यदि आप समझ रहे हैं कि राम सिर्फ हमारे यानी भारत के हैं तो आपको थाईलैंड भी जाना चाहिए। थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के हवाईअड्डे पर उतरते ही आपको उसका नाम सुनकर अच्छा सा लगता है। नाम है स्वर्णभूमि एयरपोर्ट। एयरपोर्ट से आप बैंकॉक शहर की तरफ बढ़ते हैं तब आपको राम स्ट्रीट और अशोक स्ट्रीट जैसे साइनबोर्ड दिखाई देने लगते हैं। इन सबको देखकर लगता है कि आप अपने ही देश में हैं। अब प्रश्न उठता है कि जिस देश का सरकारी धर्म बौद्ध हो वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर ये है कि चूंकि थाईलैंड में मूल रूप से हिन्दू धर्म था, इसलिए उसे इस में कोई विरोधाभास नजर नहीं आता कि वहां पर हिन्दू धर्म का प्रतीक राष्ट्रीय चिन्ह हो। एक सामान्य थाई गर्व से कहता है कि उसके पूर्वज हिन्दू थे और उसके लिए हिन्दू धर्म भी आदरणीय है।
निश्चित रूप से भारत से बाहर अगर हिन्दू प्रतीकों और संस्कृति को देखना-समझना है तो आपको थाईलैंड जरूर जाना चाहिए। दक्षिण पूर्व एशिया के इस देश में हिन्दू देवी-देवताओं और प्रतीकों को आप चप्पे-चप्पे पर देखते हैं। यूं थाईलैंड बौद्ध देश है। पर इधर राम भी अराध्य है। राजधानी बैंकॉक से सटा है अयोध्या शहर। यहां मान्यता है कि यही थी भगवान श्रीराम की राजधानी। थाईलैंड के बौद्ध मंदिरों में आपको ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियां और चित्र मिल जाएंगे। इन सभी देवी-देवताओं के अलग से मंदिर भी हैं। इनमें रोज बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध पूजा अर्चना के लिए आते हैं। यानी थाईलैंड बौद्ध और हिन्दू धर्म का सुंदर मिश्रण पेश करता है। कहीं कोई कटुता या वैमनस्थ का भाव नहीं है।
हिन्दू धर्म का थाईलैंड के राज परिवार पर सदियों से गहरा प्रभाव है। माना यह जाता है कि थाईलैंड के राजा भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसी भावना का सम्मान करते हुए थाईलैंड का राष्ट्रीय प्रतीक गरुड़ है। यहां तक कि थाईलैंड संसद के सामने गरुड़ की मूर्ति स्थापित है।
थाईलैंड में राजा को राम कहा जाता है। उसके नाम के साथ अनिवार्य रूप से राम लगता है। राज परिवार अयोध्या नामक शहर में रहता है। ये स्थान बैंकॉक से 50-60 किलोमीटर दूर होगा। बहुत खूबसूरत शहर हैं। यहां पर बौद्ध मंदिरों की भी भरमार है। जिनमें भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में मूर्तियां स्थापित हैं। क्या ये कम हैरानी की बात है कि बौद्ध होने के बावजूद थाईलैंड के लोग अपने राजा को राम का वंशज होने के चलते विष्णु का अवतार मानते हैं? इसलिए थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है। वहां के राजा को भगवान राम का वंशज माना जाता है।
राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़
यद्धपि थाईलैंड में 94 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्मावलंबी है। फिर भी इधर का राष्ट्रीय चिन्ह गरुड़ है। हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में गरुड़ को विष्णु की सवारी माना गया है। गरुड़ के लिए कहा जाता है कि वह आधा पक्षी और आधा पुरुष है। उसका शरीर इंसान की तरह का है, पर चेहरा पक्षी से मिलता है। उसके पंख हैं।
राष्ट्र ग्रंथ क्या ?
आपको थाईलैंड एक के बाद एक आश्चर्य देता है। वहां का राष्ट्रीय ग्रंथ रामायण है। वैसे थाईलैंड में थेरावाद बौद्ध के मानने वाले बहुमत में हैं, फिर भी वहां का राष्ट्रीय ग्रन्थ रामायण है। जिसे थाई भाषा में 'राम-कियेनÓ कहते हैं। जिसका अर्थ राम-कीर्ति होता है, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य हॉल का नाम 'रामायण हॉलÓ है। ये राजधानी के विज्ञान भवन से दोगुना बड़ा होगा। यहां पर राम कियेन पर आधारित नृत्य नाटक और कठपुतलियों का प्रदर्शन प्रतिदिन होता है। राम कियेन के मुख्य पात्रों में राम (राम), लक (लक्ष्मण), पाली (बाली), सुक्रीप (सुग्रीव), ओन्कोट (अंगद), खोम्पून ( जाम्बवन्त), बिपेक ( विभीषण), रावण, जटायु आदि हैं। क्या भारत के किसी शहर में राम के जीवन पर प्रतिदिन नृत्य नाटिका होती है जिसे रोज औसत दो हजार लोग देखने के लिए आते हैं? हमारे यहां महानगरों में रामलीलाएं भी अब पहले से कम होने लगी हैं। इस नाटिका के मंचन के दौरान हॉल में वातावरण पूरी तरह से राममय हो जाता है।
नवरात्र पर बैंकॉक के सिलोम रोड पर स्थित श्री नारायण मंदिर थाईलैंड के हिन्दुओं का केन्द्र बन जाता है। यहां के सभी हिन्दू इधर कम से कम एक बार जरूर आते हैं पूजा या फिर सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए। इस दौरान भजन, कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान जारी रहते हैं। दिन-रात प्रसाद और भोजन की व्यवस्था रहती है। इस दौरान दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जी की एक दिन सवारी भी मुख्य मार्गों से निकलती है। इसमें भगवान गणपति, कृष्ण, सुब्रमण्यम और दूसरे देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी सजाकर किसी वाहन में रखा गया होता है। इस आयोजन में हजारों बौद्ध भी भाग लेते हैं। ये वास्तव में बेहद भव्य आयोजन होता है। ये सवारी अपना तीन किलोमीटर का रास्ता सात घंटे में पूरा करती है। इसमें संगीत और नृत्य टोलियां भी रहती हैं।
बैकॉक स्थित शिव मंदिर, दुर्गा मंदिर विष्णु मंदिर वगैरह का निर्माण हिन्दुओं के साथ-साथ यहां के बौद्धों ने भी करवाया है। ये वास्तव में कमाल है। जहां तक हिन्दू मंदिरों की बात है तो इन्हें यहां पर दशकों से बस गए भारत वंशियों ने बनवाया है। कुछ मंदिर निजी प्रयासों से भी बने हैं। थाईलैंड में तमिल और उत्तर भारत के भारतवंशी हैं। इसलिए मंदिर दक्षिण और उत्तर भारत के मंदिरों की तरह से बने हुए हैं। बैकॉक के प्रमुख रथचेप्रयोंग चौराहे पर ब्रह्मा जी के मंदिर में लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां देखने लायक हैं। इनमें हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्ध भी आ रहे हैं। कहीं कोई भेदभाव नहीं है। सबसे गौरतलब यह है कि कई बौद्ध मंदिरों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र और मूर्तियां हैं। ये सब देखकर लगता है कि हिन्दू और बौद्ध सहअस्तित्व में विश्वास करते है। ये सहनशील है। पृथक धर्म होने पर भी एक-दूसरे के प्रति आदर का भाव है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)