मानसिक बीमारी से परहेज क्यों...
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस-डॉ. प्रियंका मसीह
स्वस्थ समाज- स्वस्थ भारत का निर्माण तभी किया जा सकेगा जब देश का बच्चा-बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ होगा। प्रतिवर्ष दस अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1994 में हुई थी। मानसिक स्वास्थ्य मौजूदा समय की प्राथमिकता भी है और इससे संबंधित विकार बड़ी चुनौती भी। इन दोनों पर बेहतर तरीके से ध्यान देने के लिए आवश्यक है कि इसमें जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित की जाए। सोशल मीडिया, एनजीओ, जागरूकता अभियानों आदि के माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं के बारे में जागरूक किए जाने की जरूरत है, जिससे लोगों के लिए सहजता से इसका इलाज प्राप्त कर पाना आसान हो। लोग एक-दूसरे से अन्य बीमारियों की तरह इस बारे में भी खुल कर बात कर पाएं। क्योंकि ध्यान रहे, स्वस्थ समाज-स्वस्थ भारत का निर्माण तभी किया जा सकेगा जब देश का बच्चा-बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ होगा। जहां हमारी नकारात्मक सोच केवल तबाही की ओर ले जाती है, वहीं सकारात्मक सोच हमें जीवन की उन्नति की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करती है।
सबसे बड़ी रणनीति यह होनी चाहिए कि हम अपने बारे में ईमानदारी से और स्पष्ट रूप से सोचें, मुद्दों, घटनाओं, और दैनिक चिंताओं। खुद को स्वीकार करने और खुद से प्यार करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। वर्तमान में बीस प्रतिशत जनसंख्या किसी न किसी मानसिक विकार से ग्रसित है। ज्यादातर लोग शर्मिंदगी या शर्म के कारण मदद मांगने से भी कतराते हैं। जो लोग अपनी बीमारी से शर्मिंदा होते हैं वे इसे छिपाने की कोशिश करते हैं और उन्हें वह मदद नहीं मिल पाती है जिसकी उन्हें जरूरत होती है। इस कलंक को तोड़ने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर और ईमानदारी से बात करें। दृष्टिकोण बदलने के लिए व्यक्तिगत अनुभव साझा करना एक शक्तिशाली उपकरण है। हाल के वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य बातचीत को सामान्य बनाने और ज्ञान फैलाने में काफी प्रगति हुई है, मशहूर हस्तियों और एथलीटों ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ अपने संघर्ष के बारे में बात की है। मानसिक स्वास्थ्य के मामले में हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।
किसी भी देश के समग्र विकास के लिए लोगों के क्वालिटी ऑफ लाइफ यानी कि गुणवत्ता पूर्ण जीवन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसका सीधा संबंध उत्पादकता से है जो आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण आयाम है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि स्कूली स्तर से ही बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किए जाने की आवश्यकता है। इसे पाठ्यक्रम का विषय बनाया जाना चाहिए जिससे बच्चों में इसकी समझ को विकसित किया जा सके। स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करके अगली पीढ़ी को इसके वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में जागरूक करने में मदद मिल सकती है।
देश में मानसिक स्वास्थ्य मंत्रालय बनाए जाने की आवश्यकता है। जिससे इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर संरचित तरीके से काम हो सके। मानसिक स्वास्थ्य मंत्रालय बनने से कमेटी और प्रबुद्ध लोग इस दिशा में मिलकर काम करेंगे इससे जन-जन तक जागरूकता फैलाना और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कलंक के भाव को दूर करना अपेक्षाकृत आसान होगा। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम में पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए विशेष मंत्रालय की व्यवस्था है। चूंकि लोगों के मन में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी रूढ़िवादी सोच है, जैसे- लोग क्या सोचेंगे, कहीं मुझे पागल न समझ लिया जाए, मानसिक स्वास्थ्य का इलाज काफी महंगा है, मनोचिकित्सकों से मिलने का मतलब मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है, आदि के चलते लोग समय पर डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, ऐसे में समस्या समय के साथ बढ़ती चली जाती है।
(लेखिका आगरा में सेंट जौंस कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं)