एक बार फिर पूरी दुनिया चीन में बच्चों में फैली रहस्यमय बीमारी को लेकर बेहद खौफजदा है। चीन पहले की तरह ऐंठा हुआ है कि किसी नई बीमारी के संकेत वहां नहीं मिले हैं। जो हैं सभी पहले से मालूम बैक्टीरिया-वायरस हैं जो बच्चों में फैल रहे हैं। इधर डब्ल्यूएचओ ने जब रहस्यमयी बीमारी के बारे में पूछताछ की तो उसने बताया कि कुछ भी असामान्य नहीं है। यह साधारण बीमारी है। लेकिन उसकी चालबाजी यहीं समझ आती है कि जब बीमारी सामान्य है तो फिर क्यों विशेषज्ञ इसकी वजह कोविड पाबंदियों को हटाना, इन्फ्लूएंजा, बच्चों में एक आम जीवाणु संक्रमण यानी माइकोप्लाज्मा निमोनिया और रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस यानी आरएसवी को बताते हैं? कहीं चीन बीमारी की सच्चाई जानकर भी दुनिया को दोबारा धोखा देने की फिराक में तो नहीं? क्यों विश्व स्वास्थ्य संगठन भी लोगों से अपील कर रहा है कि साफ-सफाई का ध्यान रखें और श्वांस संबंधी किसी भी लक्षणों पर तुरंत डॉक्टर से मिलें!
इधर पड़ोसी नेपाल ने न केवल अलर्ट जारी किया बल्कि बीमारी की जानकारी न देने पर चीन से नाराजगी भी जताई है। कोविड-19 सरीखे लक्षणों वाली नई बीमारी के चीन में जितने भी टेस्ट हुए हैं उनमें चीन ने कोरोना को खारिज किया गया है। लेकिन क्यों विशेषज्ञ इतने दिनों के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे हैं? बीमारी कैसे फैल रही है? पिछले दो-तीन बरसों में ऐसी क्यों नहीं फैली? इसे लेकर चीन खामोश है। इसी13 नवंबर को उसके राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने बताया था कि वहां एक नया संक्रमण तेजी से फैल रहा है। बच्चे ज्यादा चपेट में आ रहे हैं। उत्तरी भागों में पिछले तीन बरसों के मुकाबले इस अक्टूबर मध्य से एकाएक तेजी से पैर पसारा। इंफ्लूंएंजा अमूमन जल्द काबू आता है। अभी जब नहीं आया तब 21 नवंबर को सार्वजनिक रोग निगरानी प्रणाली (प्रोमेड) ने उत्तरी चीन में रहस्यमय न्यूमोनिया जैसी बीमारी सार्वजनिक की। देखते-देखते अस्पताल मरीजों से ऐसे भरने लगे जो रुकने का नाम ही ले रहे। यहीं से चिंता और चीन के पुराने झूठ और दोगलेबाजी पर ध्यान जाने लगा? इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन को चेताया कि बीमारी के जोखिम को कम करने खातिर टीकाकरण और मरीजों से जरूरी दूरी बनाकर क्वारंटाइन करें और ऐतिहातन जांच कराएं। मास्क पहनने और नियमित रूप से हाथ धोने जैसी बातों का पालन हो।
भारत सतर्क है लेकिन ज्यादा कुछ कहने से गुरेज कर रहा है। यह संक्रमण महामारी बनेगा या नहीं? यह भविष्य के गर्त में है। यह सही है कि पिछले दो-तीन माहों से भारत में बुखार का एक अजीब दौर दिख रहा है। जिसमें मरीज को पूरी तरह से ठीक होने में 10 से 15 दिन लगते हैं। ऊपर से पूरा शरीर टूटता है तथा जबरदस्त कमजोरी के साथ खांसी की शिकायत भी रहती है। चीन का रहस्यमय इन्फ्लूएंजा भी दूसरे लक्षणों को जोड़ तेज बुखार और प्रभावितों की सांस पर कोरोना सरीखे भारी पड़ रहा है। चिकित्स कभी सलाह देते हैं कि ऐसी कोई भी बीमारी या मिलते-जुलते लक्षण दिखें तो तुरंत जांच व परामर्श लिया जाए क्योंकि संक्रमण तेजी से फैलता है और संपर्कियों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।
प्राय: वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण बुखार पैदा करता है जो ठंड में या दूसरे मौसम में भी संभव है। इसमें नाक बहना, खांसी, सांस की लघुता यानी शॉर्टनेस ऑफ ब्रीद (एसओबी), उल्टी और दस्त भी हो सकता है। सभी मामलों में जरूरी नहीं कि यही लक्षण हों। इसके कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं जैसे एडेनो वायरस, इन्फ्लूएंजा वायरस, एंटरोवायरस, राइनोवायरस और कोविड वायरस जैसे तमाम वायरस जिम्मेदार हैं।
संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने अजीब चीनी निमोनिया को लेकर तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और ग्लोबल संक्रामक रोग मॉनिटरिंग सर्विस की रिपोर्टों का हवाला दिया है। यह भी कहा है कि ये सभी सांस के संक्रमण के मामले नहीं हैं जो चिंताजनक है। वैज्ञानिक और रिसर्चर कड़ी निगरानी की बात कहते हैं। बीजिंग से करीब 700 किलोमीटर दूर लिओनिंग में तेजी से फैल रही बीमारी बच्चों को निशाना बना रही है। हालात बेकाबू हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है। स्कूल बन्द हो चुके हैं। चीन कुबूलता तो है कि बीमारी बढ़ी है। लेकिन कोरोना के सरीखे रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए है। बस इसी से दुनिया एक बार फिर चीन को शक की निगाह से देख रही है।
वहां कोरोना सरीखी पाबंदियां लग चुकी हैं। दुनिया दोबारा कोरोना महामारी के अटैक से डरी है। ऐसे में किसी बड़े खतरे और महामारी को टालने खातिर मास्क और प्रभावितों से दो गज की दूरी फिर जरूरी है तो क्या बुरा? कोरोना के दौरान और कोरोना के बाद के हालातों से दुनिया बड़ा सबक पहले ले चुकी है ऐसे में वैक्सीन से पहले ही आपसी समझ और परहेज से काबू हो जाए तो इससे बेहतर क्या हो सकता है?
(स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)