भारत में प्रारम्भ से परिवार संस्था को महत्वपूर्ण माना गया हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सामाजिक स्तर पर व्यक्ति को सबसे छोटी इकाई ना मानते हुए, परिवार को सबसे छोटी इकाई माना गया हैं। भारत की परिवार व्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी वरदान के समान हैं। भारतीय मनीषियों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को त्यौहार आधारित अर्थव्यवस्था बनाया गया। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान हैं और कृषि को त्योहारों से जोड़कर अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने का काम किया गया। भारत के प्रत्येक त्यौहार के साथ क्षेत्र विशेष के अनुसार एक प्रमुख फसल को स्थान दिया गया। जिससे अर्थतंत्र को चलायमान रखा जा सके और इस त्यौहार आधारित अर्थव्यवस्था के मूल में परिवार को रखा गया हैं।
भारतीय परिवार जितने बड़े और सुदृढ़ होंगे। भारत की अर्थव्यवस्था भी उतनी ही मजबूत होती चली जाएगी। और यही सभी कुछ हम पिछले एक दशक में देख रहे हैं। भारतीय समाज के प्रत्येक वर्ग के पास एक परम्परागत अथवा पुश्तैनी रोजगार उन्मुख विशेष कार्य अवश्य हैं। जिसके ज्ञान को परिवार के आधार पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता रहा हैं। मिट्टी के बर्तन बनाने से लेकर हस्तकला से जुड़े कार्यों तक एवं लकड़ी के उपयोगी साधन बनाने से लेकर बड़े-बड़े महल बनाने तक सभी प्रकार के परम्परागत रोजगार संबंधी कार्य परिवार के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किये जा रहे हैं। ऐसे और भी अनेक प्रकार के कार्य है जिन्हें परिवार की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करने का काम हजारों वर्षों से किया जाता रहा हैं। इस हस्तांतरण की व्यवस्था में कृषि कार्य की भी गिनती की जाती हैं।
कृषि कार्य के साथ-साथ पशुपालन को भी रोजगार उन्मुख माना गया हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गौपालन बड़े स्तर पर किया जाता हैं और गौधन से मिलने वाले दूध और अन्य उत्पादों की बाजार में बिक्री के साथ ही गौपालन की विधि अगली पीढ़ी को सिखाई जाती हैं। इसी प्रकार से कृषि कार्य के अंतर्गत बागवानी भी की जाती हैं। बागवानी के अंतर्गत फूलों और फल एवं सब्जियों का उत्पादन किया जाता हैं। बागवानी के अंतर्गत फूलों और सब्जियों के छोटे-छोटे बगीचे तैयार किये जाते है और फिर फूल एवं फल-सब्जियों का उत्पादन किया जाता हैं। बागवानी भी भारतीय पारिवारिक रोजगार परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। भारतीय समाज के भीतर एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो केवल फूलों और सब्जियों की खेती ही करता हैं। बागवानी विधि भी परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के द्वारा अपनी अगली पीढ़ी को सिखाई जाती हैं। परिवार के परम्परागत रोजगार व्यवस्था के साथ ही त्यौहार का समागम अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता हैं।
भारतीय त्यौहारों के अंतर्गत कुछ त्यौहार राष्ट्रीय होते हैं, साथ ही कुछ त्यौहार स्थानीय होते हैं। राष्ट्रीय त्योहारों पर समग्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को गति मिलती हैं। जिसमें दीपावली, दशहरा, नवरात्री उत्सव, गणेश उत्सव, मकर संक्रांति, रक्षाबंधन और होली जैसे प्रमुख त्यौहार राष्ट्रीय त्यौहार होते हैं। सभी राष्ट्रीय त्योहारों पर अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती हैं। इसके अलावा लोहरी, ओणम, पोंगल, छट पूजा, हरतालिका तीज जैसे अनेक त्यौहार स्थानीय स्तर पर या हम कह सकते हैं कि क्षेत्र विशेष के आधार पर मनाये जाते हैं। राष्ट्रीय और स्थानीय त्योहारों को मनाने में उपयोग होने वाली अधिकांश वस्तुएं स्थानीय कामगारों के द्वारा ही तैयार की जाती हैं। दोनों ही प्रकार के त्योहारों में स्थानीय वस्तुओं का विशेष महत्व होता हैं।
अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सभी त्यौहार महत्वपूर्ण हैं, किन्तु इनमें भी गणेशोत्सव से लेकर दीपावली तक का समय महत्वपूर्ण हैं। दीपावली एवं दशहरा त्यौहार अर्थव्यवस्था के लिए बूस्टर के सामान हैं। दीपावली के साथ-साथ सभी त्योहारों पर स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं की मांग बहुत रहती हैं। हाथ से बने सजावटी समान से लेकर, पूजा उपासना में प्रयोग होने वाली अनेक प्रकार की वस्तुओं को स्थानीय स्तर पर ही तैयार किया जाता हैं। जिसके कारण स्थानीय अर्थतंत्र के साथ-साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिलती हैं। अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारतीय त्यौहार रोजगार को भी बढ़ाने का काम करते हैं। समय के अनुसार मांग को ध्यान में रखते हुए सीजनल बिजनिस करने वाले छोटे बड़े व्यापारिओं के लिए त्यौहार प्रमुख होते हैं।
भारतीय परंपरागत रोजगार के कामों को बढ़ावा देने में त्यौहारों की भूमिका प्रमुख होती हैं। जिससे भारतीय परिवारों को मजबूती मिलती हैं। वर्ग आधारित एवं पुश्तैनी कामों के प्रति ध्यानाकर्षण को लगातार बनाये रखने का काम त्योहारों के माध्यम से किया जाता हैं। भारतीय त्यौहार के माध्यम से परिवारों को आर्थिक संबलता प्रदान होती हैं एवं भारतीय समाज आत्मनिर्भर बनता है।
(लेखक अधिवक्ता हैं)