पिछले एक-दो दशकों से यह देखने में आ रहा है कि हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी पत्रकार-साहित्यकार देशविरोधी एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस का भी चरित्र कुछ इसी तरह का है। चीन या पाकिस्तान जो भाषा बोलते हैं, कई बार कांग्रेस भी लगभग वही भाषा बोलती है। राजीव फाउंडेशन को चीन ने आर्थिक मदद की थी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। देशभक्त लोग उस समय चकित हो जाते हैं, जब वे देखते हैं कि कुछ लेखक-पत्रकार चीन के पक्ष में भी खड़े नजर आते हैं। अभी हाल ही में जो मामला सामने आया है, वह और गंभीर है। कुछ पत्रकारों पर आरोप है कि वे एक अमेरिकी अरबपति नोबेल राय सिंघम द्वारा दिए जाने वाले करोड़ों रुपयों की फंडिंग प्राप्त करके भारत विरोधी एजेंडे को चला रहे थे। सिंघम महोदय चीन से भी जुड़े हुए हैं। शंघाई में इनका कार्यालय है। निवासी हैं अमेरिका के। यह बात हवाहवाई नहीं है । न्यूयॉर्क टाइम जैसे प्रतिष्ठित अखबार ने इस बात का खुलासा किया है कि सिंघम ने ही भारत की 'न्यूज क्लिकÓ नामक संस्था को पिछले कुछ वर्षों में करोड़ों रुपए दिए। न्यूज़ क्लिक ने कुछ यूट्यूबरों को भी एक-एक स्टोरी के लिए लाखों रुपयों का भुगतान किया। फिलहाल न्यूज क्लिक के संस्थापक पुरकायस्थ और उनके एक सहयोगी को पुलिस हिरासत में लिया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। कुछ पत्रकारों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया है। उनके लैपटॉप और मोबाइल जब्त किए गए हैं, जिनकी गंभीरता पूर्वक जांच की जाएगी। अगर जांच में कुछ नहीं मिलता तो अच्छी बात है। अगर किसी पर शक है तो उनकी जांच होनी ही चाहिए। यह देश की सुरक्षा का मामला भी है।
इसमें दो राय नहीं कि यूट्यूब के जरिए कुछ पत्रकार लगातार मोदीविरोधी एजेंडे पर काम कर रहे थे और लगातार कर भी रहे हैं। ये पत्रकार कभी-कभी प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करते-करते जाने- अनजाने देश के विरुद्ध भी काम करने लगते हैं। अगर कोई पत्रकार या बुद्धिजीवी चीन और पाकिस्तान की तारीफ करे तो यह मामला राजद्रोह का ही बनता है। चीन भारत के विरुद्ध लगातार काम करता रहा है। 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था और दुर्भाग्य से भारत को पराजित होना पड़ा था। हालांकि अब भारत का सैन्य बल काफी मजबूत है और दुर्भाग्य में कभी युद्ध की स्थिति बनती है तो भारत चीन को मुंहतोड़ जवाब भी दे सकता है। चीन भी इस बात को अच्छे से समझता है इसलिए भारत को वह दूसरे तरीके से परेशान करने की कोशिश में लगा हुआ है। आए दिन सीमा पर जबरन तनाव की स्थिति निर्मित करता है। और अब वह चंद पत्रकारों को परोक्ष रूप से आर्थिक मदद करके उनको भारत विरोधी बनाने में लगा हुआ है । भारत के अधिकतर देश प्रेमी पत्रकार उसके चंगुल में फंसने से रहे। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो मोदी को पसंद नहीं करते। वे लोग अप्रत्यक्ष चीनी फंडिंग के ट्रैप में फंस कर भारत विरोधी नरेटिव चलाने की कोशिश में नजर आते हैं। बहुत पहले एक पत्रकार को चीन के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था।
देश में पिछले कुछ वर्षों से देशविरोधी ताकतें तेजी के साथ बढ़ी हैं। सन 2014 के बाद इनकी संख्या में भारी इजाफा हुआ है । क्या हम कभी कल्पना कर सकते हैं कि किसी राष्ट्र के नागरिक अपने ही देश को तोड़ने की बात करें? और आतंकवादी के पक्ष में आंसू बहाए गए कि 'अफजल हम शर्मिंदा है तेरे खातिर जिंदा हैंÓ। मैं कई बार सोचता हूं कि हमारे देश की एक पीढ़ी को यह क्या हो गया है कि वह यकायक देश विरोधी होती जा रही है! इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पिछले नौ वर्षों में अनेक तथाकथित साहित्यकार, पत्रकार विदेशी फंडिंग से वंचित हो गए हैं। यूपीए सरकार के समय अनेक लेखक- पत्रकार आर्थिक दृष्टि से मालामाल थे। सरकार की गोद में बैठकर उन्होंने जबरदस्त धनार्जन किया और यश अर्जन भी। लेकिन अब उनके सारे रास्ते बंद हो गए हैं। तब स्वाभाविक है की छटपटाहट होगी ।
भारतीय मीडिया के चंद भटके लोगों से यही कहा जा सकता है कि वे अभाव में रहें मगर कभी भी देश विरोधी ताकतों से हाथ न मिलाएँ। उनकी आर्थिक मदद भूल कर भी न लें। एक दौर था जब अमेरिकी संस्था 'फोर्ड फाउंडेशनÓ की ओर से भारत के अनेक लेखक संगठन आर्थिक अनुदान प्राप्त करते थे और भारत को ही कोसते थे। कुछ पत्रकार संगठनों ने चीनी फंडिंग के आरोपों को लेकर निष्पक्ष जांच की मांग की है। आने वाले समय में अगर फंडिंग की बात सत्य साबित होती है तो दोषी पत्रकारों को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए ताकि अन्य गुमराह पत्रकार भी सबक ले सकें और देशविरोधी आचरण से तौबा करें।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)