नरक चतुर्दशी 11 नवंबर शनिवार को है। इसे रूप चतुर्दशी के साथ-साथ नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि के अंत में जिस दिन चंद्रोदय के समय चतुर्दशी हो, उस दिन सुबह दातुन आदि करके निम्नलिखित श्लोक का जाप करें-'यमलोकदर्शनाभवकामो अहमभ्यंकस्नानं करिश्येÓ-कह कर संकल्प करें। शरीर में तिल के तेल आदि का उबटन लगा लें। हल से उखाड़ी मिट्टी का ढ़ेला, अपामार्ग आदि को मस्तक के ऊपर बार-बार घुमाकर शुद्ध स्नान करें। वैसे तो कार्तिक स्नान करने वालों के लिए-'तैलाभ्यंग तथा शययां परन्ने कांस्यंभोजनम्। कार्तिक वर्जयेद् यस्तु परिपूर्णव्रती भवेतÓ के अनुसार वर्जित है, निषेध है, लेकिन-'नरकस्य चतुर्दश्यां तैलाभ्यंग च कारयेत्। अन्यत्र कार्तिक स्नायी तैलाभ्यंग विवर्जयेत्।।Ó के अनुसार नरक चतुर्दशी में तेल लगाना अति आवश्यक है। सूर्योदय से पूर्व नहाना अयुर्वेद की दृष्टि से अति उत्तम है। जो ऐसा हर दिन नहीं कर पाते, उन्हें कम से कम आज के दिन तो सूर्योदय के पूर्व अवश्य नहाना चाहिए। नहाने के जल में हल्दी और कुमकुम अवश्य डालना चाहिए। संभव हो तो नए वस्त्र पहनने चाहिए। फिर यम तर्पण करना चाहिए। शाम को यमराज के लिए दीपक अवश्य जलाना चाहिए। इस दिन कृष्ण भगवान ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। साथ ही राजा बलि को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का दिन नरक चतुर्दशी का पर्व माना जाता है। इस दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए प्रात: काल तेल लगाकर अपामार्ग (चिड़चड़ी) पौधा के सहित जल से स्नान करना चाहिए। इस दिन शाम को यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण जी ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार किया था। कथा: प्राचीन समय में 'रन्तिदेवÓ नामक राजा थे। वे पहले जन्म में धर्मात्मा, दानी थे। उसी पूर्वकृत कर्मोंं से इस जन्म में भी राजा ने अपार दानादि देकर सत्य कार्य किए। जब उनका अन्त समय आया तब यमराज के दूत उन्हें लेने आये। बार-बार राजा को लाल-लाल आंखें निकाल कर वे कह रहे थे-राजन्! नरक में चलो, तुम्हें वहीं चलना पड़ेगा। इस पर राजा घबराया और नरक में चलने का कारण पूछा। यम के दूतों ने कहा-राजन! आपने जो कुछ दान-पुण्य किया है, उसे तो अखिल विश्व जानता है किन्तु पाप को केवल भगवान और धर्मराज ही जानते हैं। राजा बोले-उस पाप को मुझे भी बताओ जिससे उसका निवारण कर सकूं। यमदूत बोले-एक बार तुम्हारे द्वार से भूख से व्याकुल एक ब्राह्मण लौट गया था, इससे तुझे नरक में जाना पड़ेगा। यह सुन राजा ने यमदूतों से विनती की कि मेरी मृत्यु के बाद सद्य: ही मेरी आयु एक वर्ष बढ़ा दी जाए। इस विषय को दूतों ने बिना सोच-विचार किये ही स्वीकार कर लिया और राजा की आयु एक वर्ष बढ़ा दी गई। यमदूत चले गये। राजा ने ऋषियों के पास जाकर इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषियों ने बतलाया-हे राजन! आप कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को व्रत रहकर भगवान कृष्ण का पूजन करें, ब्राह्मण-भोजन करावें तथा दान देकर सब अपराध सुनाकर क्षमा मांगें, तब आप पापमुक्त हो जाएंगे। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आने पर राजा ने नियमपूर्वक व्रत किया और अन्त में विष्णुलेाक को प्राप्त किया।