हमारा देश पंथ निरपेक्ष है। ऐसा दावा भी किया जाता है और हम आजादी के बाद से ही पिछले 75 सालों से यह सुनते भी आ रहे हैं। संविधान में यह वर्णित भी है। यह भी कि हिन्दू सहिष्णु हैं। यह सुनते भी और देखते भी हमें पूरी जिंदगी हो चुकी है। इतिहास इसका साक्षी है। यह भी कि हिन्दुओं ने अपनी सहिष्णुता की समय-समय पर बहुत बडी़ कीमत भी चुकायी है। इसे दरगुजर नहीं किया जा सकता।
हिन्दुओं के धार्मिक ग्रंथों की बेअदवी, उन्हें जलाये जाने और उनके देवी-देवताओं के अपमान और सनातन धर्म को अपमानित किये जाने का सिलसिला कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा सुनियोजित तरीके से देश में पिछले बरसों से लगातार जारी है। उसके बाद भी सहिष्णु हिन्दू शांत है। यह सब जानते-समझते कि आखिर सहिष्णुता दैवीय वरदान है और उसकी कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन यह समझ से परे है कि आखिर हिन्दू की सहिष्णुता की परीक्षा क्यों ली जा रही है और इस सबके बावजूद सरकारें क्या कर रही हैं। वे मौन क्यों हैं।
हाल-फिलहाल केरल में मुस्लिम लीग की युवा शाखा द्वारा आयोजित रैली में लगाये गये नारे कि 'हिन्दुओं को जिंदा जलाओÓ, मंदिरों के अंदर हिन्दुओं को फांसी दो, और तुम रामायण पढ़ने के काबिल नहीं रहोगेÓ आदि-आदि। और विडम्बना देखिए कि वहां की सरकार मौन साधे बैठी रही। यही नहीं देश का प्रमुख विपक्षी दल जो आजादी के बाद लम्बे समय तक देश की सत्ता पर काबिज रहा, वह कांग्रेस भी मौन है। गौरतलब है कि इस पर 'मुहब्बत की दुकान चलाने वालेÓ कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जो खुद केरल के वायनाड से सांसद हैं और हाल ही में विरोधी दलों द्वारा भाजपा के विरोध में गठित देशव्यापी संगठन 'आई.एन.डी.आई.एÓ के सर्वमान्य प्रमुख नेता हैं, मौन हैं। यह तो तब है जबकि वे मंदिर भी जाते हैं। वहां पूजा-अर्चना भी करते हैं। वह बात दीगर है कि ऐसा खासकर वह चुनावों में ही अक्सर करते हैं। विचारणीय यह है कि यह सब पाकिस्तान में नहीं, भारत देश भारत कहें या हिन्दुस्तान में हो रहा है और इस पर सियासतदां लोग ही नहीं, इस पर वे हिन्दू भी चुप्पी साधे बैठे हैं जो त्योहारों पर तीर्थों व मंदिरों में जाने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहते हैं। इस पर देश की सरकार और देश की सर्वोच्च अदालत को भी यह सोचना होगा कि आखिर हिन्दू क्या गालियां खाने के लिए ही हैं। हिन्दू धर्म और सनातन और हिन्दुओं के धार्मिक पवित्र ग्रंथों के खिलाफ घृणित अपमान जनक भाषा बोलने और उसे जलाने की बातें करना किस कानून का हिस्सा हैं और सरकारें व जरा-जरा सी बात पर संसद में बवाल मचाने वाले राजनैतिक दल क्यों चुप हैं? आखिर हिन्दू कब तक यह बर्दाश्त करेगा, यह सरकारों को जिन पर संविधान की रक्षा का दायित्व है, स्पष्ट करना होगा। क्या देश की सत्ता में वापसी का सपना संजोये नवगठित विरोधी दलों के गठबंधन आईएनडीआईए और उसके नेताओं को यह साफ करना चाहिए कि हिन्दुओं और उनके धार्मिक ग्रंथों को जलाने वालों के साथ रहते हुए ही वह देश की सत्ता पर पहुंचेंगे। आज यही सवाल सबसे अहम है कि ऐसी दशा में हिन्दू क्या करे?
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)