आजकल इजरायल और फिलिस्तीन समर्थक आतंकवादी संगठन हमास के बीच युद्ध चल रहा है। आतंकी पैराग्लाइडिंग पर सवार होकर इजरायल की सीमा में घुसे और हजारों मिसाइलों से हमला बोल दिया था। मिसाइलों के हवाई हमले से बचने के लिए इजरायल ने आयरन डोम अर्थात इस्पाती छत्र विकसित किया हुआ है। लेकिन इस बार यह डोम हमास की मिसाइलों को आसमान में ही ध्वस्त करने में असफल रहा। दरअसल इसके सॉफ्टवेयर अपडेट किए जाते रहे, लेकिन हार्डवेयर अद्यतन नहीं किया गया। नतीजतन आयरन डोम नाम की यह हवाई सुरक्षा प्रणाली अपना लक्ष्य नहीं साध पाई। इसके नाकाम रहने का एक कारण यह भी रहा कि आतंकियों ने एक साथ पांच हजार मिसाइलें दाग दी थीं। जबकि इसकी क्षमता दो हजार मिसाइलों को आसमान में ही नष्ट करने की है। इसका उद्देश्य हवाई हमलों को हवा में ही रोकना है।
इस डोम को दुनिया का सबसे भरोसेमंद हवाई हथियार माना जाता है। जबकि दो साल पहले 2021 में 11 दिन तक चले खूनी संघर्ष में इस डोम ने हवा में दुश्मन की मिसाइलों को मार गिराने का करिश्मा दिखाया था। इस हमले में इजराइल पर 40 घंटों में रॉकेट से 1050 प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) दागी गईं थीं, इनमें 850 से ज्यादा प्रक्षेपास्त्रों को इजरायल की पुख्ता सुरक्षा प्रणाली 'इस्पाती-छत्रÓ ने हवा में ही नष्ट कर दिया था। कुछ प्रक्षेपास्त्र आबाद बस्तियों में भी गिरीं, जिनसे जान-माल को नुकसान हुआ। इजरायल ने इस वक्त दावा किया था कि वह इस लौह-कवच की बदौलत ही सुरक्षित है। दरअसल, इजरायल ने अपने प्रमुख नगर तेल अवीव के चारों ओर पांच इस्पाती छत्र स्थापित किए हुए हैं। ये दागी गईं मिसाइल का पता करके उसे वायुमंडल में ही ध्वस्त कर देते हैं। एक छत्र की कीमत 340 करोड़ रुपए है। ये अमेरिका की आर्थिक और तकनीक मदद से 2011 में निर्मित करके सक्रिय कर दिए गए थे। ये लड़ाकू विमान और द्रोण से छोड़े जाने वाले प्रक्षेपास्त्रों को भी निशाना बनाने में सक्षम हैं। इसमें तामीर इंटरसेप्ट मिसाइलें लगी हैं, जो गाजा पट्टी से होने वाले हवाई हमले के समय स्वयंमेव सक्रिय होकर प्रतिशोध ले लेती हैं। ये मिसाइलें 80 से 90 प्रतिशत सटीक लक्ष्य साधने में सफल रहती हैं।
अब रामायणकालीन ब्रह्म-छत्र की बात करते हैं। राम-रावण युद्ध का तार्किक व वैज्ञानिक चित्रण थाईलैंड (श्यामदेश) की रामायण 'रामकियेनÓ मलेशिया की 'हिकायत सेरीरामÓ पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानी रामायणÓ सुमात्रा की 'ककविन रामायणÓ और लंका की 'जानकी हरणम्Ó में है। इन देशों ने लंका की सामरिक सहायता भी की थी। दरअसल, दक्षिण एशियाई देशों की रामायणों में भगवान राम को 'महामानवÓ माना, जबकि भारतीयों ने ईश्वर माना। अतएव युद्ध में प्रयोग में लाए गए अस्त्र-शस्त्र, ब्रह्म-छत्र व अन्य सुरक्षा प्रणालियां गौण रह गईं। इनका स्थान अलौकिक चमत्कारों ने ले लिया।
डॉ. फादर कामिल बुल्के ने 'राम-कथा उत्पत्ति और विकासÓ तथा मदन मोहन शर्मा के उपन्यास 'लंकेश्वर' में उपरोक्त रामायणों को आधार बनाकर युद्ध का वर्णन अत्यंत विज्ञान-सम्मत व सुरुचिपूर्ण ढंग से किया है। अनेक अस्त्र-शस्त्र के निर्माण व उपयोग के वर्णन के साथ ब्रह्म-छत्र का भी उल्लेख है। इस लेखक के उपन्यास 'दशावतारÓ में भी ब्रह्म-छत्र का उल्लेख है। रावण ने लंका को संकटकाल में सुरक्षित रखने की दृष्टि से ब्रह्म-छत्र का निर्माण कराया था। आवश्यकता पड़ने पर इस छत्र से लंका को ढक दिया जाता था। ऐसा करने से लंका एक सुरक्षा-कवच की छाया में आ जाती थी। इस पर यानों से छोड़े जाने वाले विस्फोटक और प्रक्षेपास्त्र भी बेअसर रहते थे।
इसी तरह का छत्र राजस्थान के रावतभाटा परमाणु संयंत्र को आपात स्थिति में मिसाइल हमले से सुरक्षित रखने के लिए भी किया जा रहा है। यह 570 टन वजन का होगा। इस इस्पाती संरचना में 370 टन लोहा, करीब 2020 क्यूबिक मीटर सीमेंट और गिट्टी बिछाई जाएगी। यह भारत का पहला आयरन डोम है। इसे सुरक्षित रखने के लिए बतौर आवरण एक और छत्र निर्मित किया जाएगा। बहरहाल भारत और इजराइल के छत्रों से पता चलता है कि रामायणकालीन ब्रह्म-छत्र का अस्तित्व होना कोई कोरी कल्पना या मिथकीय वर्णन नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं)