मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं, द्वितीय बहुसंख्यक

विदेशी अखबारों के झरोखे से

Update: 2023-12-25 20:43 GMT

 डॉ. सुब्रतो गुहा

द्वितीय बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक: भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमारे समाचार पत्र को एक विस्तृत साक्षात्कार नई दिल्ली में दिया। जब उनसे प्रश्न पूछा गया कि भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों का क्या भविष्य है, तब भारत के बीस करोड़ मुस्लिमों का क्या भविष्य है, तब भारत के बीस करोड़ मुस्लिमों का उल्लेख नहीं करते हुए नरेन्द्र मोदी ने उत्तर दिया- 'भारत में पारसी अल्पसंख्यक बहुत कम संख्या में है, परन्तु भले ही विश्व के अन्य स्थानों पर पारसियों को अत्याचार सहना पड़ा हो, भारत में पारसियों को सदैव ही एक सुरक्षित वातावरण में आश्रय मिाल है और वे निरंतर प्रगति और समृद्धि पथ पर बढ़ते रहे हैं। इससे प्रमाणित होता है कि भारतीय समाज में किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से भेदभाव नहीं होता।Ó

- द फायनेंशियल टाईम्स, लंदन

(टिप्पणी- दिनांक इक्कीस दिसंबर के अंक में फायनेंशियल टाईम्स के रौला खलाफ जान रीड था बेंजामिन पार्कर द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का वृहद्ध साक्षात्कार प्रकाशित हुआ। इस साक्षात्कार का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि जब प्रधानमंत्री मोदी से भारत के बीस करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यकों के भविष्य के बारे में पूछा गया तब उन्होंने उत्तर में पारसी अल्पसंख्यकों की प्रगति और भविष्य के बारे में बताया। वर्तमान में लगभग साठ हजार पारसी अल्पसंख्यक भारत में है और पारसी समुदाय सही अर्थ में अल्पसंख्यक है। विश्व के सभी देशों में यह मान्यता है कि देश की जनसंख्या में दस प्रतिशत से कम जनसंख्या वाला धार्मिक समुदाय अल्पसंख्यक है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम जनसंख्या चौदह दशमलव दो प्रतिशत थी, जो 2023 तक बढ़कर लगभग अठारह प्रतिशत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में 79 हिन्दू बहुसंख्यक के बाद अठारह प्रतिशत वाले मुस्लिम द्वितीय बहुसंख्यक हुए, न कि अल्पसंख्यक। फिर भी 1993 में स्थापित राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष पद पर 1993 में मोहम्मद सरदार अली खान से लेकर 2014 तक केवल मुस्लिम ही नियुक्त हुए। 2014 के बाद सिख समाज के इकबाल सिंह जालपुर तथा वर्तमान में पारसी समुदाय की स्मृति ईरानी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की अध्यक्षा है। जब जागो, तब सवेरा।)

अपराधी को कष्ट से बचाओ: भारतीय संसद के दोनों सदनों ने भारत सरकार द्वारा ब्रिटिशकालीन आपराधिक दंड संहिता में भारी परिवर्तन संबंधी तीन विधेयकों को पारित कर दिया। इन परिवर्तनों में सामूहिक बलात्कार के लिए बीस वर्ष कारावास, नाबालिग बालिकाओं से बलात्कार के लिए मृत्युदंड तथा माब लिंचिंग या भीड़ द्वारा पीट पीटकर हत्या के प्रकरण में भी मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। पहली बार आतंकवाद को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हुए आजीवन कारावास सहित कटोरतम दंड का प्रावधान किया गया है।

- गल्फ निऊज, दुबई

(टिप्पणी- भारतीय आपराधिक दंड संहिता में विभिन्न प्रकार के जघन्य अपराधों के लिए कठोरतम दंड का कानून बनते ही भूमिगत अपराधी तो विरोध में सार्वजनिक बयान नहीं दे पा रहे हैं, परन्तु भूमि के ऊपर रहने वाले उनके रहनुमा और उनके कल्याण के लिए मर मिटने को तत्पर उदारवादी प्रगतिवादी और मानवाधिकारवादी झंडाबरदार मानवाधिकार हनन का हवाला देकर घनघोर विरोध के स्वर मुखरित कर रहे हैं। अब अपराधियों और आतंकवादियों के लिए कठोरतम कानूनों से आप चिंतित या परेशान हैं क्या? उत्तर है कदापि नहीं, क्योंकि आपका अपराध या आतंकवाद से कोई सरोकार नहीं है। अब परेशान तो वे लोग होंगे जो भविष्य में ऐसे अपराध करने की सोच रहे हैं या फिर जिनकी मित्र मंडली में ऐसे तत्व शामिल है। राज को राज रहने देंगे या राज से पर्दा उठाएंगे?)

विशेष वर्ग को विशेष सुविधा: भारत में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा और सुविधा देने वाली धारा 370 एवं धारा 35ए को समाप्त करने के कदम को अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी रूप से सही मान्य किया है। इस घटनाक्रम से जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम रहवासियों में चिंता और डर का माहौल है। साथ ही क्रोध एवं आक्रोश भी है। श्रीनगर विश्वविद्यालय के छात्र इरशाद अहमद ने हमारे अल जजीरा संवाददाता से कहा - सन 2019 में धारा 370 एवं 35एं के समापन के बाद भारत सरकार ने गलत एवं विवादास्पद कानून पारित किए है, जिसके अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य के बाहर भारत के अन्य हिस्सों के लोग को जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने और बसने तथा वे अधिकार मिल गए, जिससे मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या असंतुलन द्वारा मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बना दिया जाए। साथ ही जम्मू-कश्मीर में बहुसंख्यक मुस्लिमों को विशेष सुविधाएं देने वाले कानून समाप्त कर समग्र भारत में प्रचलित कानून लागू कर दिए गए।

- अल जजीरा, दोहा, कतर

(टिप्पणी- धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार साम्राज्य भारतीय नागरिक तो दूर की बात - भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदकर वहां बसने का अधिकार नहीं था। धारा 35ए के अनुसार यदि जम्मू-कश्मीर की कोई महिला राज्य के बाहर के किसी पुरुष से विवाह करती तो पारिवारिक संपत्ति पर उसके सभी अधिकार समाप्त हो जाते, जबकि जम्मू-कश्मीर का पुरुष यदि शेष भारत या पाकिस्तान की महिला से विवाह करता तो उस पुरुष की पारिवारिक संपत्ति पर अधिकार बना रहता और शेष भारत या पाकिस्तान की उस महिला को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती, अनेकों पाकिस्तानी आतंकवादी महिलाएं इस तरह जम्मू-कश्मीर की नागरिक बनी। विशेष वर्ग का विशेष सुविधा पर जन्मसिद्ध अधिकार।)

(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)

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