरोना के सब वैरिएंट जे एन -1 की है जिसकी चपेट में आने वालों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है। यदि स्वास्थ्य मंत्रालय की मानें तो देश में साल के अंत में उत्तर भारत की तुलना में कोरोना के मरीजों की तादाद में दक्षिण भारत में ज्यादा बढो़तरी सामने आ रही है।
देखा जाये तो इसका पहला मामला आठ दिसम्बर को केरल में एक महिला के मामले में सामने आया था तब से इसमें आये दिन बढो़तरी ही हो रही है। यह भी ध्यान देने की बात है कि देश-दुनिया से कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। हरेक सप्ताह दुनिया में लगभग चार लाख से ज्यादा मामले सामने आये हैं। कोरोना का यह नया वैरियंट कई देशों में संक्रमण वृद्धि का कारण बन रहा है। इससे दुनिया के वैज्ञानिक खासे चिंतित हैं। उनका अनुमान है कि कोरोना का यह नया वैरियंट पिछले वैरियंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक हो सकता है। सबसे खराब हालत तो रूस की है, उसके बाद नम्बर सिंगापुर और फिर इटली का है। सिंगापुर में तो बीते सप्ताह के मुकाबले 75 फीसदी की बढो़तरी हुई है। वहां मरीजों की तादाद तकरीबन 60 हजार के आंकड़े के करीब पहुंच गयी है। वहां प्रशासन ने लोगों को मास्क लगाने के निर्देश दिये हैं। वह बात दीगर है कि दिल्ली स्थित आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉक्टरों का दावा है कि इससे लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि कोरोना के ऐसे वैरिएंट और लहरें तो आगे भी आएंगी। लेकिन धीरे-धीरे रुग्णता और इससे होने वाली मृत्यु दर में कमी आती जायेगी। इसलिए सतर्क रहने की जरूरत है। यह भी सत्य है कि डेल्टा जैसा खतरनाक वायरस नहीं आयेगा। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि बीमारी के वायरस मानव शरीर में मजबूती से जीवित रहने या अपना स्वरूप बदलने की कोशिश जरूर करेंगे। ऐसे हालात में जिन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होगी, उनकी जीवन शैली बेहतर होगी, उनका खान पान सही होगा, वे इस बीमारी से आसानी से लड़ पाएंगे। नया शोध तो यह भी दावा कर रहा है कि देश में लगभग 93 फीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी मिली है। अन्तरराष्ट्रीय जर्नल पबमेड के दिसम्बर 2023 के अंक में प्रकाशित शोध से इस बात का खुलासा हुआ है। साथ ही यह भी कि शहरी आबादी के मुकाबले देश की ग्रामीण आबादी में एंटीबॉडी ज्यादा मिली है। संभावना तो यह भी व्यक्त की जा रही है कि यह नया वायरस ओमिक्रॉन वायरस के निकट का है। हकीकत यह है कि कोरोना का नया वैरियंट जेएन-1 ओमिक्रॉन सब वैरियंट बीए 2.86 का वंशज है। यह वैरियंट सितम्बर महीने में अमरीका में सामने आया था। दिसम्बर महीने के आखिरी हफ्ते में तकरीबन 50 फीसदी से अधिक मरीज वहां के अस्पतालों में भर्ती हुए हैं। रायटर्स की मानें तो 15 दिसम्बर को चीन में इस वैरियंट के सात मामले सामने आये थे। सीडीसी के अनुसार भले ही वैरियंट के नाम अलग-अलग दिखते हों लेकिन स्पाइक प्रोटीन में जेएन-1 और बीए 2.86 के बीच केवल एक ही बदलाव है। इसीलिए केन्द्र सरकार ने समय रहते सतर्कता बरतने और राज्य सरकारों से तत्काल नमूने इक_े करने के निर्देश दे दिए हैं।
गौरतलब यह है कि देश में सबसे पहले कोरोना ने केरल में ही अपने पैर पसारे थे। वह मौसम भी सर्दियों का ही था। इसलिए मौसमी बदलावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बहरहाल देश के दस राज्यों में यथा केरल, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात में जेएन-1 का विस्तार चिंताजनक है। भले डब्ल्यूएचओ इसे वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से कम घातक करार दे लेकिन उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों की शुरुआत के साथ ही इसकी वजह से सांस सम्बंधी समस्याओं में इजाफा होने से खतरा बढ़ रहा है। मौजूदा हालात इस मामले में तत्परता बरतने और समय रहते उपचार की जरूरत पर बल देते हैं क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर की तबाही को लोग अभी भी भूले नहीं हैं। इसलिए बीमारी को नजरअंदाज करना बहुत बडी़ बेवकूफी होगी और जानलेवा भी। सबसे बड़ी बात दूसरे देशों से आने वाले लोगों की निगरानी बेहद जरूरी है। क्योंकि कोरोना के खात्मे के बाद देश में अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौट आने, उसमें तेजी आने, समूची दुनिया में आवागमन में तेजी आने और यात्राओं के दौर में दिनोंदिन बढो़तरी से बीमारियों के देश में आने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। लेकिन इस खतरे से बचाव की सतर्कता सबसे बडी़ शर्त है। यह यात्रा, परिवहन, चिकित्सा और संक्रमण से बचाव के उपायों के बारे में समुचित प्रचार व प्रसार से ही संभव है। इसमें दो राय नहीं।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद् हैं)