संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में इजराइल और फिलिस्तीन युद्ध को रोकने के लिए पेश किए गए प्रस्ताव से दूरी बनाकर भारत ने फिर साबित किया है कि युद्ध और आतंकवाद को लेकर उसकी नीति और नजरिया दोनों स्पष्ट है। जानना आवश्यक है कि पिछले तीन सप्ताह से जारी इजराइल और फिलिस्तीन युद्ध को रोकने के लिए 22 अरब देशों के एक समूह ने एक ड्राफ्ट तैयार किया और इस प्रस्ताव को जार्डन द्वारा जनरल असेंबली में पेश किया गया। प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। उसका मूल कारण यह रहा कि प्रस्ताव में 7 अक्टूबर को हमास द्वारा इजराइल पर हुए आतंकी हमले का उल्लेख नहीं था। भारत समेत कई देश चाहते थे कि प्रस्ताव में हमले का उल्लेख हो और दुनिया उसकी निंदा करे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। भारत के अलावा ऑस्टे्रलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और यूके सरीखे कई अन्य देशों ने भी इस मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
भारत ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि राजनीतिक मकसद हासिल करने के लिए हिंसा का इस्तेमाल एक साधन की तरह करना बेहद विनाशकारी है। इससे कोई दूरगामी समाधान नहीं निकलने वाला। भारत ने आतंकवाद पर दोहरा नजरिया रखने वाले देशों को आगाह किया कि आतंकवाद की बीमारी किसी सीमा, राष्ट्रीयता और नस्ल को नहीं पहचानती। सभी देशों को चाहिए कि वह एकजुटता दिखाते हुए आतंकवाद के खिलाफ कठोरता से पेश आएं। यह पहली बार नहीं है जब भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों के जरिए आतंकवाद पर अपना कड़ा रुख प्रदर्शित किया है। अभी हाल ही में दिल्ली में संपन्न जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाने का आह्नान किया। उन्होंने जापान के शहर ओसाका में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान पर परोक्ष रूप से जमकर हमला बोलते हुए उसके विरुद्ध मजबूत कदम उठाने की पैरवी की थी। आसियान के जरिए भी भारत अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर समग्र संधि का शीध्र अनुमोदन करने का समर्थन संयुक्त राष्ट्र संघ से कर चुका है। दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो खुलकर आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं। उन्हीं देशों में से एक पाकिस्तान भी है। वह भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाले आतंकियों को पनाह देता है। लेकिन आश्चर्य कि इसके बावजूद भी चीन सरीखे देश उससे कंधा जोड़े हुए हैं। चीन संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के बचाव में बार-बार उतरता देखा जाता है। अमेरिका यह जानते हुए भी कि भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए एकमात्र पाकिस्तान जिम्मेदार है, के बावजूद भी उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई से बचता है। हमास, हिज्बुल्ला और हूती को लेकर भी अरब देशों का रवैया कुछ वैसा ही है। आज अगर विश्व शांति को ग्रहण लग रहा है तो उसके लिए हमास सरीखे आतंकी संगठन ही जिम्मेदार है। ध्यान देना होगा कि जिस तरह शीतयुद्ध से पहले सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते की अवहेलना, बाल्कन समझौते का अतिक्रमण, टर्की पर दबाव, यूनान में हस्तक्षेप, बर्लिन की नाकेबंदी और ईरान से सोवियत सेना के न हटने जैसी स्थिति बनी थी कुछ वैसे ही हालात आज भी बनते दिख रहे हैं।
बेशक शीतयुद्धकालीन विश्व व्यवस्था के निर्धारक तत्व सैनिक कारक थे और आज भूमण्डलीकरण के दौर में उसका स्थान आर्थिक कारकों ने ले लिया है। लेकिन परिस्थितियां पूरी तरह बदली नहीं हैं। अब हथियारों के साथ-साथ मुद्राएं भी टकरा रही हैं। भले ही नाटो, वारसा पैक्ट, सीटो, सेंटो की प्रासंगिकता कम हुई है और उसका स्थान गैट, आसियान, साफ्टा, नाफ्टा और बिमटेस्क ने ले लिया है। लेकिन विश्व के ताकतवर देशों के बीच वर्चस्व की आकांक्षाओं ने मानवता को जंग में धकेल दिया है। नतीजतन आज इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध के कारण पश्चिम एशिया (मध्य-पूर्व) एक बार फिर धधक रहा है। गाजा पट्टी पर काबिज आतंकी संगठन हमास इजराइल पर हमला बोलकर दहलाने की कोशिश में मिटने के कगार पर आ पहुंचा है वहीं इजराइल उसके अस्तित्व को मिटाने की कसम खा चुका है। दोनों देशों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय गोलबंदी ने आग में घी का काम किया है। इजराइल को अमेरिका का खुला समर्थन हासिल है और वह युद्ध में इजराइल के साथ खड़ा भी है। पश्चिमी देशों के अलावा नाटो संगठन भी इजराइल के साथ हैं। वहीं फिलीस्तीन के कट्टरपंथी संगठन हमास को सीरिया, लेबनान और ईरान सरीखे उन देशों का समर्थन हासिल है जिनका मकसद दुनिया में इस्लाम का परचम लहराना है। इस्लामिक जेहादी संगठन खुलकर हमास के साथ हैं। ईरान डंके की चोट पर इजराइल के खिलाफ हमास की मदद कर रहा है। अन्य आतंकी संगठन भी हमास के साथ हंै। दरअसल हमास एवं अन्य जेहादी संगठनों की मंशा इजराइल को नेस्तनाबूंद करना है। दूसरी ओर अमेरिका ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम और मौजूदा तनाव को लेकर पहले से ही भड़का हुआ है। ऐसे में वह हमास को फिलिस्तीन में मजबूत और इजरायल को कमजोर होने नहीं देना चाहता है। अगर संघर्ष बढ़ा तो ईरान और अमेरिका भी आमने-सामने आ सकते हैं। रुस और चीन भले ही युद्ध खत्म करने की बात कर रहे हों लेकिन सच यहीं है कि वह ईरान के साथ खड़े हैं। भारत चाहता है कि इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष बंद हो। भारत कभी भी युद्ध का समर्थन नहीं करता है। विडंबना यह कि वैश्विक समुदाय आतंकवाद को लेकर दोहरी मानसिकता से ग्रस्त है जिसके कारण आतंकवाद पर लगाम लगता नहीं दिख रहा है। नतीजतन युद्ध के हालात गंभीर होते जा रहे हैं। युद्ध और आतंकवाद को तभी टालना-कुचलना संभव होगा जब विश्व समुदाय भारत की सोच और नजरिए से खुद को संबद्ध करेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)