डॉ. सुब्रतो गुहा
धारा 370 अब अतीत: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री मोदी की सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाला धारा 370 को समाप्त करने के निर्णय को कानूनी रूप से उचित घोषित कर दिया। विगत नौ वर्षों से भारत की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का धारा 370 हटाने का अपने समर्थकों से पुराना वादा था, जिसे उसने 2019 में पूरा किया। 1947 में भारत की आजादी के बाद भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू-कश्मीर को धारा 370 के माध्यम से विशेष सुविधाएं और अधिकार दिए गए थे, जो अब हमेशा के लिए समाप्त हो गए।
- द वाल स्ट्रीट जर्नल, न्यूयार्क, अमेरिका
(टिप्पणी- तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरूजी ने गोपालस्वामी आयगार के माध्यम से दबाव बनाकर धारा 370 को भारतीय संविधान में जुड़वाया था, क्योंकि डॉ. अम्बेडकर धारा 370 के विरोधी थे। इसलिए डॉ. अम्बेडकर ने धारा 370 के नीचे एक पंक्ति डाल दी थी कि धारा 370 केवल दस वर्ष के लिए रहेगी और यह संविधान की स्थाई धारा नहीं है। इसी पंक्ति ने ग्यारह दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय के उक्त फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाली एक और धारा 35ए तो संविधान में भी नहीं है और भारतीय संसद द्वारा भी कभी पारित नहीं किया गया, बल्कि नेहरूजी ने 1954 में राष्ट्रपति की एक अधिसूचना द्वारा धारा 35ए की घोषणा करवाकर क्रियान्वित भी करवा दी। संवैधानिक प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा जारी अधिसूचना यदि छह माह के अंदर संसद द्वारा पारित नहीं होती है तो समाप्त हो जाएगी। अर्थात धारा 35ए 1954 में ही समाप्त और धारा 370, 1960 में ही समाप्त हो गए थे, फिर भी 5 अगस्त 2019 तक प्रभावशील रखे गए। तुष्टिकरण के खेल निराले।)
अराजकता से आतंक तक: दिनांक 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर जिहादी आतंकी हमले की बाईसवीं वर्षगांठ पर जिन पांच पुरुषों और एक महिला ने 13 दिसंबर को भारतीय संसद में अराजकता फैलाने का कार्य किया, उनके विरुद्ध भारतीय पुलिस ने आतंकवाद विरोधी कानून एपीए की कठोरतम धाराओं के अंतर्गत प्रकरण पंजीबद्ध किया है। इन अराजकतावादियों ने सांसदों को आतंकित करने हेतु संसद में धुआं फैलाने वाले बम फोड़े। पुलिस ने इन छह अपराधियों के नाम जारी किए, मनोरंजन, सागर शर्मा, नीलम आजाद, अमोल शिन्दे, विशाल शर्मा और ललित झा। इन अपराधियों ने पुलिस को बताया कि वे अपनी बेरोजगारी तथा भारत सरकार के किसान आंदोलन तथा मणिपुर मुद्दे के संदर्भ में नकारात्मक रुख के बारे में अपना विरोध दर्ज करना चाहते थे।
- द इन्डीपेन्डेन्ट, लंदन।
(टिप्पणी- इस अराजकतावादी गिरोह के सरगना ललित झा का निवास पश्चिम बंगाल के चोबीस परगना जिले के बागुई हाटी शहर से है, जहां वह सुभाष सभा नामक एक वामपंथी एनजीओ संगठन से जुड़ा है तथा तृणमूल कांग्रेस पार्टी विधायक तापस राय से भी ललित झा के घनिष्ठ संबंधों के फोटो मिले हैं। दिल्ली पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ललित झा ने अपने साथियों के हुड़दंग के वीडियो बना लिए। स्पष्ट है वामपंथी ललित झा का उद्देश्य संसद में अराजकता फैलाकर और उसके वीडियो मीडिया में चलवाकर वर्तमान केन्द्र सरकार की कानून व्यवस्था पर नियंत्रण की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाना था। वैसे इस घटनाक्रम में कोई जनहानि नहीं हुई और सुरक्षा व्यवस्था में खामिया दूर कर एक चाक चौबंद व्यवस्था बनाने का भी ईश्वरीय संदर्भ छुपा है। तभी तो हमारी धार्मिक मान्यता है कि भक्तों के लिए भगवान जो भी करते हैं, वह अच्छे के लिए ही होता है।)
राग सनातन विषवमन : भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हिन्द राष्ट्रवादी एजेंडा के साथ भारतीय न्यायपालिका भी कदमताल करते हुए चल रही है। मोदी के दो बड़े उद्देश्य है, प्रमुख हिन्दू धर्मस्थलों की भूमि मुस्लिमों से छीन लो और मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू कश्मीर में जनसंख्या असंतुलन द्वारा मुस्लिमों को वहां अल्पसंख्यक बना दो। भारतीय न्यायपालिका भी लगातार मुस्लिम दमनकारी निर्णय देती रही है। भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को समाप्त करने के मोदी सरकार के 2019 में लिए गए निर्णय को वैधानिक घोषित करने का न्यायालयीन निर्णय भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में मोदी का हिन्दू एजेंडा लागू हो गया और भारत अधिकृत कश्मीर पर अवैध कब्जा अब कानूनी कब्जा घोषित हो गया।
- द एक्सप्रेस ट्रिब्यून कराची, पाकिस्तान
(टिप्पणी- वाघा सीमा के इस ओर कॉमरेड इस्लामी कट्टरपंथी गठजोड़ और वाघा सीमा के उस ओर जिहादी एवं सरकारी तंत्र गठजोड़ का विगत पांच वर्षों में एक के बाद एक सदमे लगते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के 9 नवंबर 2019 के सकारात्मक निर्णय के बाद अब बाईस जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है। साथ ही उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय ने काशी विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा यह निर्धारित करने की अनुमति दे दी है कि इन मंदिरों की जमीन पर खड़े मस्जिद वैधानिक है या अवैधानिक। सर्वेक्षण का घोर विरोध कर कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों ने यही संदेश दिया है कि उन्हें राज पर से पर्दा उठने और सत्य उजागर होने का डर है, दाल में कुछ काला है।)
(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)