आर्थ‍िक मोर्चे पर भारत

Update: 2019-08-06 12:49 GMT

प्रधाननमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में आज आर्थ‍िक मोर्चे पर देश के सामने कई चुनौतियां मौजूद हैं। इन सभी संकटों से निपटते हुए देश को निरंतर गतिशीलता के उच्‍च पायदान तक पहुंचाना एनडीएनीत भाजपा सरकार के लिए कोई सामान्‍य कार्य नहीं है, इसलिए सरकार इन दिनों जैसा निर्णय ले रही है, उसके लिए सराहना तो बनती है लेकिन साथ में कुछ बातें ऐसी भी हैं जिनपर सरकार को समय रहते ध्‍यान देना होगा।

यह एक अच्‍छा कदम है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने आम आदमी को बड़ी राहत देते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर दी। रेपो रेट में लगातार तीसरी बार 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर मोदी सरकार आम जनता में यह संदेश देने में भी कामयाब रही है कि मध्‍यम और निम्‍नआय वर्ग के साथ सरकार पूरी तरह से खड़ी हुई है। इस कटौती के बाद रेपो रेट अब 5.75 के स्तर पर पहुंच गया है जो पहले 6 पर था। वस्‍तुत: इससे यह सुनिश्‍चित हो गया है कि जैसे ही बैंक ईएमआई में कमी करेंगे, इसका सीधा फायदा आम आदमी को होगा । आरबीआई ने आमजन के हित में सिर्फ यही एक निर्णय नहीं लिया है बल्‍कि ऑनलाइन ट्रांजेक्‍शन करने वालों को भी राहत प्रदान की है। रिजर्व बैंक ने रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनइएफटी) लेनदेन पर लगाए गए शुल्क को भी हटाया है। आगे आनेवाले दिनों में हो सकता है कि सरकार एटीएम ट्रांजेक्‍शन की सुविधा निशुल्‍क प्रदान करने की मंशा से उसके लगनेवाले चार्ज को भी जल्‍द समाप्‍त कर दे।

वस्‍तुत: इन लिए गए अच्‍छे निर्णयों के साथ ही जो चुनौतियां सरकार के सामने उभर रही हैं, उनसे सही से निपट लेना ही सरकार के लिए आनेवाले दिनों में बड़ी उपलब्‍धी होगी। हमारे देश में आय और व्‍यय का जो रास्‍ता है सबसे पहले सरकार को इसे ठीक करने की जरूरत है। यह एक बड़ा अंतरविरोध है कि पिछले 5 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दर में वृद्धि दिखती है और भारत का प्रत्‍येक गरीब भी इससे 79,882 रुपये प्रति वर्ष आय वाला बन गया है, किंतु क्‍या यह वास्‍तविक है? इस समय कहने को जब भारत की अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया की छठवीं सबसे तेज अर्थव्‍यवस्‍था बनी हुई है, तब देश में ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था अपनी सुस्‍त राह से चल रही है। अभी यहां तक कहा जा रहा है कि आगामी दिनों में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया के पांचवें पायदान पर ब्रिटेन को पीछे छोड़कर आ जाएगी। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी भारत प्रतिव्‍यक्‍ति आय में भूटान, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों से भी काफी पीछे है। सूची में हमारा 138 वां स्‍थान है।

जहां तक विकास दर की बात है, मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भारत की जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जी-20 सर्व‍िलांस नोट जारी कर जानकारी दी कि '2019 में भारत की जीडीपी 7.3 फीसदी की रफ्तार से ग्रोथ करेगी और इसी तरह साल 2020 में जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा 7.5 फीसदी पर रहने की उम्‍मीद है।' इसी तरह के मिलते जुलते अनुमान वर्ल्‍ड बैंक के हैं। इसके अनुसार चालू वित्त वर्ष में भारत का जीडीपी ग्रोथ 7.5 फीसदी पर रहेगा और निवेश और निजी उपभोग में वृद्धि की बदौलत भारत 7.5 फीसदी की गति से यह विकास करेगा। इसके अलावा मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के लक्ष्य से नीचे है जिससे मौद्रिक नीति सुगम रहेगी, साथ ही कर्ज की वृद्धि दर के मजबूत होने से निजी उपभोग और निवेश को फायदा होगा। लेकिन क्‍या इतनेभर अनुमानों से खुश हुआ जा सकता है?

वर्तमान में हमारी यह स्‍थ‍िति है कि वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर घटकर 6.8 फीसदी पहुंच गई, जोकि पिछले पांच साल में सबसे कम रही है। वास्‍तव में भारत को खुश तभी होना चाहिए जब उसकी प्रति व्यक्ति आय देश की जनसंख्‍या के हिसाब से आज की तुलना में चार गुना अधिक हो जाए। इसके लिए हमें अपनी विकास दर आगामी कई वर्षों तक लगातार 09 से 10 फीसदी के बीच रखने की आवश्‍यकता होगी। जिसके लिए मोदी सरकार को हर सेक्‍टर में बहुत अधिक सुधार करने की जरूरत है। आज विश्‍वभर में निजीकरण का दौर चल रहा है। जहां साम्‍यवादी सरकारें हैं, उन देशों में से सशक्‍त चीन भी इस निजिकरण से अपने को नहीं बचा पाया है, किेंतु आंकड़ों के हिसाब से देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी निवेश में गिरावट हो रही है। वित्त वर्ष 2015 में निजी निवेश की दर 30.1 फीसदी थी जोकि वित्त वर्ष 2019 में घटकर 28.9 फीसदी पर आ पहुंची। फिर भले ही दूसरी बार मोदी सरकार आने के बाद सेंसेक्‍स 40 हजार और निफ्टी 12 हजार का आंकड़ा पार करता दिखता है। लेकिन सच यही है कि निजी और सरकारी निवेश पिछले 14 साल के न्यूनतम स्तर पर जो पहुंच गया है जिसे हम सभी को तेज गति देनी होगी ।

हमारी बैंकों के सामने आज एनपीए एक बड़ी समस्‍या के रूप में मौजूद है, जिसका कि हल इस कार्यकाल में मोदी सरकार को निकालना होगा। अभी भी बैंकिंग सिस्टम में नॉन परफार्मिंग असेट (एनपीए) 9 लाख करोड़ से ऊपर का बना हुआ है। इसमें कोरपोरेट लोन से लेकर निजी, कार और हाउस लोन तक शामिल हैं । यदि यह पैसा चुका दिया जाए तो इससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था कितनी तेजी से दौड़ेगी यह सहज ही समझा जा सकता है। इसके लिए सरकार को उन तमाम नीरव, मेहुल और विजय माल्या जैसे लोगों पर सख्‍ती करनी होगी जोकि बैंक का पैसा डकार जाते हैं।

केवल इतना ही नहीं, वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में प्रति वर्ष 81 लाख नए रोजगार अवसरों की आवश्‍यकता है। अभी देश में श्रम मंत्रालय के जारी आंकड़े बताते हैं कि 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी रही जो पिछले 45 वर्षों में सबसे ज्यादा है। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कुछ महीने पहले एक व्याख्यान में बताया कि 'मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून और श्रम कानूनों में कई समस्याएं हैं। ऐसे में सरकार जब तक इन दोनों तरह के कानूनों को उदार और स्पष्ट नहीं बनाती तब तक देश में बुनियादी ढांचे पर निवेश में वृद्धि नहीं हो सकती है।' यही बात देश और दुनिया के आर्थ‍िक चिंतक भारत के बारे में कह रहे हैं। सभी का जोर इस बात पर है कि भारत में अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने के लिए देश के बुनियादी ढांचे की सूरत बदलना जरूरी है।

लेखक पत्रकार एवं फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य हैं

Similar News