भारत के महान जनजातीय सम्राट संग्राम शाह

डॉ. आनंद सिंह राणा

Update: 2023-11-14 20:19 GMT

भारत के हृदय स्थल में स्थित त्रिपुरी के महान कलचुरि वंश का 13 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अवसान हो गया था, फल स्वरुप सीमावर्ती शक्तियां इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए लालायित हो रही थी।अंतत: इस संक्रांति काल में एक वीर योद्धा जादो राय (यदु राय) ने तिलवाराघाट निवासी एक महान् ब्राह्मण संन्यासी सुरभि पाठक के भगीरथ प्रयास से त्रिपुरी क्षेत्रांतर्गत गढ़ा कटंगा क्षेत्र में गोंड वंश की नींव रखी। यही आगे चलकर गढ़ा मंडला के साम्राज्य के रुप में सुविख्यात हुआ। (यह उपाख्यान चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य की याद दिलाता है) कालांतर में यह साम्राज्य महान गोंडवाना साम्राज्य के नाम से जाना गया। साम्राज्य का चरमोत्कर्ष का प्रारंभ 48 वीं के महानायक अमान दास (संग्राम शाह) के समय हुआ। 14 नवंबर सन् 1480 में राजा अमान दास सिंहासनारुढ़ हुए थे। रामनगर प्रशस्ति के अनुसार गोंड राजाओं की वंशावली में 53 राजाओं के नाम मिलते हैं। इस प्रशस्ति के लेखक राजकवि और पंडित जय गोविंद हैं, इसके अनुसार 34 वीं पीढ़ी में मदन सिंह का नाम आता है और यहीं से स्व की भावना से अभिप्रेत होकर गोंडवाना साम्राज्य का वास्तविक उत्कर्ष शुरू होता है। सन् 1290 में जब कड़ा और मानिकपुर के सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण करने की योजना बनाई। राजा महलक देव ने राजा मदन सिंह से सहायता मांगी, तब मदन सिंह ने अपने मंत्री विभूति पाठक से योजना बनाकर सहायता करने का वचन दिया। महालक्ष देव (महलक देव) चाहते थे कि अलाउद्दीन खिलजी को रास्ते में ही रोक लिया जाए ताकि उन्हें युद्ध की तैयारी का समय मिल जाए। मालवा के मंत्री हरनंद (कोका) को मदन सिंह ने संदेश भेजा और गोंडी सेना को लेकर धसान नदी के किनारे डेरा डाल दिया। वर्षा काल का समय था, अलाउद्दीन खिलजी की सेना जैसे ही नदी पार करने लगी और कुछ सेना नदी के बीच में थी तभी गोंडी सेना ने छापामार युद्ध शैली में जहरीले तीरों, अग्निबाण और लुकेत सांपों के बाणों से हमला बोल दिया। अचानक हमले से अलाउद्दीन खिलजी की सेना में खलबली मच गई। उसकी नावें डुबो दी गई और उसके शस्त्रागार में आग लगा दी गई कुछ ही घंटों में अलाउद्दीन खिलजी पराजित हुआ, और पुन: कड़ा और मानिकपुर लौट गया। इस प्रकार गोंडवाना सेना की विजय हुई और मालवा नरेश महालक्ष देव ने राजा मदन सिंह के प्रति आभार व्यक्त किया। मदन सिंह के उपरांत क्रमश: उग्रसेन, ताराचंद्र(रामकृष्ण),ताराचंद, उदय सिंह, मान सिंह, भवानीदास, शिवसिंह, हरनारायण, सबलसिंह, राजसिंह, दादीराय, गोरखदास (जबलपुर अंतर्गत गोरखपुर बसाया) अर्जुन दास (अर्जुन सिंह) और उसके उपरांत 48 वीं पीढ़ी में अमानदास का जन्म हुआ। सन् 1475 में अमान दास ने सत्ता संभाली थी और 1480 में विधिवत राज्याभिषेक हुआ, परंतु वास्तव में सन् 1484 में स्व का शंखनाद हुआ माड़ौगढ़ अर्थात् मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने अचानक गढ़ा कटंगा पर हमला दमोह की ओर से किया। प्रारंभ में तो गोंड सेनाएं पीछे हटीं परंतु अवधूत बाबा की सलाह पर जबलपुर में जहां आज कृषि उपज मंडी है वहां चंडाल भाटा के मैदान में गोंड सेनाओं ने मोर्चा जमाया। चंडाल भाटा के मैदान में गयासुद्दीन खिलजी की सेनाओं और राजा अमान दास की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। अमानदास और शेर सिंह ने मिलकर गयासुद्दीन खिलजी को उसकी बची- खुची फौज समेत सिंगौरगढ़ की सीमाओं के परे खदेड़ दिया। इस विजय में बाबा अवधूत अर्थात अघोरी बाबा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंडाल भाटा के युद्ध में सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी की भयानक पराजय हुई, अमान दास ने सुल्तान से छत्र एवं निशान छीन लिए और इस विजय के उपलक्ष में अमान दास ने संग्राम शाह की उपाधि धारण की। इसी कालखंड में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी का भाई जलालुद्दीन लोदी बागी हो गया और बदनीयति से गढ़ा कटंगा में प्रवेश करने को उद्यत हुआ तब राजा संग्राम शाह ने उसे करारी शिकस्त देते हुए खदेड़ दिया।

रामनगर की प्रशस्ति में लिखा है कि प्रतापी अर्जुन सिंह का पुत्र संग्राम शाह था। जिस भाँति विशाल कपास का ढेर एक छोटी सी चिंगारी से नष्ट हो जाता है - उसी भांति उसके शत्रुगण तेजहीन हो गए थे। मध्यकाल का सूर्य भी उसके प्रताप के सामने धूमिल सा दिखाई देता था। मानो सारी पृथ्वी को जीत लेने का उसने निश्चय किया हो। तदनुसार उस ने 52 गढ़ों को जीत लिया था। सन् 1541 में एक समृद्ध और सुदृढ़ गोंडवाना साम्राज्य को अपने योग्य पुत्र दलपति शाह को सौंपकर महारथी राजा संग्राम शाह पंच तत्वों में विलीन हो गए। गोंडवाना के महा प्रतापी राजा संग्राम शाह ने सन् 1480 से सन् 1541 तक कुल 61 वर्ष शासन किया जो कि संभवत: भारतीय इतिहास में सर्वाधिक शासनावधि है।

(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

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