ISRO ने फिर रचा इतिहास

Update: 2020-12-18 10:24 GMT
योगेश कुमार गोयल

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एकबार फिर अंतरिक्ष में सफलता का नया इतिहास रचा है। भारत द्वारा 17 दिसम्बर को चेन्नई से 120 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र के दूसरे लांच पैड से पीएसएलवी-सी50 रॉकेट के जरिये अपना 42वां संचार उपग्रह 'सीएमएस-01' सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इसरो के 320 टन वजनी पीएसएलवी-सी50 रॉकेट ने 20 मिनट की उड़ान के बाद सीएमएस-01 (पूर्व नाम जीसैट-12आर) को उसकी तय कक्षा जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) में पहुंचा दिया और अब इस कक्षा में आगे की यात्रा यह उपग्रह स्वयं पूरी करेगा। पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) रॉकेट का यह 52वां मिशन था और पीएसएलवी-एक्सएल रॉकेट (छह स्ट्रेपऑन मोटर से संचालित) की 22वीं सफल उड़ान थी।

सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसरो का यह 77वां लांच मिशन था। इसरो के मुताबिक चार दिनों में सीएमएस-01 अपनी कक्षा के तय स्थान पर तैनात हो जाएगा। सीएमएस-01 को पृथ्वी की कक्षा में 42164 किलोमीटर के सबसे दूरस्थ बिन्दु पर स्थापित किया गया है। इस कक्षा में स्थापित होने पर यह सैटेलाइट अब पृथ्वी के चारों तरफ उसी की गति से घूमेगा और पृथ्वी से देखे जाने पर आकाश में एक जगह खड़े होने का भ्रम देगा।

सीएमएस-01 उपग्रह के जरिए सी-बैंड फ्रीक्वेंसी को मजबूती मिलेगी। सीएमएस-01 को मोबाइल फोन से लेकर टीवी तक के सिग्नलों के स्तर को सुधारने के लिए तैयार किया गया है, जो भारत के जमीनी इलाकों के अलावा अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप को भी कवर करने वाले फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम के विस्तारित सी-बैंड में सेवाएं मुहैया करेगा। इस उपग्रह की मदद से देश में टीवी संचार को लेकर नई तकनीक विकसित की जा सकेगी और यह उपग्रह मोबाइल-टीवी सिग्नल को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होगा। इसके जरिये टीवी संचार प्रणाली, टीवी से संबंधित संचार प्रणालियों और व्यवस्थाओं को परिष्कृत करने का अवसर मिलेगा। सीएमएस-01 की मदद से टीवी चैनलों की दृश्य गुणवत्ता बेहतर होने के अलावा सरकार को टेली-एजुकेशन, टेली-मेडिसन को आगे बढ़ाने तथा आपदा प्रबंधन के दौरान मदद मिलेगी। यह उपग्रह 11 जुलाई 2011 को लांच किए गए संचार उपग्रह 'जीसैट-12' का स्थान लेगा, जो आगामी सात वर्षों तक एक्सटेंडेड सी-बैंड फ्रिक्वेंसी स्पेक्ट्रम में अपनी बेहतर सेवाएं देता रहेगा। जीसैट-12 की मिशन अवधि आठ वर्ष की थी, जो पूरी हो चुकी है।

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन के मुताबिक कोरोना महामारी के दौर में भी इसरो ने कड़ी मेहनत की है और यह पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। दरअसल सीएमएस-01 महामारी के इस दौर में इस साल देश का दूसरा और अंतिम प्रक्षेपण था। इससे पहले 7 नवम्बर को इसरो ने पीएसएलवी-सी49 के जरिये भू-निगरानी उपग्रह 'ईओएस-01' को 9 अन्य विदेशी उपग्रहों के साथ प्रक्षेपित किया था। 'ईओएस-01' अर्थ ऑब्जर्वेशन रीसैट उपग्रह की ही एक एडवांस्ड सीरीज है, जो कृषि, वानिकी और आपदा प्रबंधन सहायता में प्रयोग किया जाने वाला पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है। यह एक ऐसा अग्रिम रडार इमेजिंग उपग्रह है, जिसका सिंथैटिक अपरचर रडार बादलों के पार भी दिन-रात तथा हर प्रकार के मौसम में स्पष्टता के साथ देख सकता है और इसमें लगे कैमरों से बेहद स्पष्ट तस्वीरें खींची जा सकती हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण इस उपग्रह के जरिये न केवल सैन्य निगरानी में मदद मिलेगी बल्कि कृषि, वानिकी, मिट्टी की नमी मापने, भूगर्भ शास्त्र और तटों की निगरानी में भी यह काफी सहायक साबित होगा। कोरोना काल से ठीक पहले इसरो द्वारा 17 जनवरी 2020 को यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एरियनस्पेस के एरियन-5 रॉकेट के जरिये संचार उपग्रह 'जीसैट-30' प्रक्षेपित किया गया था।

इसरो द्वारा हाल ही में अपने उपग्रहों के नाम उसके वर्ग के आधार पर रखने का फैसला किया गया था और 'सीएमएस-01' पहला ऐसा संचार उपग्रह है, जिसे इसरो ने इस नई उपग्रह नामकरण योजना के तहत कक्षा में स्थापित किया है। इससे पहले इसरो ने अपने भू-निगरानी उपग्रह का नाम 'ईओएस' रखा था। अब संचार उपग्रह का नामकरण 'सीएमएस' किया गया है। संचार उपग्रह 'सीएमएस-01' के सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो का अगला प्रक्षेपित किया जाने वाला रॉकेट पीएसएलवी-सी51 होगा, जो फरवरी-मार्च 2021 में लांच किया जाएगा। पीएसएलवी-सी51 का प्राथमिक पेलोड 600-700 किलोग्राम वजनी ब्राजील का उपग्रह होगा। पीएसएलवी-सी51 भारत के पहले स्टार्टअप (पिक्ससेल) निर्मित भू-निगरानी उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष में जाएगा। पीएसएलवी-सी51 इसके साथ 'स्पेसकिड्ज' टीम के तहत छात्रों द्वारा निर्मित संचार उपग्रह और तीन विश्वविद्यालयों के समूह द्वारा निर्मित एक अन्य उपग्रह को भी लेकर जाएगा।

पीएसएलवी इसरो द्वारा संचालित एक ऐसी उन्नत प्रक्षेपण प्रणाली है, जिसे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष की कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया है। यह एक चार चरण/इंजन वाला ऐसा रॉकेट है, जो ठोस तथा तरल ईंधन द्वारा वैकल्पिक रूप से छह बूस्टर मोटर्स के साथ संचालित किया जाता है और शुरुआती उड़ान के दौरान उच्च गति देने के लिए पहले चरण पर स्ट्रैप होता है। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेज सकने में सक्षम है और पीएसएलवी की सहायता से अभीतक सत्तर से भी ज्यादा अंतरिक्ष यानों को विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किया जा चुका है।

बहरहाल, कोरोना की वजह से प्रभावित हुए अपने मिशनों को पूरा करने में इसरो अब जी-जान से जुटा है। इसरो प्रमुख के. सिवन के अनुसार इसरो टीम का शेड्यूल बेहद व्यस्त है क्योंकि इसरो टीम को आनेवाले समय में चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 उपग्रह, भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान और स्मॉल रॉकेट स्मॉल सेटेलाइट लांच व्हीकल (एसएसएलवी) का प्रक्षेपण करना है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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