उलटफेर के बगैर नीरस है खेलों का संसार

विवेक शुक्ला

Update: 2023-10-16 20:21 GMT

अफगानिस्तान ने वनडे वर्ल्ड कप 2023 का सबसे बड़ा उलटफेर किया। उसने डिफेंडिंग चैंपियन इंग्लैंड पर ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए उसे 69 रन से हरा दिया। वर्ल्ड कप में 14 लगातार मैच हारने के बाद अफगानिस्तान ने जीत दर्ज की और 2019 की चैंपियन टीम को ही मात दे दी। यकीन मानिए कि अगर खेलों के मैदान में अप्सेट या उलटफेर नहीं होंगे तो खेलों का रोमांच कहां रहेगा। अगर आपको प्रतियोगिता या मैच से पहले उसके संभावित नतीजे मालूम चल जाएं तो फिर उसकी बात करना भी बेकार है। जब तक नाडाल, रोजर फेडरर, मोहम्मद अली जैसे खिलाड़ी अनाम खिलाड़ियों से हारते रहेंगे तब तक खेल की दुनिया जिंदा रहेगी। महान टेनिस खिलाड़ी राफेल नाडाल और रोजर फेडरर अज्ञात- अनाम खिलाड़ियों से हारे। ये अपने से कम रैकिंग के खिलाड़ियों से हारने पर छोटे नहीं होते। इनकी उपलब्धियां कम नहीं होती। खेलों के मैदान में अप्सेट न हो या कमजोर टीम/ खिलाड़ी अपने से बेहतर और शक्तिशाली को शिकस्त देना ही बंद कर दे तो फिर खेलों में प्रतिद्वंद्विता का क्या होगा। तब खेलों की दुनिया कितनी बोरिंग हो जाएगी।

जरा याद करिए 15 फरवरी,1978 को हुए विश्व के सर्वकालिक महानतम मुक्केबाज मोहम्मद अली का अनाम लियोन सिंपक्स के मुक्कों की बौछार के आगे नतमस्तक होना। जो मोहम्मद अली रिंग के बादशाह थे, जिनकी विजय पहले से ही तय मानी जा रही थी, उनका सिंपक्स के हाथों धूल में मिलना कम से कम मुक्केबाजी के शैदाइयों को याद रहेगा। कहते हैं, खेलों की दुनिया में कभी इतना बड़ा उलटफेर नहीं हुआ। बेशक, सिंपक्स ने अली को मात न दी होती तो उसका कोई नामलेवा भी नहीं होता। पर उस अप्सेट से मोहम्मद अली का कद कतई छोटा नहीं होता। लेकिन, उनकी अप्रत्याशित पराजय से मुक्केबाजी या कहें कि खेलों की दुनिया ज्यादा जीवंत हो गई।

बेशक, अगर मैच से पहले ही उसका नतीजा दर्शकों को मालूम हो तो फिर उस मैच का रस ही खत्म हो जाएगा। तब खेलों की दुनिया कितनी नीरस हो जाएगी, इसकी कल्पना करने से भी डर लगता है। इस आलोक में अफगानिस्तान की विजय को सेलिब्रेट करना चाहिए।

यहां पर साल 2001 के विम्बलडन फाइनल मैच का जिक्र करने का मन कर रहा है। अद्भुत था वह फाइनल। 125 रैंकिंग के क्रोशिया के खिलाड़ी गोरान इवानसविक सामने थे आस्ट्रेलिया के बेहतरीन खिलाड़ी पैट राफ्टर के। विम्बलडन में पुरुष एकल के फाइनल से पहले टेनिस के पंडितों ने भविष्यवाणी कर दी कि राफ्टर धो देंगे क्रोशियाई खिलाड़ी को। तीसरी वरीयता क्रम के खिलाड़ी राफ्टर ने सेमी फाइनल में विश्व के नंबर एक खिलाड़ी आंद्रे अगासी को मजे-मजे में मात दी थी। उसके बाद तो माना जाने लगा था कि गोरान इवानसविक को रनर-अप के रूप में ही संतोष कर लेना पड़ेगा। फाइनल को देखने के लिए सेंटर कोर्ट की दर्शक दीर्घाएं आस्ट्रेलिया के दर्शकों से खचाखच भरी थीं। वे अपने देशवासी राफ्टर की जीत के बाद जश्न मनाने के मूड में थे। पर फाइनल में क्रोशियाई खिलाड़ी की फर्राटेदार सर्विस के आगे राफ्टर ने घुटने टेक दिए। आस्ट्रेलियाई दर्शकों के ऊपर जो बीती, उसे बताने की जरूरत नहीं है। विम्बलडन टेनिस चैंपियनशिप के इतिहास में कभी इतनी निचली रैंकिंग के खिलाड़ी ने इस प्रतिष्ठित चैंपियनशिप को नहीं जीता था। माना जाता है कि टेनिस के इतिहास में शायद ही कभी गोरान इवानसविक जितना बड़ा जायन्ट किलर आया हो।

जरा सोचिए कि अगर मोहम्मद अली उन मैचों को जीत जाते जिनमें वे हारे तो क्या हम उसका यहां पर जिक्र करते। कतई नहीं। उन्हें जीतना तो था ही। खबरों की सुर्खियां उनके हारने के कारण बनीं। इसलिए खेलों की दुनिया में ज्यान्ट किलर बिरादरी के फलने-फूलने की कामना करते रहिए। क्रिकेट की तारीख तो भरी पड़ी है अप्रत्याशित नतीजों से। आस्ट्रेलिया टेस्ट टीम साल 1999 से लेकर 2001 तक अजेय थी। उसने लगातार 16 टेस्ट जीते। पर उनके विजय रथ को कोलकता के ईडन गार्डन में टीम इंडिया ने रोका। एक बेहद रोचक टेस्ट में स्टीव वॉ की कप्तानी में बार-बार जीत का स्वाद ले रही उनकी टीम पिट गई। उस टेस्ट में वीवीएस लक्ष्मण ने 281 रनों की लाजवाब पारी खेली थी।

भारत ने 1983 विश्व कप क्रिकेट का खिताब जीता। कपिल देव की कप्तानी में उस चैंपियनशिप में भाग लेने के गई टीम ने भी नहीं सोचा था कि वह स्वदेश चैंपियन बनकर लौटेगी। उस चैंपियनशिप में भारतीय टीम चैंपियन की तरह खेली और आखिर में चैंपियन बनी। उसने 25 जून, 1983 को फाइनल मैच में वेस्ट इंडीज की टीम को हराया। ध्यान देने वाली बात यह है कि उस बड़े उलट-फेर के बाद किसी ने यह नहीं कहा था कि वेस्ट इंडीज टीम भारतीय टीम से उन्नीस थी। क्लाइव लायड, विव रिचर्डस, मार्शल, होल्डिंग, ग्रीनिज जैसे उम्दा खिलाड़ियों से सुसज्जित टीम को कमजोर कहने की हिमाकत कौन करेगा।

दरअसल हमेशा बेहतर टीम/ खिलाड़ी नहीं जीतता। कई मर्तबा जुझारूपन और जीतने की अदम्य इच्छा भी विजय की वजह बनती है। कहते हैं, महान और उतने ही विवादास्पद रहे मुक्केबाज माइक टायसन को 11 फरवरी 1990 को टोक्यो में बस्टर डगलस ने बुरी तरह से इसलिए रौंदा क्योंकि वे जीतने के लिए कई महीनों से कड़ी मेहनत कर रहे थे। उधर, टायसन उस मुकाबले को लेकर आश्वस्त थे। वे तो मानकर चल रहे थे कि उनकी जीत निर्विवाद है। वे जरूरी अभ्यास भी नहीं कर रहे थे। पर दर्शक तो उस मैच को देखने के लिए इसलिए गए थे कि टायसन किस तरह से भेड़िए की तरह डगलस को पानी पिलाते हैं। पर हुआ इसके विपरीत। दसवें चक्र तक आते-आते टायसन हांफने लगे। उनके पसीने छूट गए। अजेय समझे जाने वाला मुक्केबाज एक लगभग अनाम मुक्केबाज से हार गया। जाहिर है, इस तरह की अप्सेट ही तो खेलों की दुनिया को रोचक और रोमांचक बनाती है। और क्या आपको उस अकल्पनीय अप्सेट की याद नहीं आ रही जिसे 2002 के फीफा विश्व कप में दुनिया ने देखा था? जिस टीम में महान जिनेदिन जिदान, थैयरी हैनरी, मर्सल डिस्इल्ली जैसे खिलाड़ी हो उसे सेनेगल की टीम हरा दे। पर यह हुआ था उस दिन। पूरी दुनिया में किसी ने सोचा भी नहीं था अफ्रीकी टीम अपने मैच को ड्रा करवा पाएगी। पर उसने तो फ्रांस की टीम को हरा दिया। मैच के पहले हाफ में पापा बोबुआ डिएप ने लाजवाब गोल मारकर सेनेगल को बढ़त दिलवा दी। लाख चाहने के बाद भी फ्रांस टीम उस मैच में फिर वापसी नहीं कर पाई। दरअसल, जब तक खेलों की दुनिया में लियोन सिंपक्स, पापा बोबुआ डिएप, गोरान इवानसविक सरीखे खिलाड़ी आते रहेंगे, तब तक खेलों का संसार खेल प्रेमियों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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