वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बढ़ती भारत की भागीदारी

प्रहलाद सबनानी

Update: 2023-09-28 19:39 GMT

भारत, पूरे विश्व में, पहला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सफलता पूर्वक उतार लिया है। निश्चित ही भारत की यह सफलता न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व के समस्त देशों के लिए गर्व का विषय होना चाहिए। यदि चन्द्रयान-3 अपने उद्देश्यों में सफल हो जाता है जैसे चन्द्रमा पर पानी उपलब्ध है अथवा नहीं, चन्द्रमा पर किस प्रकार के खनिज पदार्थ (सोना, प्लेटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम, आदि) रासायनिक पदार्थ, प्राकृतिक तत्व, मिट्टी एवं अन्य तत्व पाए जाते हैं, आदि का पता लगने पर इस जानकारी का लाभ भारत के साथ ही पूरे विश्व को भी होने जा रहा है। परंतु, पश्चिमी देशों में कुछ तत्व भारत की इस महान उपलब्धि को सकारात्मक दृष्टि से न देखते हुए इस संदर्भ में अपनी नकारात्मक सोच को आगे बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

दरअसल, वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था आज बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था का रूप ले चुकी है एवं इस अर्थव्यवस्था पर अभी तक केवल कुछ विकसित देशों, अमेरिका, रूस, चीन, कनाडा, ब्रिटेन आदि का वर्चस्व रहा है। परंतु, अब चूंकि भारत इस क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ बनाता हुआ दिखाई दे रहा है अत: विकसित देश भारत की इस महान उपलब्धि को पचा नहीं पा रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में हाल ही के समय में भारत का एक तरह से वर्चस्व स्थापित होता दिखाई दे रहा है। आज पूरी दुनिया ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत का लोहा मानने लगी है। भारत ने इस क्षेत्र में अमेरिका, रूस एवं चीन जैसे देशों के एकाधिकार को तोड़ा है। भारत आज समूचे विश्व में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम के संबंध में भविष्यवाणी और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से ही संचालित होती हैं, अत: संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग आज समस्त देशों के बीच बढ़ रही है। चूंकि भारतीय तकनीक तुलनात्मक रूप से बहुत सस्ती है अत: कई देश अब इस संबंध में भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इन परिस्थितियों के बीच चंद्रयान-3 की कम लागत में सफल लैंडिंग के बाद वैश्विक स्तर पर व्यवसायिक तौर पर भारत के लिए संभावनाएं पहले से अधिक बढ़ गयी है। आज भारतीय इसरो की, कम लागत और सफलता की गारंटी, सबसे बड़ी ताकत बन गयी है। अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का यह स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहा है और इस क्षेत्र में भारत एक धूमकेतु की तरह बनकर उभरा है। भारतीय इसरो अपने 100 से अधिक अंतरिक्ष अभियान (चन्द्रमा मिशन, मंगल मिशन, स्वदेशी अंतरिक्ष शटल एवं चन्द्रयान-3 सहित) सफलता पूर्वक सम्पन्न कर चुका है। इसलिए कई विकसित देश भारत की इस असाधारण सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं। पूर्व में भी कुछ विकसित देश भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम को सफल होने से रोकने हेतु कुछ बाधाएं खड़ी करने के प्रयास कर चुके हैं। कई बार तो कुछ भारतीय वैज्ञानिकों को ही निशाना बनाने के प्रयास भी किए गए हैं।

इसरो ने पिछले 54 वर्षों के अपने कार्यकाल में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कुछ देश तथा निजी कम्पनियां अंतरिक्ष अनुसंधान का वाणिज्यिक उपयोग करने हेतु प्रयासरत हैं। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार 45,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का था जो आगे आने वाले समय में 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अमेरिका की भागीदारी 56.4 प्रतिशत, यूनाइटेड किंगडम की 6.5 प्रतिशत, कनाडा की 5.3 प्रतिशत, चीन की 4.7 प्रतिशत एवं जर्मनी की 4.1 प्रतिशत है। अब भारत भी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी, जो वर्तमान में 2 प्रतिशत से कुछ अधिक (960 करोड़ अमेरिकी डॉलर) है, को तेजी से आगे बढ़ाना चाहता है। एक अनुसंधान रिपोर्ट (आर्थर डी लिटिल) में यह दावा किया गया है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2040 तक 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। भारत ने इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु 6 मार्च 2019 को न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) को 100 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ बैंगलोर में इसरो की वाणिज्यिक शाखा के रूप में स्थापित किया है।

इसरो की स्थापना के बाद से ही भारत के लिये इसरो ने कई कार्यक्रमों एवं अनुसंधानों को सफल बनाया है। देश में दूरसंचार, प्रसारण और ब्रॉड्बैंड अवसंरचना के क्षेत्र में विकास के लिए इसरो ने उपग्रह संचार के माध्यम से कार्यक्रमों को चलाया है। इन उपग्रहों के माध्यम से भारत में दूरसंचार, टेलीमेडिसिन, टेलीविजन, ब्रॉडबैंड, रेडियो, आपदा प्रबंधन, खोज और बचाव अभियान जैसी सेवाएं प्रदान कर पाना एवं मौसम पूर्वानुमान, संसाधनों की मैपिंग आदि करना संभव हुआ है। वर्ष 2020 में ही केंद्र सरकार ने उपग्रहों की स्थापना और संचालन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति निजी क्षेत्र को दी थी, जिसके परिणामस्वरूप विगत तीन वर्षों में देश में लगभग 150 नए स्टार्टअप्स प्रारम्भ हुए हैं। अप्रैल 2023 में, भारत सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 की घोषणा की है। यह नीति भारत के अंतरिक्ष विभाग की भूमिका को बढ़ाएगी और अनुसंधान, शिक्षा, स्टार्ट-अप और उद्योग को बढ़ावा देगी। भारत की अंतरिक्ष नीति अंतरिक्ष गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में निजी भागीदारी की परिकल्पना करती है और उसे प्रोत्साहित करती है। यह नीति भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलती है, जिससे निजी क्षेत्र को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिलता है।

(लेखक बैंक के सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक हैं)

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