इस बात में कुछ गलत नहीं है कि कोई राजनीतिज्ञ किसी अन्य राजनीतिज्ञ की नीति और विचारधारा से सहमत नहीं हो और उस आधार पर उसे नापसंद करे और उसका विरोध करे लेकिन देश के प्रधानमंत्री पद पर जो व्यक्ति बैठा है उसके खिलाफ अमर्यादित बातें कहना सर्वथा अनुचित है। विपक्षी गठबंधन की ओर से कई नेता प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने को आतुर तो दिख रहे हैं लेकिन इस पद की गरिमा और सम्मान का उन्हें जरा भी खयाल नहीं है। प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपशब्द बोलने का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ है जोकि दिन पर दिन लोकतंत्र को शर्मसार कर रहा है। देखा जाये तो प्रधानमंत्री को अपशब्द बोलने के अभियान का नेतृत्व कांग्रेस नेता राहुल गांधी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने के लिए देश को जातिवाद की आग में झोंक देने को आतुर दिख रहे राहुल गांधी की नजर में पीएम का मतलब है पनौती मोदी। राजस्थान की एक चुनावी सभा में राहुल गांधी ने जब पीएम शब्द की अपने शब्दों में व्याख्या की तो सभी चौंक गये क्योंकि उनके परिवार से तीन लोग प्रधानमंत्री रह चुके हैं और उनकी माँ सोनिया गांधी भी प्रधानमंत्री बन गयी होतीं यदि उनके विदेशी मूल का मुद्दा ऐन वक्त पर आड़े नहीं आया होता। हम आपको यह भी बता दें कि यह वही राहुल गांधी हैं जिन्होंने डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल के दौरान उनका विधेयक सरेआम फाड़ कर प्रधानमंत्री पद के प्रति अपने असम्मान का खुलेआम प्रकटीकरण किया था।
राहुल गांधी मोदी को पनौती कह रहे हैं तो उनकी पार्टी के रिमोट कंट्रोल से संचालित माने जाने वाले अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे प्रधानमंत्री के पिता को सार्वजनिक रूप से अपशब्द कह रहे हैं। प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की दौड़ में कहीं राहुल और खरगे आगे ना निकल जायें इसके लिए विपक्षी गठबंधन इंडी के घटक दल भी सक्रिय हो गये हैं। अगला चुनाव मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल होने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पनौतियों का सिकंदर करार देते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल रही है। यह सब देख प्रधानमंत्री पद पाने का सपना काफी अरसे से पाले हुए बैठीं ममता बनर्जी भी सक्रिय हो गयी हैं और भाजपा तथा प्रधानमंत्री पर हमला करते हुए उन्होंने कहा है कि 'भारतीय टीम ने इतना अच्छा खेला कि उन्होंने विश्व कप में सभी मैच जीते, सिवाय उस मैच को छोड़कर जिसमें पापी लोगों ने भाग लिया था।Ó जाहिर है जब विपक्षी पार्टियों के बड़े नेता प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसे उद्गार व्यक्त कर रहे हैं तो उनके कार्यकर्ता और भी आगे जाकर टिप्पणियां करेंगे। इसलिए आप सोशल मीडिया के किसी भी मंच पर चले जाइये प्रधानमंत्री के खिलाफ अमर्यादित बातें कहने के अभियान का असर आपको वहां पर साफ दिख जायेगा।
देखा जाये तो लोकतंत्र में इस बात में कुछ गलत नहीं है कि कोई राजनीतिज्ञ किसी अन्य राजनीतिज्ञ की नीति और विचारधारा से सहमत नहीं हो और उस आधार पर उसे नापसंद करे और उसका विरोध करे लेकिन देश के प्रधानमंत्री पद पर जो व्यक्ति बैठा है उसके खिलाफ अमर्यादित बातें कहना सर्वथा अनुचित है। यदि प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध भी प्रकट करना है तो उसे ससम्मान किया जाना चाहिए। इसके अलावा जिस तरह प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात को निशाना बनाया जा रहा है वह तो और भी गलत है। एक राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना एक राज्य के प्रति नफरत फैलाने के समान है कि अगर क्रिकेट विश्व कप का फाइनल मैच कोलकाता या मुंबई में खेला जाता तो भारत जीत जाता। इसके अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस अंदाज में मारवाड़ी और गुजराती शब्द का प्रयोग करते हुए गुजरात पर कटाक्ष किया है वह भी सर्वथा अनुचित है।
जिस तरह विपक्ष के नेता गुजरात और गुजरातियों के प्रति अपनी नफरत का इजहार कर रहे हैं उससे उनके उन दावों पर भी सवाल उठता है जिसके तहत वह मुहब्बत की दुकान खोलने का दावा करते हैं। हम आपको बता दें कि राहुल गांधी कई जनसभाओं में कह चुके हैं कि आपकी जेब से पैसा निकाल कर गुजरात के व्यापारियों की जेब में डाला जा रहा है। इसी लाइन को अन्य विपक्षी नेता भी थोड़ा-बहुत घुमा फिराकर दोहराते हैं। यहां सवाल उठता है कि मोदी से नफरत करते करते यह नेता क्यों गुजरात की हर चीज से नफरत करने लगे हैं? देखा जाये तो देश की अर्थव्यवस्था में गुजरात सर्वाधिक योगदान देने वाले राज्यों में शुमार है। महात्मा गांधी और सरदार पटेल का यह प्रदेश अहिंसा और एकता का संदेश देता है। व्यापारिक गतिविधियों का यह केंद्र प्रदेश देशभर के नौजवानों के लिए रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है।
बहरहाल, जो लोग गुजरात, गुजरातियों और वहां स्टेशन पर चाय बेचने से लेकर देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने वाले नेता से नफरत का इजहार कर रहे हैं वह दरअसल अपनी खीझ प्रकट कर रहे हैं क्योंकि जीवन ने उन्हें सर्वाधिक अवसर और बेहतर हालात तथा पर्याप्त संसाधन दिये लेकिन वह उसका कभी सदुपयोग नहीं कर पाये। अपने कर्मों की बदौलत अपने राज्य को अंधेरे में धकेलने वाले नेताओं से यदि गुजरात की चकाचौंध नहीं देखी जा रही है तो इसके लिए उन्हें नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार बताने की बजाय अपने गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए।
(लेखक स्तंभकार हैं)