एकनाथ रानडे एक प्रेरक व्यक्तित्व

जयंती पर विशेष- सौ . राजश्री राजेन्द्र जोशी

Update: 2023-11-18 20:24 GMT




 


यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेरे जीवन में नहीं आता तो मेरा जीवन दिशाहीन ऊर्जा का प्रवाह मात्र बनकर रह जाता। संघ के प्रति निष्ठा और विश्वास रखने वाले ये व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि एकनाथ रानडे जी हैं। जी हां जैसा संबंध बोधगया का गौतम बुद्ध से है वैसा ही संबंध विवेकानंद शिला कन्याकुमारी का एकनाथ रानडे जी से है। एकनाथ जी का जन्म 19 नवंबर 1914 को ग्राम टिलटिला जिला अमरावती महाराष्ट्र में हुआ। नागपुर में बड़े भाई के यहां रहकर पढ़ाई करने के दौरान ही उनका संपर्क डॉ. हेडगेवार जी से हुआ। मैट्रिक उत्तीर्ण होते ही उन्होंने प्रचारक बनने की इच्छा डॉ. साहब के सामने व्यक्त की तो डॉक्टर साहब ने उन्हें आगे पढ़ने का कह दिया।

स्नातक करने के बाद 1948 में गांधी हत्या के पश्चात् संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। संघ के सभी प्रमुख अधिकारी पकड़े गए तब देशव्यापी सत्याग्रह की जिम्मेदारी एकनाथ जी को दी गयी। उन्होंने भूमिगत रहकर रचना बनायी और लगभग 80000 स्वयंसेवक इस कार्य में उनके सहयोगी बने। एकनाथ जी ने संघ और शासन के बीच सेतु का कार्य किया और मौलीचंद्र शर्मा जैसे अनुभवी व्यक्ति को साथ लेकर सरकार को सच्चाई समझाने का प्रयत्न किया और वे सफल भी हुये संघ का प्रतिबंध हटा लिया गया।

1956-1962 वे संघ के सरकार्यवाह रहे इस दौरान उन्होंने स्वयंसेवकों की एक बड़ी फौज तैयार की। डॉ. हेडगेवार जी की 51 वीं जयंती वर्ष मनाया जाना था जिसके हेतु उन्होंने धनसंग्रह कर एक बड़ा कार्य किया, क्योंकि प्रतिबंध काल में संघ पर बड़ा कर्ज हो गया था। 1962 में वे अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख बनाये गये। 1963 में विवेकानंद जी की जन्मशती वर्ष मनाया गया । इसी समय यह निर्णय लिया गया कि, जिस स्थान पर विवेकानंद जी ने बैठकर ध्यान किया था वहां स्मारक बनाया जाये। यह महत्वपूर्ण कार्य एकनाथ जी को सौंपा गया। उस समय देश में मिशनरी का कार्य बहुत ज्यादा फैला हुआ था इस कारण ईसाइयों ने इस काम में बहुत रोडे अटकाये परंतु एकनाथ जी ने बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से इसका समाधान निकाला। विवेकानंद युवाओं के प्रेरणा स्थान है इस बात का अत्यधिक लाभ एकनाथ जी को मिला। एकनाथ जी ने निर्माण के दौरान चाहे प्रशासनिक और राजनैतिक अनुमति लेने का कार्य हो या 3 दिन में 323 सांसदों के स्मारक के समर्थन में हस्ताक्षर करवाना हो, हर राज्य के मुख्यमंत्री से सफलतापूर्वक सहयोग राशि लेनी हो या सम्पूर्ण भारत से 30 लाख लोगों (उस समय भारत की 1 प्रतिशत युवा जनसंख्या) से 1, 2 , या 3 रुपए भेंट स्वरुप लेकर उनको स्मारक से जोड़ना हो एकनाथजी ने पूर्ण जीवटता से यह कार्य संपादित किया।

वे हमेशा पूर्ण नियोजन व पूर्व नियोजन से योजना बनाते थे। स्मारक को जीवित रूप देने के लिए 'विवेकानंद केन्द्र- एक आध्यात्म प्रेरित सेवा संगठनÓ की स्थापना 7 जनवरी 1972 को की गई। विवेकानंद केंद्र के हजारों कार्यकर्ता जनजाति और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं विकास, प्राकृतिक संसाधन विकास, सांस्कृतिक अनुसंधान, प्रकाशन, युवा प्रेरणा, बच्चों के लिए संस्कार वर्ग एवं योग वर्ग आदि गतिविधियां संचालित करते उन्होंने स्वामी विवेकानंद के समग्र लेखन के 9 खंडों का अध्ययन कर उसको एक संक्षिप्त पुस्तक के रूप में संकलित किया जिसका नाम है 'राउजिंग कॉल टू हिन्दू नेशन।

एकनाथ रानडे के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। वह कहते थे, 'यदि संपूर्ण धार्मिक भावना को लोकहित के कार्यों में रूपांतरित कर दिया जाए तो राष्ट्रीय पुनर्निर्माण हो सकता है।Ó उनके अनुसार, 'प्रत्येक व्यक्ति में भारतीयता को जाग्रत करना है, उन्हें कार्य में लगाना है। उनको यह पूर्ण विश्वास था कि यदि आप गहराई में उतरकर देखेंगे तो प्रत्येक व्यक्ति में भारतीयता और हिंदुत्व की जागृति विद्यमान है। एकनाथ जी जो भी करते थे स्थाई भाव से करते थे, भविष्य को ध्यान में रखते हुए करते थे, सहज, सरल, उपयोगी हो ऐसी योजना से करते थे। व्यक्ति की पहचान और व्यक्ति की खोज एकनाथ जी की विशेषता थी। एकनाथ रानडे ने सैकड़ो कार्यकर्ताओं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया। एक साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति देहभक्ति और समाजप्रीति के चलते कितना बड़ा कार्य कर सकता है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण थे एकनाथ जी।

Similar News