women's day: पुरुषो का मैदान फतह करने वालीं शेरनियां,जानें 5 भारतीय महिला खिलाड़ियों की प्रेरक कहानियां...

Update: 2025-03-08 10:10 GMT

Women in Sports

संघर्ष से सजी सफलता की कहानी: कभी सिर्फ पुरुषों का अखाड़ा माने जाने वाला खेल का मैदान, अब भारतीय महिला खिलाड़ियों की मेहनत और जज़्बे का गवाह बन चुका है। समाज की रूढ़ियों और शारीरिक क्षमता पर उठे सवालों को दरकिनार करते हुए, इन खिलाड़ियों ने हर मोर्चे पर खुद को साबित किया है। चाहे क्रिकेट की पिच हो, बैडमिंटन का कोर्ट या मुक्केबाजी का रिंग...हर जगह उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन से दुनिया को चौंका दिया है। इन महिला खिलाड़ियों ने न केवल पदक जीते, बल्कि नए विश्व रिकॉर्ड्स भी बनाए। उनके साहस और संघर्ष ने न सिर्फ खेल जगत में बल्कि समाज में भी एक नई उम्मीद जगाई है। तो आइए, जानते हैं ऐसी ही पांच महिला खिलाड़ियों की प्रेरक कहानियां....

जमुना बोरो : गांव से ग्लोरी तक का सफर



जमुना बोरो की कहानी साहस, संघर्ष और संकल्प की मिसाल है। असम के छोटे से गाँव बेलसारी में जमुना का जन्म हुआ। उनकी जिंदगी आसान नहीं थी। जब वह छोटी थीं, तभी उनके पिता का साया सिर से उठ गया। उनकी मां ने अकेले ही परिवार का भार संभाला। खेतों में मेहनत की, चाय और सब्जियां बेचकर बच्चों को पाला। ऐसे हालातों में भी जमुना ने अपने सपनों को मरने नहीं दिया।

बचपन में जब उन्होंने मुक्केबाजी में कदम रखा, तो लोगों ने ताने कसने शुरू कर दिए। लेकिन जमुना ने किसी की नहीं सुनी। मनोबल गिराने वाली बातों को अनसुना कर उन्होंने रिंग में अपनी जगह बनाई और मुक्केबाजी को अपना करियर बना लिया।

आज वही जमुना बोरो 54 किलोग्राम वर्ग में भारत की नंबर वन मुक्केबाज रह चुकी हैं। बता दें वह विश्व रैंकिंग में टॉप 5 में शामिल थी। उनके नाम कई बड़े मुकाम हैं जैसे ताइपे में आयोजित विश्व युवा मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में कांस्य पदक और 56वीं बेलग्रेड इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 54 किलो वर्ग में रजत पदक। 

जमुना की यह उपलब्धियां उनकी मेहनत, जज्बे और कभी हार न मानने वाली भावना का परिणाम हैं। 

गली क्रिकेट से अंतरराष्ट्रीय सितारा बनने तक की घातक गेंदबाज की कहानी


भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने अपने प्रदर्शन से कई शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं। एक समय में भारतीय क्रिकेट टीम की कमान झूलन गोस्वामी के हाथों में थी, जिन्होंने अपनी घातक गेंदबाजी से विरोधियों को खूब परेशान किया। बंगाल में जन्मी झूलन के पिता, निशित गोस्वामी, इंडियन एयरलाइंस में काम करते थे। बचपन में उनकी मां को झूलन का लड़कों के साथ गली में क्रिकेट खेलना पसंद नहीं था। उस समय उनकी गेंदबाजी भी इतनी तेज नहीं थी कि मोहल्ले के लड़के उसे गंभीरता से ले! अक्सर उनकी धीमी गेंदों पर चौके-छक्के पड़ते थे।

लेकिन झूलन ने हार नहीं मानी। अपने खेल को निखारते हुए उन्होंने वह मुकाम हासिल किया जो किसी और ने नहीं किया। वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 2000 से ज्यादा ओवर फेंकने वाली दुनिया की एकमात्र महिला गेंदबाज बन गईं। उनकी मेहनत और जज्बे का नतीजा यह रहा कि झूलन महिला वनडे क्रिकेट के इतिहास में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाज बन गईं। कुल 333 अंतरराष्ट्रीय विकेट लेकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। 

अंजू बॉबी जॉर्ज: केरल की उड़नपरी का सफर 



19 अप्रैल 1977 को केरल में जन्मी अंजू को बचपन से ही खेलों का शौक था। उनके माता-पिता ने उनकी इस रुचि को समझा और हर कदम पर प्रोत्साहित किया। परिवार के समर्थन और अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत अंजू ने न सिर्फ राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई पदक अपने नाम किए।

लंबी कूद में माहिर अंजू की जिंदगी में एक और मोड़ तब आया, जब उनकी शादी राष्ट्रीय चैंपियन रॉबर्ट बॉबी जॉर्ज से हुई। पति की कोचिंग और अपने जज्बे के बलबूते पर अंजू ने मैदान में झंडे गाड़ दिए। साल 2003 में पेरिस में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उन्होंने लंबी कूद में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह कारनामा करने वाली वह भारत की पहली और अब तक की इकलौती एथलीट हैं।

अंजू की इस उपलब्धि ने न सिर्फ उन्हें एक नई पहचान दिलाई बल्कि भारतीय एथलेटिक्स को भी एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उनकी सफलता इस बात का सबूत है कि सपनों को सच करने के लिए कड़ी मेहनत और सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है। 

तसनीम मीर: 16 की उम्र में बैडमिंटन की बादशाहत



तसनीम मीर ने बैडमिंटन की दुनिया में ऐसा इतिहास रचा, जो हर भारतीय के लिए गर्व की बात है। गुजरात की रहने वाली इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने महज 16 साल की उम्र में अंडर-19 सिंगल्स में वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर 1 का स्थान हासिल किया। यह उपलब्धि इसलिए खास है क्योंकि तसनीम मीर से पहले कोई भी भारतीय महिला खिलाड़ी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाई थी। उनकी इस सफलता ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई।

तसनीम का सफर कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उनके इरादे कभी कमजोर नहीं पड़े। कड़ी मेहनत और अनुशासन की बदौलत उन्होंने एक के बाद एक मुकाबले जीतकर यह मुकाम हासिल किया। उनकी तेज रफ्तार स्मैश और सटीक शॉट्स किसी भी विरोधी को चौंका देते हैं। 

हिमा दास: फुटबॉल के मैदान से एथलेटिक्स ट्रैक तक



असम के नागौर जिले में जन्मी हिमा दास की कहानी साहस और संघर्ष से भरी है। बचपन में वह गलियों में फुटबॉल खेला करती थीं। तब किसी ने नहीं सोचा था कि एक दिन वह एथलेटिक्स में इतिहास रचेंगी। हिमा ने दौड़ को अपना करियर बनाने का फैसला किया। कड़ी मेहनत और जुनून के दम पर उन्होंने कमाल कर दिखाया। महज 20 साल की उम्र में हिमा ने एक महीने में पांच गोल्ड मेडल जीतकर भारत का मान बढ़ाया।

हिमा का सफर आसान नहीं था। उनका परिवार 17 लोगों का था, जो धान की खेती पर निर्भर था। हिमा भी खेतों में मदद करती थीं। लेकिन जब उन्हें मौका मिला, तो उन्होंने पूरी दुनिया को चौंका दिया। आईएएएफ विश्व अंडर-20 चैंपियनशिप में 51.46 सेकंड में गोल्ड जीतकर वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। 

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