भारत में साल भर पर्व, त्योहार, व्रत, पूजा-पाठ, जयंतियां मनाने का क्रम प्राचीन काल से ही चलता आ रहा है। इन पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे काफी गहरा रहस्य छुपा हुआ है। इसका संबंध मानव के जीवन को सुखी, स्वस्थ व सार्थक बनाने से अभिप्राय रखता है। मानव में देवत्व का अभिवर्द्धन नित्य-निरंतर बना रहे ताकि सृष्टि, सृष्टि के रचयिता के प्रति सकारात्मक भाव-चिंतन, धार्मिक आस्था बनी रहे। धनतेरस का त्यौहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। यह कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन घर में लक्ष्मी का आवास मानते हैं। इस दिन ही धनवन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस को 'धनवन्तरि जयन्तीÓ भी कहते हैं। एक दिन भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए लक्ष्मी सहित भूमण्डल पर आये। कुछ देर बाद लक्ष्मी से बोले-कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत देखना। यह कहकर ज्योंही भगवान ने राह पकड़ी, त्योंही लक्ष्मी पीछे-पीछे पड़ीं। कुछ ही दूर पर सरसों का खेत दिखाई दिया, उसके बाद ऊख का खेत मिला। वहीं लक्ष्मी जी ने श्रृंगार किया और ऊख तोड़कर चूंसने लगीं। तत्क्षण भगवान लौटे और यह देखकर लक्ष्मी पर क्रोधित होकर शाप दिया-कि जिस किसान का यह खेत है, 13 वर्ष तक उसकी सेवा करो। ऐसा कह कर भगवान् क्षीरसागर चले गये और लक्ष्मी ने किसान के यहां जाकर उसे धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। तत्पश्चात् लक्ष्मी जी जाने के लिए तैयार हुई, किन्तु किसान ने रोक लिया। भगवान जब किसान के यहां लक्ष्मी को बुलाने आए तो किसान ने लक्ष्मी को नहीं जाने दिया। तब भगवान् बोले-तुम परिवार सहित गंगा में जाकर स्नान करो और इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना। जब तक तुम नहीं लौटोगे तब तक मैं नहीं जाऊंगा। किसान ने ऐसा ही किया। जैसे ही उसने गंगा में कौड़ियां डालीं वैसे ही गंगा में से चतुर्भुज निकले और कौड़ियां लेकर चलने को उद्यत हुए। तब किसान ने ऐसा आश्चर्य देख गंगा जी से पूछा कि-ये चार भुजाएं किसकी थीं। गंगाजी ने बताया कि- हे किसान! वे चारों हाथ मेरे ही थे, तूने जो कौड़ियां मुझे भेंट की हैं, वे किसकी दी हुई हैं? किसान बोला-मेरे घर में दो सज्जन आए हैं, वे ही दिए हैं। गंगाजी बोलीं-तुम्हारे घर जो स्त्री है वह लक्ष्मी हैं और पुरूष विष्णु भगवान हैं। तुम लक्ष्मी को न जाने देना, नहीं तो पुन: उसी भॉति निर्धन हो जाओगे। यह सुन जब वह घर लौटा तो भगवान से बोला कि मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। तब भगवान ने किसान को समझाया कि इनको मेरा श्राप था जो कि बारह वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही हैं। फिर लक्ष्मी चंचल होती हैं, इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सकते। किसान ने हठपूर्वक पुन: कहा-नहीं, मैं लक्ष्मी जी को अब नहीं जाने दूंगा। इस पर लक्ष्मी जी ने स्वयं कहा कि हे-किसान! यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो सुनो। कल तेरस है, तुम अपना घर स्वच्छ रखो। रात्रि में घी का दीपक जला कर रखना, तब मैं तुम्हारे घर आऊंगी। उस समय तुम मेरी पूजा करना, किन्तु मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। किसान ने कहा-ठीक है, मैं ऐसा ही करुंगा। इतना कहा और सुन लेने के बाद लक्ष्मी जो दशों दिशाओं में फैल गईं, भगवान देखते ही रह गये। दूसरे दिन किसान ने लक्ष्मी के कथनानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी भांति वह हर वर्ष धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने लगा। उस किसान को ऐसा करते देखकर कितने ही लोगों ने पूजा करना शुुरू कर दिया।