पश्चिम एशिया (मध्य-पूर्व) एक बार फिर जंग के मैदान में है। गाजा पट्टी पर काबिज आतंकी संगठन हमास ने जल-थल-नभ तीनों ओर से हमला बोलकर इजरायल को दहला दिया है। उसने इजरायल के दक्षिणी शहरों में तकरीबन सात हजार राकेट दागे है जिसमें इजरायल के तीन सैकड़ा से अधिक लोगों की जान गई है। तकरीबन दो हजार से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए हैं। प्रतिकार में इजरायल ने भी हमास के ठिकानों पर बम बरसाकर कई सैकड़ों लोगों की जान ले ली है। दोनों के बीच अभी भी जंग जारी है। इजरायल-हमास संघर्ष ने दुनिया को दो खेमों में बांट दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस सरीखे देश खुलकर इजरायल के साथ हैं वहीं तुर्की, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब और लेबनान जैसे देश हमास का समर्थन कर रहे हैं। भारत ने इजरायल पर हुए हमले की निंदा की है और कहा है कि इस कठिन समय में वह इजरायल के साथ है। अगर यह जंग थमी नहीं तो दुनिया की शांति भंग हो सकती है।
अगर दोनों देशों के हालिया विवाद पर नजर दौड़ाएं तो हालात उस वक्त खराब हुए जब इजरायली सुप्रीम कोर्ट ने पूर्वी यरुशलम के शेख जर्रा नामक स्थान से फिलिस्तीनियों के सात परिवारों को निकाले जाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उन घरों को खाली करने का आदेश दिया जो 1948 में इजरायल के गठन से पहले यहूदी रिलीजन एसोसिएशन के अधीन थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद फिलिस्तीनियों को निकालकर यहूदियों को बसाने की तैयारी हो रही थी। इससे फिलिस्तीनी भड़क गए। नतीजतन इजरायल के कई शहर और कस्बे दंगे की चपेट में आ गए। इन शहरों और कस्बों में अरब और यहूदियों के बीच मारकाट हुई। हिंसा की वजह से इमरजेंसी लगा दिया गया। फिलहाल इजरायल ने अपना मिलिट्री ऑपरेशन तेज करने और गाजा बॉर्डर पर सैनिकों की संख्या बढ़ाने का ऐलान कर दिया है।
गौर करें तो इजरायल और हमास के बीच मौजूदा जंग वर्ष 2014 की गर्मियों में 50 दिन तक चले युद्ध के बाद अब तक की यह सबसे बड़ा जंग है। अच्छी बात है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील करना शुरु कर दी है। लेकिन हालात सुधरेंगे इसमें संदेह है। ऐसा इसलिए कि दोनों पक्ष एक-दूसरे का इतिहास-भूगोल बदलने पर आमादा है। दोनों के पीछे अंतर्राष्ट्रीय गोलबंदी की सच्चाई भी किसी से छिपी नहीं है। इजरायल को अमेरिका का खुला समर्थन हासिल है वहीं फिलीस्तीन के कट्टरपंथी संगठन हमास को सीरिया और ईरान का समर्थन हासिल है। हमास का अन्य आतंकी संगठनों से भी मिलीभगत है। उसकी मंशा विश्व में इस्लाम का परचम लहराना और इजरायल को नेस्तनाबूंद करना है।
गौरतलब है कि हमास फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है। इसका गठन 1987 में मिस्र और फिलिस्तीन के मुसलमानों ने किया था। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ। इसका उद्देश्य इजरायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना है। गाजा पट्टी क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव है। गाजा पट्टी इजरायल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित तकरीबन 6-10 किमी चैड़ी और 45 किमी लंबा क्षेत्र है। इसके तीन ओर इजरायल का नियंत्रण है और दक्षिण में मिस्र है। पश्चिम एशिया के संकट को समझने के लिए इजरायल और फिलिस्तीन के इतिहास में झांकना जरुरी है। पश्चिम एशिया में स्थित इजरायल तीन ओर से अरब राज्यों से घिरा हुआ है।
29 नवंबर 1947 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने फिलिस्तीन का विभाजन करके एक भाग ज्यूज यानी यहूदियों को तथा दूसरा भाग अरबों को दे दिया। 15 मई, 1948 को यहूदियों ने अपने हिस्से को इजरायल नाम दिया। इजरायल का क्षेत्रफल तकरीबन 21946 वर्ग किमी तथा आबादी तकरीबन 70 लाख के आसपास है। इजरायलियों ने कठिन परिश्रम से अपने छोटे भू-भाग रेगिस्तान को हरा-भरा कर दिया। फिलिस्तीन पर नजर डालें तो यह भूमध्य सागर के पूर्वी तट पर स्थित ऐतिहासिक राज्य था जिसकी राजधानी यरुशलम थी। यह विश्व के महान ऐतिहासिक स्थलों में से एक और यहूदी तथा ईसाई धर्मों का जन्म स्थान है। 1930 के दशक में जर्मनी में नाजी अत्याचारों के कारण भारी संख्या में यहूदी शरणार्थी यहां आकर बसे। इससे यहूदियों और अरबों में शत्रुता बढ़ गयी। वह शत्रुता अब विकराल रुप धारण कर चुकी है। सच कहें तो हमास की कट्टरपंथी जेहादी सोच ने ही पश्चिम एशिया यानी मध्य-पूर्व की नियति में जहर घोल दिया है। कभी वह अरब राष्ट्रों के अन्तर्कलह से आक्रांत दिखता है तो कभी लेबनान का गृहयुद्ध उसकी शांति को ग्रहण लगा देता है। कभी इराक-ईरान संघर्ष और खाड़ी युद्ध से भूमध्यसागरीय तट थर्रा उठता है तो कभी इजरायल-फिलिस्तीन का संघर्ष सर्वनाश का मंजर परोसता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)