एक निर्भीक कारसेवक आईपीएस राजाबाबू सिंह...

Update: 2020-08-05 10:50 GMT

(डॉ अजय खेमरिया)

राजाबाबू सिंह देश के अकेले ऐसे आईपीएस अफसर है जो राममंदिर आंदोलन में अपनी भूमिका को लेकर गौरवभाव को खुलकर अभिव्यक्त कर रहे है।छात्र जीवन मे एक कारसेवक के रूप में अपनी भूमिका और योगदान को लेकर उनके मन ,मस्तिष्क में स्पष्ट धारणा है "जाके प्रिय न राम बैदेही।तजिये ताहि कोटि बैरी सम,जदपि पर स्नेही"तुलसी की इस धारणा पर राजाबाबू सिंह अटल रहते है।

वे मप्र पुलिस में एडिशनल डायरेक्टर जनरल पुलिस जैसे शीर्ष पद पर रहते हुए भी राममंदिर आंदोलन में अपनी गिलहरी सदृश्य भूमिका को सार्वजनिक रूप से भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय से जोड़ते है।अपने फेसबुक पेज और यूट्यूब सन्देश में राजाबाबू सिंह ने 5 अगस्त को नए भारत का अभ्युदय कहा है।आमतौर पर अखिल भारतीय सेवाओं के अफसर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक निष्ठाओं को सार्वजनिक करने से परहेज करते है क्योंकि उनका प्रशिक्षण और सेवानियम एक ऐसे वैशिष्ट्य का रेखांकन करते आये हैं।राजाबाबू सिंह आईपीएस विरादरी के अपवाद चरित्र अफसर है।वह इस बिरादरी के एलीट और एरिस्टोक्रेट स्पेशलाइजेशन को अपनी सेवा के दौरान खूंटी पर टाँगते आए है।वह अपनी।जड़ों से जुड़े ऐसे आला पुलिस अफसर है जो गांव,गरीब के साथ साथ अपनी सँस्कृति,दर्शन,और महान वागद्मय से सीधे खुद को जोड़कर चलते है।वे अपने सनातनी संस्कारों को लेकर सार्वजनिक रूप से गौरवभाव प्रदर्शित करते रहते है।

अयोध्या के राममंदिर आंदोलन में अपनी भागीदारी को लेकर वह बेख़ौफ़ होकर बात करते है।बकौल राजाबाबू सिंह"राम मेरे लिए जीवन का आधार है और अपने कर्तव्य पालन का उर्जापुंज। इसीलिए मैंने राममंदिर आंदोलन में एक कारसेवक के रूप में भाग लिया था।कारसेवक के रूप में प्रयागराज के हॉस्टल से अयोध्या का कूच मेरे अंतर्मन का आदेश था"

वह सार्वजनिक रूप से कहते है कि कोई राम काज से किसी को कैसे रोक सकता है।यहां बताना होगा कि राजाबाबू सिंह छात्र जीवन के दौरान प्रयागराज में पढ़ाई करते वक्त 1990 और 1992 मंदिर आंदोलन से सक्रिय तौर पर जुड़े रहे है।इस बात को लेकर आलोचक उनकी आलोचना भी कर रहे है इसे सर्विस रूल के विरुद्ध बता रहे है।राजाबाबू सिंह इनसे बेफिक्र होकर अगले चार महीने राममंदिर और इसके सांस्कृतिक,सामाजिक पहलुओं पर अध्ययन के लिए जुटने वाले है ।इसके लिए उन्होंने मप्र सरकार से चार महीने का अवकाश ग्रहण कर लिया है।

असल में राजाबाबू सिंह पिछले एक दशक से लगातार अपनी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना के जरिये मप्र में पुलिस का चेहरा बदलने की कवायद में जुटे रहे है।कुख्यात बागियों और डकैतों के लिए बदनाम मप्र के ग्वालियर चंबल रीजन में वह गीता,गांधी और गाय के जरिये सामाजिक बदलाब की बुनियादी इबारत को गढ़ रहे हैं।अपनी सख्त पुलिसिया और प्रशासनिक छवि के इतर उन्होंने गीता की हजारों प्रतियां नोजवानों खासकर विद्यार्थियों में समारोहपूर्वक वितरित की हैं।वह लगातार अपने सरकारी दौरों के साथ स्थानीय स्कुलों, कॉलेजों एवं सिविल सोसाइटीज में जाकर सीधा संवाद करते है।गीता,गांधी और देशी गाय के दर्शन को सरल सुबोध ढंग से हस्तांतरित करने की कोशिश करते हैं।अंचल के लगभग सभी मठ मंदिरों के महात्माओं,पुजारियों,सन्यासियों को उन्होंने अपने इस सामाजिक बदलाब अभियान से सयुंक्त किया है।ग्वालियर के नजदीक रानीघाटी के जंगलों में व्रन्दावन नामक एक "गौ अभ्यारण्य "की नींव भी उन्होंने सरकार और जनभागीदारी से रखी है।अपने गृह जनपद बांदा में वह पहले से ही इस प्रकल्प पर बड़ा काम कर रहे है।देशी गाय के इजरायली मॉडल को वह मप्र एवं बुंदेलखंड के ग्रामीण जीवन मे स्थापित करना चाहते हैं।इसे वह ग्राम्य आर्थिकी का भी सशक्त हथियार मानते है।प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान में गौ पालन को वह महत्वपूर्ण कारक बताते है इसलिय गौ शाला के स्थान पर गौ अभ्यारण्य की उनकी अवधारणा आर्थिकी के जानकारों को भी भा रही है। रानी घाटी में प्रस्तावित गौ अभ्यारण्य करीब 500 एकड़ में बनने जा रहा है इसका आधार एक हनुमान मंदिर और मठ को बनाया गया है जिसका ऐतिहासिक सबन्ध राजा नल के साथ माना जाता है।

पिछले दिनों रामजन्म भूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास महाराज उनके सरकारी बंगले में आकर रुके थे जहां उनका विधिवत सम्मान समारोह भी राजाबाबू सिंह ने आयोजित किया था।अब जबकि अयोध्या में रामन्दिर का निर्माण आरम्भ हो रहा है ऐसे में भारतीय पुलिस सेवा के इस अफसर का मन भी सभी सांसारिक तटबंधों को तोड़कर उदात्त होना चाहता है।राम की व्याप्ति असल में है इतनी सशक्त होती है कि इंसान से सभी कृतिम आवरण को हटा देती है।कमोबेश मप्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजाबाबू सिंह के मन मस्तिष्क में राम मंदिर का प्रश्न एक निर्भीकता को भी अभिव्यक्ति दे रहा है।वह बांदा जिले में जन्मे है जो बाबा तुलसीदास की बोधिभूमि चित्रकूट क्षेत्र में ही आता है।"सियाराम में सब जग जानी"का आत्मभाव उस इलाके की मिट्टी में स्वतःस्फूर्त होना स्वाभाविक ही है।

वैसे भी सिविल सर्विस कोड ऑफ कंडक्ट किसी के अन्तःकरण की आजादी को कैसे अवरुद्ध रख सकता है इसलिए एक आला आईपीएस अफसर अगर अपने अन्तःकरण में राम या सनातन मनीषा को अपने लेकर धर्म (धर्म यानी कर्तव्य)पर टिका है तो इस पर किसी आपत्ति का कोई औचित्य नही टिकता है।जिस नए भारत के अभ्युदय का भरोसा राममंदिर शिलान्यास के साथ इस मुल्क में कायम हो रहा है असल में वह इसी आत्मगौरव की धरती पर साकार होना है।पिछले 70 साल भारत में मुगलिया और औपनिवेशिक बेताल का दौर था जिसे अफसरशाही से लेकर न्यायपालिका, एकेडेमिक्स, कला,राजनीति सबने कंगारू के बच्चों की तरह चिपका कर रखा है लेकिन नए भारत में स्वत्व,स्वत्वबोध, स्वाभिमान और आत्मविश्वास का पुनर्जागरण एक सुखद अहसास दिला रहा है।राजाबाबू सिंह अपनी कारसेवक वाली भूमिका को तार्किक आधार देते हुए कहते है कि "खुद के प्रति अभिमान और अन्य का सम्मान यही राम भाव है।हिंदुत्व प्रकृति में समाहित है वह प्रकृति का विजेता नही है"।राम और हिंदुत्व एक ही है इसलिए हमें गर्व के साथ राममय रहना चाहिये।

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