साहित्य साधना और सामाजिक कार्य दोनों अलग प्रकार के क्षेत्र हैं। सामाजिक संगठन में कार्य करते समय नित्य कार्यक्रमों की योजना और निरन्तर प्रवास करना होता है जबकि साहित्य साधना एकान्त चाहती है। इसलिए बहुत कम ही लोग होते हैं जिनके अंदर अनेक प्रतिभाएं रहती है। ऐसे ही एक दिव्य विभूति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक वीरव्रत के साधक वीरेश्वर द्विवेदी थे। वह कुशल वक्ता, विद्वान, त्यागी, तपस्वी, मितभाषी होने के साथ—साथ अच्छे कवि, लेखक, पत्रकार और संपादक थे।
प्रयागराज की धरती से प्रचारक जीवन प्रारम्भ करने वाले वीरेश्वर द्विवेदी का लक्ष्मणनगरी में 4 सितम्बर को निधन हुआ। उनका जन्म 17 अगस्त 1945 को कानपुर देहात के गाँव- भाल (राजपुर) गांव में हुआ था। कानपुर संघ कार्यालय पर रहकर पढ़ाई की। उरई डीएवी कॉलेज से परास्नातक की शिक्षा ग्रहण की। डीएवी कॉलेज उरई के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे। बाद में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की शुरूआत की। अशोक सिंघल से वह बहुत प्रभावित थे। अशोक सिंघल की प्रेरणा से ही सन 1972 में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की नौकरी छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने थे। सबसे पहले प्रयाग महानगर के प्रचारक के नाते उनकी घोषणा हुई। इसके बाद अखिल विद्यार्थी परिषद में उन्हें भेजा गया। इस समय जो पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र है उस समय प्रान्त था तो प्रान्त संगठन मंत्री के नाते उनकी योजना हुई। इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख रहे। संघ शिक्षा वर्गों में प्राय: बौद्धिक विभाग ही उनके जिम्में रहता था।
संघ में जब प्रचार विभाग शुरू हुआ तो उन्हें क्षेत्र प्रचार प्रमुख बनाया गया और स्व.अधीश जी को सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख बनाया गया था।
राष्ट्रभाव के जागरण के लिए भाऊराव देवरस ने राष्ट्रधर्म के रूप में जो बीजारोपण किया था उस राष्ट्रधर्म पत्रिका के वर्ष 1984 से लेकर 1995 तक सम्पादक रहे। राष्ट्रधर्म के माध्यम से अनेक नयी प्रतिभाओं को उभरने का अवसर उनके समय में मिला।
11 वर्ष के बाद 1995 में स्वेच्छा से निवृत्ति के बाद दो साल के अंदर ही तत्कालीन सह सरकार्यवाह सुरेशराव केतकर ने वीरेश्वर द्विवेदी से कहा कि संघ की केन्द्रीय टोली ने सरसंघचालक रज्जू भैया के साथ बैठकर तय किया है आपको पुन: राष्ट्रधर्म संभालना होगा। वीरेश्वर द्विवेदी ने कहा कि अनुशासन की बात तो अलग है लेकिन मैं इसके लिए अधिकतम प्रयास कर चुका हूं। रही बात सुधार की तो मैं एक सक्षम नाम सुझाता हूं। उनके कहने पर आनन्द मिश्र अभय को राष्ट्रधर्म का संपादक बनाया गया।
श्री राम मंदिर आंदोलन में भी वीरेश्वर द्विवेदी की अहम भूमिका रही। देशभर के पत्रकारों से उनकी घनिष्ठता थी। वीरेश्वर द्विवेदी अवध प्रान्त का मुख पत्र पथ संकेत और विश्व हिन्दू परिषद की पत्रिका हिन्दू विश्व का भी संपादन किया। उन्होंने 30 पुस्तकें लिखी हैं। लखनऊ के लोकहित प्रकाशन से भी उनकी पांच पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री और प्रवक्ता भी रहे। राजनीति की भी उन्हें अच्छी समझ थी। अटल जी जब भी लखनऊ से चुनाव लड़ते थे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से वीरेश्वर द्विवेदी को ही लगाया जाता था। बहुत कम ही लोग हैं जिन्हें अशोक सिंघल और अटल जी दोनों को विश्वास प्राप्त था। उनमें वीरेश्वर जी भी थे।
संस्कृति व संस्कारों के प्रति वह हमेशा मार्गदर्शन करते थे। लखनऊ विश्व संवाद केन्द्र पर जब उनका केन्द्र घोषित हुआ तो महानगर में परिवार प्रबोधन गतिविधि को गति देने लगे। उनके आग्रह पर मैंने इंदिरानगर में संपन्न परिवार प्रबोधन की गोष्ठी को मैंने कवर किया। दुर्योग से यही उनका अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम रहा।
प्रचारक जीवन के दौरान उन्होंने पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा और राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी जैसे अनेक कार्यकर्ताओं को गढ़ने का काम किया। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को आगे बढ़ाने का काम किया। यही कारण रहा कि रामनाथ कोविंद बराबर उनका हालचाल लेते रहते थे। उन्हें जब बीमारी का पता चला तो वीरेश्वर जी को देखने रामनाथ कोविद लखनऊ आये।
वह हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी के जानकार थे। पढ़ने लिखने का उनका शौक था। अंतिम समय तक उन्होंने लिखना पढ़ना नहीं छोड़ा। अगस्त 2023 के अंक में वीरेश्वर द्विवेदी द्वारा लिखित संघ शताब्दी वर्ष पर एक भावपूर्ण कविता प्रकाशित हुई है।
केशव की है मूल कल्पना मंत्र बीज था बोया।
माधव ने की वृहत योजना,बरगद सा फैलाया।
मधुकर की समता,समरसता,फूल रही फलवारी।
रज्जू भैया स्नेह रज्जु से, बांधे दे —दे तारी।
कुप्पहल्ली को बुद्धि सुदर्शन,पड़ता सब पर भारी।
मोहन की मोहकता सम्मुख,झूम रहे नर नारी।
वीरेश्वर द्विवेदी ने अपना सम्पूर्ण जीवन हिन्दू समाज के उत्कर्ष में लगाया। संघ, समाज कार्य व पत्रकारिता में उनका योगदान चिरस्थायी रहेगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)