चुनावी रणनीति सलाहकार कंपनियां बनाम जमीनी राजनेता टकराव

आलोक मेहता

Update: 2023-10-25 20:35 GMT

भारतीय चुनावों में राजनीतिक पार्टियां, फण्ड करने वाली कारपोरेट कंपनियां, भविष्य की सरकारों की संभावनाएं टटोलने वाली विदेशी शक्तियां हाल के वर्षों में कथित चुनावी रणनीतिकारों - उनकी सर्वे कंपनियों पर करोड़ों रुपया खर्च कर रही हैं। जब ऐसी कंपनियों के कथित सर्वे और विभिन्न चुनाव क्षेत्रों के सही गलत उम्मीदवारों के आकलन- सलाह पर कांग्रेस या भाजपा या क्षेत्रीय पार्टियों के शीर्ष नेता फैसले करने लगते हैं, तो दशकों से जमीनी काम करते और जनता से जुड़े नेता बेहद उत्तेजित हो जाते हैं। इन दिनों इस स्थिति से सर्वाधिक दुखी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत और उनके वरिष्ठ करीबी सहयोगी नेता हुए हैं। विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों के चयन में जब एक दक्षिण भारतीय क़ानूगोलू की सर्वे रिपोर्ट को राहुल गाँधी और उनके करीबी नेता अधिक तरजीह देकर कांग्रेस के पुराने समर्पित नेता विधायकों के टिकट काटने पर दबाव बनाते रहे। मध्य प्रदेश के पुराने कांग्रेसी नेता पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी इस तरह के निजी कंपनियों के मालिकों की सलाह को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते।

इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका और यूरोप की तरह विभिन्न देशों में पहले व्यापारिक बाजार के उपभोक्ताओं की पसंद या चुनावी तैयारी के लिए जनता का मूड जानने के लिए करीब तीन दशकों पहले सर्वे का प्रयोग शुरु हुआ। प्रणव रॉय को इस व्यवस्था का जनक कहा जा सकता है। उन्होंने इंडिया टुडे पत्रिका से शुरुआत की और फिर धीरे धीरे स्वयं एक बड़ी मीडिया कंपनी टीवी कंपनी के संस्थापक हो गए। लेकिन पिछले दस वर्षों में चुनावी रणनीतिकारों - सर्वे कंपनियों की पचासों दुकानें खुल गई हैं। ज्योतिष की भविष्यवाणियों की तरह कभी किसी का अनुमान सही निकल जाता है और अधिकांश का गलत , तब वे आंकड़ों के खेल और नेताओं की कमजोरियां गिनाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। कुछ साल पहले तो ऐसी कुछ कंपनियों का ही स्टिंग ऑपरेशन करके एक टीवी चैनल पर भंडाफोड़ भी हुआ। लेकिन राजनीति के पश्चिमी शिक्षित दीक्षित बड़े नेता अपने पार्टी के प्रादेशिक और स्थानीय नेताओं के बजाय इन दुकानदारों पर भरोसा करते हैं।

असल में कांग्रेस ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए जो टास्क फोर्स बनाया है उसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश, के.सी. वेणुगोपाल, अजय माकन, प्रियंका गांधी, रणदीप सुरजेवाला, सुनील कनुगोलूको शामिल किया गया है। टास्क फोर्स के हर सदस्य को संगठन, संचार और मीडिया, वित्त और चुनाव प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी मिली है। कांग्रेस में सुनील कनुगोलू का प्रवेश साथी कथित चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और कांग्रेस के बीच बातचीत टूटने के बाद हुई। सुनील कनुगोलू का जन्म कर्नाटक के बल्लारी जिले में हुआ था, जहाँ से उन्होंने अपनी मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी की। बाद में वह चेन्नई बेंगलुरु में रहे। मूल रूप से तेलुगु भाषी होने के बावजूद, कनुगोलू की जड़ें कर्नाटक में हैं जो अब बेंगलुरु में रहते हैं। उन्होंने अतीत में भाजपा, द्रमुक और अन्नाद्रमुक के लिए काम किया है। स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 के जल्लीकट्टू विरोध प्रदर्शन के दौरान तमिल गौरव और द्रविड़ मॉडल के पहलुओं के पीछे भी उनका हाथ था, जिससे डीएमके को आक्रामक भाजपा का मुकाबला करने में मदद मिली। पिछले साल 26 अप्रैल को प्रशांत किशोर द्वारा पार्टी में शामिल होने के कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद, पूरे भारत में विभिन्न चुनावों के लिए पार्टी की चुनावी रणनीति में मदद करने के लिए सुनील कनुगोलू को बोर्ड में लाया गया था। चुनाव-रणनीतिकार को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की योजना बनाने का भी श्रेय दिया गया है, जो एक यात्रा थी जो भारत के दक्षिणी छोर से जम्मू और कश्मीर तक 4,000 किमी से अधिक की लंबाई तय की थी। माना जाता है कि यह यात्रा सबसे पुरानी पार्टी द्वारा उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम था, जिससे चुनाव परिणामों में कुछ हालिया मोड़ आए। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अपने सफल काम के बाद, कनुगोलू ने मध्य प्रदेश में एक कार्यालय स्थापित किया।

सुनील कनुगोलू पहले प्रशांत किशोर की टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का दावा किया था। जबकि वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा - और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मेहनत और वर्षों के जमीनी काम की सफलता थी। कनुगोलू एक सर्वेक्षणकर्ता हैं और उन्होंने एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (एबीएम) की स्थापना की थी, जो 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों के लिए भाजपा का अभियान निकाय था। पार्टी नेताओं के मुताबिक, उन्हें यूपी में बीजेपी के लिए काम करने के लिए जाना जाता है । सुनील कनुगोलू जिनकी सोशल मीडिया पर उपस्थिति न के बराबर है और कहा जाता है कि पीके के विपरीत वह एक मायावी व्यक्ति हैं। उनके तौर-तरीके भी काफी अलग हैं। प्रशांत किशोर और सुनील कनुगोलू अलग होने से पहले दोनों ने 2014 में साथ काम किया था। कहा जाता है कि वह अपने विचारों को पार्टी पर नहीं थोपते। प्रशांत किशोर से अलग होने के बाद सुनील कनुगोलू ने 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले डी एम् के प्रमुख और तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के लिए एक अभियान चलाया और यह सफल रहा। इस चुनाव में भले ही डीएमके हार गई लेकिन स्टालिन एक नेता के रूप में उभरे। तमिलनाडु के बाद सुनील कनुगोलू ने फरवरी 2018 तक दिल्ली में भाजपा से मिलकर काम किया है। कनुगोलू 300 लोगों की एक टीम की मदद से उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में राज्य चुनावों सहित भाजपा के लिए अभियानों को आकार देने का दावा किया है । 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सुनील कनुगोलू डीएमके खेमे में गए और अब वह कांग्रेस में हैं। उनके गुरु प्रशांत किशोर का राजनीति से जुड़ाव 34 वर्ष की उम्र में हुआ। वे तब यूनाइटेड नेशंस के तहत अफ्रीका में नौकरी कर रहे थे। 2011 में इनकी मुलाकात गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई। एक कार्यक्रम में प्रशांत किशोर की प्रस्तुति के अंदाज ने नरेंद्र मोदी को प्रभावित किया। इसके बाद दोनों एक-दूसरे के करीब आए। प्रशांत ने अपनी नौकरी छोड़कर गुजरात सरकार और नरेंद्र मोदी के लिए ब्रांड मैनेजर के तौर पर काम शुरू किया। उनका आई पैक नाम का एक संगठन है, जिसका पूरा नाम है इंडियन पालिटिकल एक्शन कमेटी। यह राजनीतिक दलों को ब्रांडिंग और चुनाव अभियान के लिए सेवाएं उपलब्ध कराता है। प्रशांत किशोर बतौर चुनावी रणनीतिकार बिहार में जदयू के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके हैं। यह वह वक्त था, जब नीतीश, भाजपा से अलग होकर राजद के साथ चले गए थे। नीतीश ये चुनाव जीते थे। पंजाब में राहुल गांधी भी प्रशांत की सेवा ले चुके हैं। हाल में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में प्रशांत की सेवाएं लीं। वे आम आदमी पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस के लिए भी काम कर चुके हैं। बहरहाल अब प्रशांत किशोर स्वयं सिर पर मुकुट पहन बिहार की राजनीति में कूद गए हैं। अरविन्द केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए हुए हैं। बाजार का अनुसंधान करने वाली कंपनी एक्सिस माई इंडिया ने पिछले वर्षों में मीडिया संस्थानों में अपनी साख जमाई और हाल में कहा था कि वह 25 करोड़ परिवारों से जुड़ने के लिए 500 करोड़ का निवेश करेगी। इसके लिए कंपनी दोतरफा संचार समस्या समाधान पर ध्यान देने के साथ एक डिजिटल मंच विकसित कर रही है। एक्सिस माय इंडिया के संस्थापक और अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता ने कहा कि कंपनी की परियोजना में 500 करोड़ रुपये तक का निवेश करने की योजना है। इसे ऋण और इक्विटी डाइल्यूशन के जरिये जुटाया जाएगा।एक्सिस माई इंडिया की शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी। कंपनी को दरअसल लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों के दौरान सर्वेक्षण करने के लिए जाना जाता है और इसी के जरिये उसने लगभग 8.5 करोड़ घरों तक पहुंचने का दावा किया है।

गुप्ता ने कहा है -'एग्जिट पोल या ओपिनियन पोल बाजार के अनुसंधान का हिस्सा होते हैं। हमारे पास सभी 25 करोड़ भारतीय परिवारों की समस्याओं को हल करने की एक दृष्टि है। यह एक महत्वाकांक्षी योजना है और नि:संदेह रूप से बहुत चुनौतीपूर्ण भी है।ÓÓ सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन एंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च , या सीवोटर ने भारत ही नहीं अमेरिका में भी चुनावी सर्वे का काम किया है। यशवंत देशमुख सीवोटर के निदेशक और संस्थापक संपादक हैं। सीवोटर इंडिया का कहना है कि इसमें 15 केंद्रीय बजट, 100 से अधिक राज्य चुनाव और 30 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम शामिल हैं। उसका दावा है कि मई 2016 में बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल में चुनाव हुए। सीवोटर तमिलनाडु के नतीजे की सही भविष्यवाणी करने वाली पांच मतदान एजेंसियों में से एकमात्र थी। इन बड़ी कंपनियों को देखकर देश भर में अनेकों चुनावी कम्पनियाँ और कथित रणनीतिकार खड़े हो गए हैं। यह बिजनेस चमक रहा है। लेकिन इससे राजनीतिक दलों के जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बहुत कष्ट हो रहा है। अच्छे बुरे अनुभव से उनका भविष्य बने या बिगड़े , पता नहीं जनता का कितना भला होगा ?

(लेखक पद्मश्री से सम्मानित देश के वरिष्ठ संपादक है)

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