प्रदीप औदिच्य
मैं रात भर इस बात से परेशान रहा कि मुझे भी सरकार का विरोध करना है, पर किस बात पर विरोध करूं... ये सोच कर परेशान हूं। कई बातें दिमाग में आइंर्। कई मुद्दे पैदा होने से पूर्व भी भु्रण हत्या की श्रेणी में आ गए। एक मुद्दा ये भी था कि सरकार से मैं इस बात पर विरोध करूं कि अर्थ व्यवस्था को आगे ले जा रही है, जबकि मेरा इस व्यवस्था में कोई अर्थ ही नहीं है, मुझसे एक बार भी वित्त मंत्री ने बात क्यों नहीं की।
इस मुद्दे पर सरकार के खिलाफ जाना चाहिए, पर दिमाग ने कहा चल तू रहने दे...लोग इस बात से कतई सहमत ही नहीं है कि अर्थ व्यवस्था और तुम्हारा रिश्ता दूर-दूर तक नहीं है। देखो एक बात मैं स्पष्ट कर दूं कि सरकार के काम धाम से अपने को कोई ज्यादा मतलब ही नहीं है...अपने को विरोध इसलिए करना है कि मुझे कुछ लौटाना है,जैसे सरकार द्वारा दिए गए सम्मान ।
पर इस बात की परेशानी है कि आज तक सरकार ने अपने को कोई सम्मान ही नहीं दिया। आप तो सरकार की बात कर रहे है मुझे तो सम्मान के नाम पर अपने मोहल्ले की झांकी में एक प्रमाण पत्र मिला था। अब एक मात्र सम्मान को लौटाने की हिम्मत भी नहीं है।
विरोध के लिए सम्मान लौटाने के लिए पहले अपने पास कोई सरकारी सम्मान तो हो,और सरकारी सम्मान वापिस करूं, इसके लिए कोई वजह भी हो। यही दोनों बातें मुझे परेशान करती हंै। पहले तो खूब सोचा कि सरकार से अपना रिश्ता क्या तब समझ आया कि वोट डालते समय दिए हुए, सम्मानीय मतदाता का संबोधन के नाते अपन हुए तो सरकार के लिए सम्मानित व्यक्ति ही।ऐसा मौका कई बार मिला है ।
सम्मान के नाम पर झांकी में प्राप्त एक प्रमाण पत्र के अलावा ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत अपने पास नहीं है कि हमारा कोई सम्मान भी हुआ है।
एक बार जरूर मुख्यमंत्री के नगर आगमन पर पुलिस ने चौराहे पर हमको रोक लिया था, तब नागरिक सम्मान के नाते हम पुलिस से भिड़ गए फिर डंडे ने हमको जो अपार संभावनाएं बताई और नागरिक के वास्तविक स्वरूप से परिचय करवाया तब हमको समझ आया कि हम सिर्फ चुनाव के समय में ही सम्मानित नागरिक हैं बाकी समय में हम पुरातन कालीन प्रजा । इसलिए आज भी जब अखबार में पढ़ता हूं कि माननीय मुख्यमंत्री जी नगर में आयेंगे, उस दिन हम बाहर ही नहीं निकलते।
अब परेशानी यही है कि मैं लौटाऊं क्या, अलमारी में कई कागज ढूंढ निकाले। ले देकर वही एक कागज का टुकड़ा हाथ लगा, फिर याद आया कि इसके साथ मुझे 21 रुपए भी इनाम में मिले थे, अब उनका क्या करें ? क्या उन्हें लौटाएं या सिर्फ सर्टिफिकेट लौटाएं। फिर सोचा कि सरकार को पैसे नहीं लौटा सकते क्योंकि उसमें गांधी जी हैं। गांधी जी मुझे बहुत प्यारे हैं, जब-जब गांधी जी मेरी जेब में होते हैं तब-तब मुझे खुद ही सरकार होने का अहसास होता है, सरकार तो गांधी जी का सम्मान नहीं कर रही इसलिए वहां गांधी जी वापस देना ठीक नही।
पिछले दिनों ऐसा ही माहौल था, कुछ पहलवान अपने सम्मान लौटा रहे थे। सोशल मीडिया में खबर थी कि वह सम्मान के साथ मिली धन राशि को नहीं लौटा रहे। अरे भाई उनका विरोध सिर्फ सम्मान से है राशि से नहीं, वह पहलवान है खाने पीने में ही राशि खर्च हो जाती है, मीडिया को बुलाने, अपने पक्ष में माहौल बनाने में ही राशि लग जाती है, इसलिए मिली राशि तो खर्च हो गई अब बस वह कागज बचे है। वही लौटा सकते है, सो लौटा दिए।
चलो खैर राशि का तय हुआ कि उसे छोड़कर कागज लौटा सकता हूं, सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी वापस कर दूं। अब दूसरी समस्या हल होने से पहले पहली समस्या एक टांग पर खड़ी है... सरकार के विरोध के विषय का चयन।आखिर किस विषय पर सरकार का विरोध करना है। विदेश नीति पर सरकार मुझ से नही पूछ रही, इसको लेकर कोई बयान दूं फिर सरकार का विरोध करूं। फिर सोचा यदि मुझसे यूरोप के किसी देश का रास्ता भी पूछ लिया तो अपन क्या जवाब देंगे। सो अभी सरकार का विरोध करने का विषय ढूंढ रहा हूं उसे मिलते ही अपन भी अपना सम्मान वापस कर देंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)