मनोरोग की चपेट में दुनिया की एक तिहाई आबादी

ज्ञानेन्द्र रावत;

Update: 2023-11-16 20:11 GMT
मनोरोग की चपेट में दुनिया की एक तिहाई आबादी
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समूची दुनिया में मानसिक रोग से पीड़ित लोगों की तादाद दिनों दिन तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के कई अध्ययन इसके सबूत हैं कि मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों की संख्या डेढ़ गुना तक बढ़ गयी है। दुनिया के 64 देशों के तकरीब चार लाख लोगों पर किया गया अध्ययन इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियों से ग्रस्त हैं। यह भी कि कोविड महामारी के बाद से लोगों के स्वास्थ्य स्तर में कोई सुधार नहीं हुआ है। हालात गवाह हैं कि मानसिक समस्याओं से जूझ रहा हर तीसरा व्यक्ति अवसाद और एंजाइटी का शिकार है। आत्महत्या का विचार पनपने के पीछे भी यही अहम कारण है। यदि साल 2021 को ही लें तो पता चलता है इस दौरान अकेले भारत में कुल मिला कर 1,64,033 आत्महत्याएं हुईं। इस साल कुल संख्या के मामले में 2020 की तुलना में 7.2 फीसदी की बढो़तरी हुई । इसके मुताबिक प्रतिदिन देश में 450 आत्महत्याएं हुईं। यह भयावह स्थिति है। दि मेंटल स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि लाख कोशिशों के बावजूद आज भी मानसिक स्वास्थ्य मजबूत करने की दिशा में विफलता इस रोग की बढो़तरी का अहम कारण है। उस हालत में जबकि हमारे यहां आज 9,800 से ज्यादा मनोचिकित्सक हैं और तकरीब 3,400 क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट मौजूद हैं। यह भी कटु सत्य है कि आज देश में 10 साल पहले के मुकाबले कहीं अधिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी को झुठलाया नहीं जा सकता। हकीकत यह है कि यदि आज मेडीकल की पढा़ई करने वाला हरेक छात्र भी मनोचिकित्सक बन भी जाये तो उस हालत में भी मनोरोग का इलाज करने वाले पर्याप्त चिकित्सक नहीं हो पायेंगे। क्योंकि देश में कुल बीमारियों में मानसिक विकारों का योगदान दोगुना से भी बहुत ज्यादा है। इसमें 1990 के दशक से तकरीब दोगुने से ज्यादा बढो़तरी दर्ज की गयी है। आंकडो़ं के हिसाब से देखें तो देश में कुल आबादी के 14 फीसदी से ज्यादा लोग मानसिक रोग के शिकार हैं। इसमें भी 29 साल से 40 की उम्र वाले बहुतायत में मानसिक समस्या के शिकार हैं। इस बारे में यदि मानसिक समस्याओं से पीड़ित लोगों को नि:शुल्क परामर्श देने वाले सायरस एण्ड प्रिया वांडरेवाला फाउंडेशन की मानें तो मानसिक समस्याओं को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और लोग व्हाट्स अप के माध्यम से संवाद कर रहे हैं। करीब 53 फीसदी महिलाएं और 42 फीसदी से ज्यादा पुरुष व्हाट्स अप चैट के माध्यम से अपनी समस्याएं साझा कर रहे हैं। फाउंडेशन की प्रमुख प्रिया हीरानंदानी का इस बारे में कहना है कि हमसे संपर्क करने वाले एक तिहाई लोग एंजाइटी, अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति से जूझ रहे हैं। यह चिंताजनक स्थिति है।

यदि मानसिक समस्या के चलते आत्महत्या करने वालों का जायजा लें तो पता चलता है कि दुनिया भर में आत्महत्या के मामले बढ़ना बेहद चिंतनीय है। हर 40 सेकेण्ड में कोई एक आत्महत्या कर रहा है। इसमें पिछले 20 सालों में तेजी से इजाफा हुआ है। बीते साल विश्व में 8 लाख लोगों ने आत्महत्या की जिनमें 1.64 लाख से ज्यादा लोग भारत के थे। गौरतलब है कि जीवन का अंत करने से किसी समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि आत्महत्या करने से प्रभावित पूरा परिवार आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक समस्याओं में फंस जाता है। एक आत्महत्या तकरीब 135 लोगों को प्रभावित करती है। यह आवेश में लिया गया कदम है। यदि आप आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के दिमाग को दूसरी दिशा में मोड़ सकते हैं तो आप उसकी जान बचा सकते हैं। इहबास के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डा. ओम प्रकाश कहते हैं कि हमारे पास ज्यादातर मूड खराब,अवसाद, घबराहट,नींद न आने, तनाव आदि समस्याओं के रोगी आते हैं। उनके अनुसार हम आत्महत्या के मिथक और बचाव को हैल्पलाइन टेली मानस के जरिये लोगों को जागरूक कर रहे हैं। दिल्ली में हर रोज 50-60 काल हैल्पलाइन पर लोग करते हैं। उसके जरिये हम लैगों की समस्याएं दूर करते हैं। टेली मानस समाज के कमजोर समूहों के साध बुजुर्गों और ग्रामीण समूहों तक अपनी सेवायें पहुंचा रहा है।

इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि मौजूदा हालात में भागमभाग की जिंदगी भी मानसिक बीमारियों की अहम वजह है। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन इसमें सबसे दुखदायी बात यह है कि लोग इसके बावजूद भी मनोचिकित्सक के पास जाना नहीं चाहते। इसमें मानसिक चिकित्सा सुविधाओं की कमी भी एक सबसे बडी़ वजह है। इस संदर्भ में मेंटल हैल्थ फाउंडेशन इंडिया और एम्स के डाक्टरों का प्रयास प्रशंसनीय है। उन्होंने मिलकर एक बेव पोर्टल द्धड्डश्चश्च4द्घद्बह्लद्बठ्ठस्रद्बड्ड. द्वद्धद्घद्बठ्ठस्रद्बड्ड.शह्म्द्द तैयार किया है । इसके माध्यम से लोग खुदबखुद अपने मानसिक स्वास्थ्य का ऑनलाइन परीक्षण कर सकते हैं। इस बारे में एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डा0 नंद कुमार कहते हैं कि यह पहल मानसिक बीमारियों से बचाव और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखने में मददगार साबित होगी। इस पोर्टल के जरिये तीन मिनट में अपने मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया जा सकता है। हर मानसिक परेशानी के इलाज के लिए दवा की जरूरत नहीं होती। बगैर दवा के भी योग,जीवनशैली में बदलाव और ध्यान आदि से भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। यदि पोर्टल पर परामर्श के बाद भी मानसिक परेशानी दूर नहीं होती है तो चिकित्सक का परामर्श लेना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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