पिछले साल विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी कि डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें बताया गया था कि साउथ-ईस्ट एशियाई देशों में भारत में सुसाइड रेट सबसे ज्यादा है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक लाख आबादी पर 16.5 लोग सुसाइड कर लेते हैं। दूसरे नंबर पर श्रीलंका है, जहां एक लाख में 14.6 लोग आत्महत्या कर लेते हैं। भारत की समायोजित वार्षिक आत्महत्या दर 10.5 प्रति 100,000 है, जबकि पूरे विश्व में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 पर 11.6 है। दुनिया में हर साल लगभग आठ लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें से 1,35,000 (करीब 17 प्रतिशत) भारत के लोग हैं। गौरतलब है कि दुनिया की कुल आबादी में भारत का हिस्सा करीब 17.5 फीसदी है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 8 लाख से ज्यादा लोग सुसाइड करते हैं, यानी कि हर 40 सेकंड में एक सुसाइड। भारत में हर साल एक लाख से ज्यादा आत्महत्या होती हैं। वहीं नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, साल 2021 में भारत में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 25.6 प्रतिशत दिहाड़ी मजदूर थे। साल 2021 में कुल 42,004 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की। इनमें 4,246 महिलाएं भी शामिल थीं। वहीं आत्महत्या करने वाले लोगों में एक बड़ा वर्ग उन लोगों का था, जिनका खुद का रोजगार था। इस वर्ग में कुल 20,231 लोगों ने आत्महत्या की, जो कुल आत्महत्या की घटनाओं का 12.3 प्रतिशत है। इन 20,231 लोगों में से 12,055 खुद का बिजनेस चलाते थे और 8,176 लोग अन्य तरह के स्वरोजगार से जुड़े थे।
एनसीआरबी की रिपोर्ट में पिछले पांच सालों के आत्महत्या के साल-दर-साल आंकड़े प्रकाशित किए गए हैं। इस पर नजर डालें तो ये बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि आत्महत्या की घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। साल 2017 में देश में 1,29,887 आत्महत्याओं के मामले रिकॉर्ड किए गए थे, तब आत्महत्या दर 9.9 थी। आत्महत्या दर प्रति लाख आबादी पर होने वाली आत्महत्या की घटनाओं को दर्शाती है। साल 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में प्रति लाख 9.9 आत्महत्या की घटनाएं दर्ज की गईं। साल 2018 में आत्महत्या दर में इजाफा हुआ और यह बढ़कर 10.2 पर पहुंच गया। तब देश में 1,34,516 आत्महत्या के मामले दर्ज हुए थे। वहीं साल 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की। साल 2020 में यह संख्या बढ़कर 1,53,052 हो गई थी।
अक्सर लोगों का मानना होता है कि सुसाइड के पीछे खराब आर्थिक हालत वजह होती होगी या फिर बेरोजगारी, लेकिन ऐसा नहीं है। एनसीआरबी के मुताबिक, पिछले साल जितने लोगों ने सुसाइड किया, उनमें से सबसे ज्यादा 32.4 प्रतिशत ने परिवार की दिक्कतों से तंग आकर आत्महत्या कर ली। साल 2019 में 45,140 लोगों ने परिवार की दिक्कतों की वजह से सुसाइड कर लिया। सुसाइड का दूसरा बड़ा कारण बीमारी है। पिछले साल 23,830 लोगों ने बीमारी से परेशान होकर सुसाइड कर लिया। तीसरा बड़ा कारण ड्रग एडिक्शन है, जिसकी वजह से पिछले साल 7,860 लोगों ने आत्महत्या कर ली। वहीं बेरोजगारी की वजह से करीब दो हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई। विशेषज्ञों का कहना है कि लोग आत्महत्या करने के बारे में तब सोचने लगते हैं, जब वे बेहद तनावपूर्ण मानसिक स्थिति में पहुंच जाते हैं आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर 15 से 29 साल के किशोर और युवा हैं। आत्महत्या करने की सोचने वाले लोगों के व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे 80 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या को रोका जा सकता है। विभिन्न शोधों से पता चलता है कि आत्महत्या को रोकने का सबसे अच्छा तरीका इसके पहले मिलने वाले संकेतों को समझना है। इनमें अवसाद, चिढ़चिढ़ापन, अकेले रहने की आदत आदि शामिल हैं। इन्हें समझ कर व्यक्ति का समय पर इलाज किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य साल 2030 तक दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं को एक तिहाई तक कम करने का है, लेकिन पिछले साल के मुकाबले देश में आत्महत्या की संख्या 10 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ऐसे में आत्महत्या की संख्या को घटाने के लिए सामूहिक प्रयासों की दरकार है। हम सभी को मिलकर इसके लिए प्रयास करने होंगे। अपने आस-पास के लोगों और उनके व्यवहार को देखना तथा समझना होगा। जो लोग अवसाद या तनाव का सामना कर रहे हैं। अगर हम ऐसा नहीं कर पाए तो आत्महत्या की घटनाओं को रोकना एक सपने जैसा होगा, जिसका पूरा होना संभव नहीं है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)