यह कितना विडंबनापूर्ण है कि हर वर्ष करोड़ों टन खाने की बर्बादी हो रही है वहीं दुनिया में दाने-दाने के लिए मोहताज लोगों की तादाद बढ़ रही है। हाल ही में सयुक्त राष्ट्र की 'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022Ó रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ है कि दुनिया के 73.5 लोग भुखमरी के शिकार हैं। जबकि 2019 में यह संख्या 61.8 करोड़ थी। यानी गौर करें तो महज तीन साल में 12.2 करोड़ लोग बढ़ गए जिन्हें एक वक्त का खाना नसीब नहीं हुआ। 2022 में दुनिया की 11.3 फीसदी अर्थात् 90 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिला। दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की 2022 की ही रिपोर्ट पर गौर करें तो दुनिया भर में अनुमानित रुप से 93.10 करोड़ टन खाना बर्बाद हुआ जो वैश्विक स्तर पर कुल खाने का 17 फीसदी है।
खाने की बर्बादी के मामले में पहला स्थान चीन का जहां हर साल 9.6 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। दूसरे स्थान पर भारत है जहां हर साल 6.87 करोड़ टन खाना बर्बाद होता है। यह प्रति व्यक्ति के हिसाब से 50 किलो ठहरता है। खाने की यह बर्बादी इस अर्थ में ज्यादा चिंतनीय है कि एक ओर जहां दुनिया भर के 73.5 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं और 300 करोड़ लोगों को सेतहमंद भोजन नहीं मिल पाता वहीं करोड़ों टन खाना बर्बाद हो रहा है।
याद होगा गत वर्ष पहले एसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि भारत में हर वर्ष 440 अरब डॉलर के दूध, फल और सब्जियां बर्बाद होते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के एक बड़े उत्पादक देश होने के बावजूद भी भारत में कुल उत्पादन का करीब 40 से 50 फीसदी भाग जिसका मूल्य लगभग 440 अरब डॉलर के बराबर है, बर्बाद हो जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर साल उतना भोजन बर्बाद होता है जितना ब्रिटेन उपभोग करता है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 2015-16 में कुल अनाज उत्पादन 25.22 करोड़ टन था। यानी यह 1950-51 के पांच करोड़ टन से पांच गुना ज्यादा है। लेकिन इसके बावजूद यह अन्न लोगों की भूख नहीं मिटा पा रहा है। ऐसा नहीं है कि यह उत्पादित देश की आबादी के लिए कम है। लेकिन अन्न की बर्बादी के कारण करोड़ों लोगों को भूखे पेट रहना पड़ रहा है। भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना हजारों बच्चों की जान जाती है। बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है। खाद्य वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूं, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान में प्रोटीन की कमी होने लगी है। आंकड़ों के मुताबिक चावल में 7.6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूं में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गयी है। अगर कार्बन उत्सर्जन की यही स्थिति रही तो 2050 तक दुनिया भर में 15 करोड़ लोग इस नई वजह के चलते प्रोटीन की कमी का शिकार हो जाएंगे। यह दावा हार्वर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने अपनी ताजा रिपोर्ट में किया है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे।
दुनिया भर में सालाना जितने अन्न की वैश्विक बर्बादी हो रही है उसकी कीमत तकरीबन 1000 अरब डॉलर है। दुनिया भर में अन्न की बर्बादी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यदि कुल बर्बाद भोजन को 20 घनमीटर आयतन वाले किसी कंटेनर में एक के बाद एक करके रखें और ऊंचाई में बढ़ाते जाएं तो 1.6 अरब टन भोजन से चांद तक जाकर आया जा सकता है। आंकड़ों के मुताबिक विकसित देशों में अन्न की बर्बादी के कारण 680 अरब डॉलर और विकासशील देशों में 310 अबर डॉलर का नुकसान हो रहा है। ध्यान देने वाली बात यह कि अमीर देश भोजन के सदुपयोग के मामले में सबसे ज्यादा संवेदनहीन और लापरवाह हैं। इन देशों में सालाना 22 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका की ही बात करें तो यहां जितना अन्न खाया जाता है उससे कहीं अधिक बर्बाद होता है। आंकड़ों के मुताबिक केवल खुदरा कारोबारियों और उपभोक्ताओं के स्तर पर अमेरिका में हर साल 6 करोड़ टन अन्न बर्बाद होता है। अगर भारत की बात करें तो देश में 2014 में किराना व्यापार 500 अरब डॉलर का था जो 2023 तक बढ़कर 950 अरब डॉलर होने की संभावना है। ऐसे में आवश्यक है कि इस उद्योग में खाद्य पदार्थों को एकत्र करने, स्टोर करने और एक से दूसरी जगह भेजने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल हो। अगर ऐसा हुआ तो नि:संदेह खाने की बर्बादी रुकेगी और भूख से तड़पते लोगों की तादाद घटेगी।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)