अंतरज्योति जलाने का महापर्व दीपावली

मुकेष ऋषि

Update: 2023-11-11 19:00 GMT

अंधियारा दूर करने का पावन महापर्व है दीपावली। अंधियारा दूर करने हेतु व्यक्ति दीया जलाता है और खुशियां मनाता है। इसे प्रकाश पर्व की भी संज्ञा दी जाती है। अंधियारा पर उजाला, असुरत्व पर देवत्व, अवगुण-दुर्गुण पर सद्गुण, व्यसन पर सृजन, बुराई पर अच्छाई, बंधन से मुक्ति, दुष्कर्म पर सत्कर्म, अनीति पर नीति, कलुषता पर स्वच्छता, गंदगी की जगह सफाई, अधर्म पर धर्म के विजय का तथा अंतर्तिमिर मिटाने का, अंतरज़्योति जलाने का पावन पर्व है दीपोत्सव।

चंवर से मिट्टी लाकर बहुत लगनपूर्वक, श्रद्धा, प्रेम, परिश्रम से व्यक्ति दीप निर्मित करता है और उसमें श्रद्धा, स्नेह, प्रेम का घृत, पुरूषार्थ की बाती डालकर ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वल्लित करता है। वही दीप अंधियारा को मिटाने में सफल होता है और सर्वत्र खुशियों का उजाला जगमग करने लगता है। बाह्य जगत का अंधियारा तो दीप प्रज्ज्वलित करके जिस प्रकार मिटाना संभव है, उसी प्रकार अंत:करण का अंधियारा मिटाना भी संभव है। लेकिन इसके लिए अंतर्दीप प्रज्ज्वलित करना ही दीया जलाने का प्रमुख उद्देश्य है। अंत:करण का जब दीप प्रज्ज्वलित होता है तो ही यह मानव जीवन सार्थक बन पाता है। तभी सच्ची खुशियां, आनंद, सुख, शांति, आमोद-प्रमोद, प्रेम, भाई-चारा, दया, करूणा, सद्भावना, आत्मीयता की प्रखर किरण मनोभूमि, अंत:करण में प्रस्फुटित होती है। इसके अभाव में तो अंतस से कलुषता, तमस का आसुरी साम्राज्य जड़ें जमाए बैठी रहती है। इस कारण से सर्वत्र बुराई, ईर्ष्या, द्वेष, कलह, अशांति, अत्याचार, अनाचार, अनीति, पापाचार, छीन-झपट, बेईमानी, शैतानी, दु:ख, असुरता की विजय पाताका फहराता रहता है। सभी प्राणी में उसी परमात्म चेतना की ज्योति प्रतिष्ठित है, पर उस दहकते हुए अंगार पर दुर्गुणों की गंदगी, राख जन्म-जन्मांतर के चढ़े होते हैं। उसी कारण आत्मदीप मलिन व बुझे जैसे रहते हैं। पुन: ईश्वर भजन, सत्संग, सत्कर्म, पूजन, अर्चन, प्राणायाम, योग करके उस गंदगी, राख को हटाकर आत्मदीप प्रज्ज्वल्लित करना संभव हो पाता है, जब आत्मदीप प्रज्ज्वल्लित होता है, तभी सच्ची दीपावली मनाना संभव हो पाता है। जड़ता को हटाकर चेतना को जाग्रत करना ही प्रज्ज्वल्लित दीपक की प्रेरणा व संदेश है। दीपक जलता है तो उसका वंदन, पूजन जयकार होता है और दीपक बुझने के पश्चात् उसे कीचड़ में फेंक दिया जाता है। ठीक उसी प्रकार आत्मदीप प्रज्ज्वल्लित करके ही जीवन की गरिमा, वंदन, पूजन, जयकार संभव है। अन्यथा आत्मा के निकलने के पश्चात् यह शरीर उस बुझे हुए दीपक की भांति मिट्टी में मिल जाता है। व्यक्ति अगर अपनी आत्म चेतना को जगाकर भटके हुए को राह दिखाने, उसके अंदर के दीप को प्रज्ज्वल्लित करने, दुखियों को सहारा देने, गले लगाने का प्रयास प्रयत्न किया, दुर्गुण-बुराई को हटाने का पुरूषार्थ करने में सफल हुआ तो दीपक, बाती, घृत का उपयोग दीपावली पर्व पर सार्थक माना जायेगा। अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़कर चेतना को प्रखर, अत्यधिक प्रकाशित, पूर्ण प्रज्ज्वल्लित करने का पावन दिवस है दीपावली महापर्व और संदेश।

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