पाकिस्तान में संसद के लिए कल (8 फरवरी) को होने वाले चुनावों में हिंसा की तेज होती घटनाओं के बावजूद प्रचार में कमी नहीं आ रही है। अजीब इत्तेफाक है कि अभी तक कोई भी दल अपनी सभाओं में भारत को 'सबक सिखाने या संबंध सुधारनेÓ जैसी बातें नहीं कर रहा है। पर भारत वहां के सभी प्रमुख दलों में किसी ना किसी रूप में मौजूद है। नवाज शरीफ (मुस्लिम लीग (एन), बिलावल भुट्टो (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) और जेल में बंद तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के नेता इमरान खान का भारत से पारिवारिक संबंध है। इनके अलावा, अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) और मुत्ताहिदा कौमी पार्टी (एमक्यूएम) का भी भारत या भारत के कुछ शहरों से भावनात्मक संबंध है।
अगर बात नवाज शरीफ से शुरू करें तो संकेत मिल रहे हैं कि उनकी पार्टी से रावलपिंडी में बैठे सेना के जनरलों की डील हो गई है। सेना की चाहत है कि चुनाव के बाद नवाज शरीफ ही देश के वजीरे आजम की कुर्सी को संभाल लें। नवाज शरीफ के पुरखे मूल रूप से अमृतसर के करीब स्थित जट्टी उमरा गांव से हैं। उनका अब भी जट्टी उमरा से संबंध बना हुआ है। नवाज शरीफ के छोटे भाई और पूर्व प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ 2013 में भारत यात्रा के दौरान अपने पुरखों के गांव भी गए थे। वे उस कब्रिस्तान में भी गए थे जहां उनके कई बुजुर्ग चिर निद्रा में हैं। नवाज शरीफ जब पहली बार पाकिस्तान के 1990 में प्रधानमंत्री बने तो जट्टी उमरा में जश्न मना था। गांव वालों ने जमकर पटाखे छोड़कर अपनी खुशी का इजहार किया था। नवाज शरीब के अब्बा मोहम्मद शरीफ 1947 से पहले ही कामकाज के सिलसिले में लाहौर चल गए थे। जट्टी उमरा से हटकर बात करें तो शरीफ परिवार की स्टील कंपनी 'इत्तेफाकÓ का भारत की प्रमुख स्टील कंपनी जिंदल साउथ वेस्ट ( जेएसड्ब्ल्यू) से भी बिजनेस संबंध हैं। आपको याद होगा कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2015 में पाकिस्तान गए थे तो कहने वाले कह रहे थे कि उनकी यात्रा जेएसडब्ल्यू के चेयरमैन सज्जन जिंदल के प्रयासों से संभव हुई।
पाक का मौलाना दिल्ली में
पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता मौलाना फजल उर रहमान ने 22 दिसंबर, 2013 को राजधानी के रामलीला मैदान में जमीयत उल हिन्द के एक बड़े कार्यक्रम को संबोधित किया था। उनका जमीयत उल हिन्द के नेता महमूद मदनी ने हजारों-लाखों लोगों से परिचय करवाया। उसके बाद मौलाना फजल उल रहमान इस्लाम, देवबंद तथा भारत-पाकिस्तान संबंधों पर बोले। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम को बलूचिस्तान और खैबरपख्तूख्वाह प्रांत में बेहतर प्रदर्शन का भरोसा है। पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार को गिराने में मौलाना का खास रोल रहा था। देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम बनी। फिर इसी नाम से वहां एक सियासी जमात भी बनी। मौलाना फजल उल रहमान उसके नेता हैं।
बिलावल के ख्वाब
इस बीच, अगले चुनाव के बाद अपने देश का प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देखने वाले बिलावल भुट्टो ने मुंबई के कैथडेरल स्कूल का नामसुना होगा। जब पाकिस्तान 1947 में बना तो बिलावल के नाना जुल्फिकार अली भुट्टो इस स्कूल से निकल चुके थे। भुट्टो परिवार पाकिस्तान 1947 में नहीं गया था। भुट्टो खानदान ने पाकिस्तान में 1950 में शिफ्ट किया था। उनके राजनीतिक दुश्मन इस मुद्दे पर उनकी पाकिस्तान को लेकर निष्ठा पर सवाल उठाते रहे हैं। इस निशाने से बचने के लिए भुट्टो कुनबे को एक ही काट नजर आती है। वह है भारत का कसकर विरोध करना। जुल्फिकार भुट्टो का कई अर्थों में भारत से करीबी संबंध था। वे मुम्बई के कैथडरल स्कूल में पढ़े। भुट्टो के पिता शाहनवाज भुट्टो देश के विभाजन से पहले जूनागढ़ रियासत के प्रधानमंत्री थे। भुट्टो की मां हिन्दू थी। उनका निकाह से पहले नाम लक्खीबाई था। जब बेनजीर भुट्टो की निर्मम हत्या हुई थी जूनागढ़ शहर की जामा मस्जिद में उनकी आत्मा की शांति के लिए नमाज भी अदा की गई थी।
साउथ एशिया के सबसे खासमखास सेलिब्रिटी रहे इमरान खान इस चुनाव से बाहर हैं। उन्हें अलग-अलग केसों में लंबी सजा हो चुकी है। उनकी पार्टी के उम्मीदवार मैदान में जरूर हैं। वे एक तरह से सांकेतिक रूप से ही चुनाव लड़ रहे हैं। इमरान खान की ननिहाल भारत के जालंधर शहर से थीं। उनके नाना डॉ. इकरामउल्ला खान शहर के बड़े ही सम्मानित शिक्षाविद् थे। उनका घर था बस्ती दानिशमंदा में। उन्होंने ही जालंधर में इस्लामिया कॉलेज की स्थापना की थी। इमरान खान ने 2007 में दिल्ली की अपनी यात्रा के दौरान इस लेखक को बताया था, मेरा ननिहाल करीब 500 साल से जालंधर में बसा हुआ था। पर विभाजन के कारण उन्हें लाहौर में जाकर बसना पड़ा था। मैं 1983 में खासतौर पर अपने ननिहाल के घर को देखने भी गया था।
उधर, आगामी चुनाव में भारत से गए मुसलमानों के हक के लिए लड़ने वाली मुताहिदा कौमी मूवमेंट ( एमक्यूएम) की हरचंद कोशिश रहेगी कि उसके उम्मीदवार कराची और सिंध की कुछ सीटों को जीत लें। कराची की गुलशन ए इकबाल सीट से एमक्यूएम के उम्मीदवार डॉ. खालिद मकबूल सिद्दिकी अपनी सभी सभाओं में कह रहे हैं यूपी और भारत से आए उर्दू बोलने वालों के साथ हमेशा नाइंसाफी होती रही। उन्हें सरकारी नौकरियां नहीं मिलतीं। वे या एमक्यूएम के दूसरे नेता जब अपनी सभाओं में यूपी या भारत का जिक्र करते हैं, तो उन्हें सुनने वाले खुश होते हैं। आखिर ये या इनके बड़े भारत से ही पाकिस्तान शिफ्ट किए थे। एमक्यूएम इतनी बड़ी ताकत तो नहीं है कि अगली सरकार उसी की बन जाए पर यह अवश्य मुमकिन है कि उसकी सत्ता में भागेदारी हो। यानी अगर पीपीपी या मुस्लिम लीग बहुमत से कुछ कम रही तो एमक्यूएम इनका साथ दे सकती है। एक दौर में इसके एकछत्र नेता अल्ताफ हुसैन अपने को आगरा वाला बताया करते थे। वे अब लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनके पिता आगरा की राजा की मंडी रेलवे स्टेशन में काम करते थे 1947 तक। अल्ताफ हुसैन सन 2004 में राजधानी में एक अंग्रेजी अख़बार की तरफ से आयोजित सेमिनार में शिरकत करने के लिए राजधानी आए थे। उस यात्रा के दौरान उन्होंने बताया था, मेरा संबंध आगरा से हैं। वे पूछ रहे थे, दिल्ली से आगरा के बीच की दूरी कितनी है? सेमिनार के पहले दिन के खत्म होने पर उन्होंने बड़े ही जज्बाती अंदाज में बताया था, कोई बड़ा मनहूस दिन होता है जब मेरे घर में हर रोज यूपी,आगरा,अलीगढ़ वगैरह की बातें नहीं होती।
गांधी से प्रभावित पार्टी भी
पाकिस्तान में अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) का गांधी से संबंध रहा है। गांधी से मतलब सीमांत गांधी से है। सीमांत गांधी के पुत्र खान अब्दुल वली खान ने इसकी स्थापना की थी। अपन दादा वली खान और पिता की तरह इसके वर्तमान नेता अफसंदयार वली खान भारत के मित्र हैं। अफसंदयार के दादा और पिता ने देश बंटवारे का कड़ा विरोध किया था। एएनपी को इस चुनाव में खैबरपख्तूख्वाह प्रांत में बड़ी सफलता की उम्मीद है। चुनावों में एएनपी को अगर बड़ी कामयाबी मिलती है तो उससे दोनों मुल्कों के संबंध बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। आखिर यह सीमांत गांधी की पार्टी है। बस, अब देखिए कि पाकिस्तान का वजीरे आजम कौन बनेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)