जी शिखर सम्मेलन का कल समापन हो गया। इस तरह से बीते कई महीनों से राजधानी में इस सम्मेलन की तैयारियों को लेकर चल रही गतिविधियों पर विराम लग जायेगा। अगर भारत के नजरिये से देखा जाये तो इसकी दो खास उपलब्धियां रहीं। पहली, जी 20 घोषणा पत्र पर सभी सदस्य देशों की सहमति बन गई है। हालांकि इस मसले पर विवाद होने की आशंका जताई जा रही थी। दूसरी, स्वतंत्र भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन के मेयार का पहले कभी कोई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित नहीं हुआ था।
बेशक, ये कतई मामूली बात नहीं है कि जी-20 सम्मेलन के लिये राजधानी दिल्ली में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जापान के पीएम फुमियो किशिदा, ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथोनी अल्बनीज, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति के अलावा बाकी सदस्य देशों के नेता भी हाजिर रहे। इनके अलावा मेजबान होने के नाते भारत ने अपने कुछ घनिष्ठ मित्र राष्ट्रों जैसे बांग्लादेश, मारीशस और नाइजीरिया को भी आमंत्रित किया। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद, मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविनंद्र जुगनाथ और नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला टीनुबू भी सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में शामिल हुये। इन सबने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ आपसी और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बात की। मशहूर लेखक और पत्रकार महेन्द्र वैद्य मानते हैं कि यूं तो 1983 में नई दिल्ली में हुये गुट निरपेक्ष सम्मेलन में जी-20 की तुलना में कहीं अधिक राष्ट्राध्यक्ष आये थे, पर वे ज्यादा बहुत छोटे और गरीब देशों से संबंध रखते थे। उनकी विश्व की कूटनीति में कोई खास हैसियत नहीं थी।
ये मानना होगा कि देश को जी-20 शिखर सम्मेलन भारत मंडपम के रूप में एक बहुत शानादार उपहार दे गया। ये अगले 50 सालों के लिए तो मुफीद रहने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जुलाई को प्रगति मैदान में 'भारत मंडपमÓ का उद्घाटन किया था। माफ करें, इसकी विज्ञान भवन से तुलना नहीं की जा सकती जिधर पहले गुट निरपेक्ष सम्मेलन से लेकर राष्ट्रकुल सम्मेलन आयोजित होते रहे थे। भारत मंडपम की सुविधाओं के लिहाज से तुलना दुनिया के किसी भी श्रेष्ठ सभागार से की जा सकती है। भारत मंडपम को देखकर लगता है कि ये नये और समर्थ भारत का सशक्त प्रतीक है।
जी- 20 सम्मेलन के सफल आयोजन करके भारत ने दुनिया को अपनी शक्ति और क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। अगर गुजरे दौर के पन्नों को खंगाले तो हमें पता चलेगा कि आजाद भारत का पहला महत्वपूर्ण सम्मेलन 1956 में नई दिल्ली में यूनिस्को सम्मेलन हुआ था। उस सम्मेलन में आने वाले नुमाइंदों के ठहरने के लिए तब अशोक होटल बना था। यूनिस्को सम्मेलन का आयोजन विज्ञान भवन में हुआ था। विज्ञान भवन भी तब ही बना था। उसके बाद लगातार भारत में होने वाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में अशोक होटल में मेहमान ठहरते और आयोजन विज्ञान भवन में होता। दिल्ली के पुराने लोगों को याद होगा कि अशोक होटल के बनने से पहले सारे चाणक्यपुरी एरिया में घनी झाडियां हुआ करती थीं। जयपुर पोलो ग्राउंड के आगे कुछ नहीं था। इधर तमाम एंबेसी तो साठ के दशक के आरंभ में ही बनने लगी थीं।
आप कह सकते हैं कि नई दिल्ली में 1983 में हुआ निर्गुट सम्मेलन भी यादगार रहा था। उसमें करीब छह दर्जन देशों के राष्ट्राध्यक्ष समेत 140 देशों के नुमाइंदों ने भाग लिया था। निर्गुट सम्मेलन की मेजबानी भारत को इसलिये करनी पड़ी थी क्योंकि इराक ने मेजबानी करने से कुछ माह पहले हाथ खड़े कर दिये थे। इसलिये मेजबानी भारत ने संभाली थी। निगुर्ट सम्मेलन के सफल आयोजन का श्रेय विदेश मंत्रालय के तेज तर्रार अफसरों जैसे एम.के. रस्गोत्रा, नटवर सिंह, मोहम्मद हामिद अंसारी और जे.एन. दीक्षित को जाता है। उसमें क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो, पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक, फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासर अराफात भी पधारे थे।
1983 में ही हुआ राष्ट्रकुल सम्मेलन
निर्गुट सम्मेलन के चंदेक महीनों के बाद 23-29 नवंबर, 1983 तक नई दिल्ली में राष्ट्रकुल सम्मेलन आयोजित हुआ। उसमें 42 राष्ट्रकुल देशों के राष्ट्राध्यक्ष आये थे। उनमें ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मारर्गेट थैचर प्रमुख थीं। उसमें अमेरिकी फौजों के ग्रेनेडा में घुसने पर चर्चा हुई थी। सम्मेलन के अंतिम तीन दिन राष्ट्रकुल देशों के नेता घूमने के लिये गोवा गये थे।
भारत सरकार की पहल पर सन 2018 में आसियान सम्मेलन का आयोजन हुआ। उसका एक प्रतीक तुगलक क्रिसेंट में है। वहां पर भारत-आसियान मैत्री पार्क का उदघाटन तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने किया था। आसियान को दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन भी कहा जाता है। इसके सदस्य थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार। आसियान पार्क में इन देशों के प्रतीक मौजूद हैं।
भारत- अफ्रीका सम्मेलन 2015
भारत की अफ्रीकी देशों से घनिष्ठ संबंध बनाने की नीति के चलते राजधानी में साल 2015 में भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। उसमें 50 से अधिक अफ्रीकी देशों के नेता मौजूद थे। बेशक, अफ्रीकन यूनियन का जी20 का स्थाई सदस्य बनना इस जी-20 सम्मेलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि रही। इसका प्रस्ताव भारत ने ही रखा था, जिसका सभी ने समर्थन किया। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा, सबके साथ की भावना से ही भारत ने प्रस्ताव रखा था कि अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की स्थाई सदयस्ता दी जाए। मेरा विश्वास है कि इस प्रस्ताव पर हम सब की सहमति है।
अफ्रीकन यूनियन के जी20 समिट का स्थाई सदस्य बनने से 55 देशों को फायदा मिलेगा। अफ्रीकन यूनियन की स्थापना 26 मई 2001 को अदीस अबाबा, इथियोपिया में हुई थी और 9 जुलाई 2002 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन में लॉन्च किया गया था। इसने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनियन की जगह ली थी। वैश्विक जीडीपी में इसका योगदान 18.81 हजार करोड़ रुपए है। अफ्रीकन यूनियन का उद्देश्य देश के आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को चर्चा करना और उनका स्थाई समाधान निकालना है। बहरहाल, राजधानी में आगे भी अहम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होते रहेंगे हैं। पर जी-20 शिखर सम्मेलन की यादें देर तक रहने वाली हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)