पुण्य की वृद्धि व मुक्ति हेतु रम्भा एकादषी का व्रत

मुकेष ऋषि

Update: 2023-11-08 19:15 GMT

धर्म प्रधान भारत देश में नित्य पावन पर्व, व्रत, उपवास, त्योहार का क्रम साल भर चलता रहता है। भारतीय सस्कृति में इसी श्रृंखला के तहत एकादशी व्रत का महात्म्य सभी व्रतों में काफी फलदायक, लोक-परलोक हेतु कल्याणकारी, पुण्यदायक, मुक्तिदायक है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पावन व्रत को रमा एकादशी व रम्भा एकादशी की संज्ञा प्राप्त है। इस दिन श्रीहरि विष्णु के संग देवी लक्ष्मी व तुलसी की पूजा के विधान में चातुर्मास का ये अंतिम एकादशी व्रत है। इसलिए इस पावन व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से अपार पुण्य प्राप्त होता है। अगर किसी कारणवश व्रत न रखें तो रमा एकादशी की व्रत कथा अवश्य पढ़ें-सुनें। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व अधिक है। भगवान कृष्ण के द्वारा पांडु पुत्री से सभी एकादशी के विधान के लिए कहा गया है। एकादशी का व्रत मनुष्य को सभी कर्मों से मुक्ति देता है। प्रत्येक साल में 24 एकादशी होती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार जिस वर्ष में अधिकमास लगता है, उस वर्ष 26 एकादशी व्रत होते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार रमा एकादशी व्रत कार्तिक मास में आता है, लेकिन तमिल पंचांग के अनुसार पुरातास्सी माह में आती है। देश के कुछ हिस्सों में इसे आश्विन मास मे मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी पाप-ताप का शमन होता है। इस वर्ष यह व्रत 09 नवंबर गुरूवार को है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत सौभाग्य व सुख देने वाला है। पद्म पुराण में इस एकादशी व्रत के महात्म्य का वर्णण है। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य को सभी क्लेशों से छुटकारा मिलता है और भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी की परमकृपा प्राप्त होती है। भगवान कृष्ण के पूजन से पूर्व इस दिन मिट्टी से लेप करके स्नान करें। गेहंू, जौ, मूंग, उड़द, चना, चावल, मसूर दाल व प्याज इस दस चीजों के त्याग का विषेष महत्व है। अत: रमा एकादशी करने वाले श्रद्धालु भक्त इन वस्तुओं को ग्रहण नहीं करें। इस दिन बार-बार जलपान, हिंसा, असत्य भाषण, पान चबाने, दातुन करने, दिन में शयन, रात्रि में सोने व बुरे व्यक्तियों से वार्तालाप से बचें। जो भी श्रद्धालु एकादशी का व्रत करें, वे दशमी तिथि से शुद्ध चित होकर दिन के आठवें भाग में सूर्य के प्रकाश रहने पर भोजन करें। भगवान केशव का सभी विधि-विधान से पूजन करें और ऊँ नमों नारायणाय या ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय जपे। चित की शुद्धि हेतु यह व्रत अत्यंत जरूरी है। इस व्रत से पुण्य वृद्धि तथा पाप क्षय होता है। इस दिन पूजन, आरती के पश्चात् प्रसाद वितरित करके ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणा बांटने की प्राचीन परंपरा है। एकादशी व्रत पुण्य प्राप्ति का धार्मिक पथ है। एकादशी व्रत करने वालों को दैवी शक्ति प्राप्त होती है। एकादशी को देवी का अवतरण काल व शुुभ मूहुर्त माना गया है। एकादशी करने वालों की सभी कामनायें दैवी कृपा से पूर्ण होती है। व्रती की वाणी सिद्ध होती है। शाप-वरदान की क्षमता काफी प्रभावी होती हेैं।

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