उत्तरायण : हर परिवर्तन नए लक्ष्य के रास्ते खोलता है

(प्रवीण कक्कड़)

Update: 2024-01-13 11:01 GMT

सूर्य के दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर परिवर्तन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। सूर्य का उत्तरायण होना हमें यह सीख देता है कि परिवर्तन ही प्रकृति का सबसे बड़ा नियम है और हमें स्वयं में परिवर्तन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। हर परिवर्तन नए लक्ष्य के रास्ते खोलता है। संक्रांति का सीधा संबंध सूर्य से है सूर्य यानी उजास रोशनी सकारात्मक और ऊंचाई। संक्रांति पर्व हमें सिखाता है कि हमारे लक्ष्य किस तरह उंचे और बड़े होना चाहिए। जिससे इन्हें हासिल करने के लिए हम मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़ सकें।

सूर्यदेव की अराधना, तिल-गुड़ खाने और पतंग उड़ाने के साथ ही मकर संक्रांति पर्व कई संदेश देता है, हमें परिवर्तन और प्रबंधन की कला सिखाता है। संक्रांति यानी सूर्य का उत्तरायण। जो हमें जीवन में सकारात्मकता लाने और प्रकाश की ओर बढ़ने का संकेत देता है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत की जाती है। तिल-गुड़ के संगम से संगठन की क्षमता, लोहड़ी की अग्नि में क्रोध और ईर्ष्या को जलाना और पतंगबाजी से जीवन में उल्लास लाने व खुशियां बांटने के संदेश मिलते हैं।

(लेखक : प्रवीण कक्कड़)

सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति कहा जाता है। देश के अधिकांश हिस्सों में इसे मकर संक्रांति ही कहा जाता है, वहीं इसकी पूर्व संध्या पर उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है। हर भारतीय त्यौहार का एक वैज्ञानिक महत्व है, हमारा हर पर्व रहन-सहन, खान-पान, फसलों व प्रकृति के परिवर्तनों पर आधारित है। हमारे पर्वों में जहां पौराणिक कथाओं का उल्लेख मिलता है, वहीं खगोलीय घटना, धरती के वातावरण, मनुष्य के मनोविज्ञान व सामाजिक कर्तव्यों की सीख भी परिलक्षित होती है। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार देखें तो मकर संक्रांति वर्ष का पहला पर्व है। सूर्य को ब्रह्मांड की आत्मा माना जाता है। मकर संक्रांति सूर्य देव की अराधना का पर्व है। उत्तर भारत में लोहड़ी तो दक्षिण भारत में पोंगल भी इसी दौरान मनाया जाता है।

चलिए अब बात करते हैं मकर संक्रांति के वैज्ञानिक महत्व और प्रबंधन को लेकर। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश परिवर्तन को दर्शाता है, हमें यह सीख देता है कि परिवर्तन ही प्रकृति का सबसे बड़ा नियम है और समय व परिस्थिति के साथ हमें स्वयं में परिवर्तन के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जीवन में जब भी कोई परिवर्तन होता है वह हमेशा नवाचार, सकारात्मक के साथ रचनात्मक का अवसर भी प्रदान करता है, तो सूर्य के उत्तरायण के साथ आप भी अपने जीवन में जो परिवर्तन करना चाहते हैं जो रचनात्मक करना चाहते हैं या जो बदलाव लाना चाहते हैं उसके लिए तैयार हो जाइए और लक्ष्य को साध कर उसकी और कदम बढ़ा दीजिए।

तिल-गुड़ सिखाता है संगठन के साथ मिठास

हमारे शास्त्रों के अनुसार तिल को सृष्टि का पहला अन्न माना गया है। इसलिए हमेशा हवन-पूजन में तिल का प्रयोग होता है। तिल में एंटीऑक्सिडेंट, कैल्शियम और कार्बोहाइड्रेट होता है, इसे पानी में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य लाभ होता है, वहीं इसके तेल की मालिश से त्वचा में चमक आती है। इसे गुड में मिलाकर खाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। गुड़ में मिले तिल के दाने हमें संगठन का संदेश देते हैं, वहीं गुड़ रिश्तों में मिठास की सीख देता है।

लोहड़ी में जला दीजिये अहंकार

इसी तरह लोहड़ी पर आग जलाकर जश्न मनाया जाता है, अग्नि को सबसे पवित्र माना जाता है, यह हमें संदेश देती है कि बैर, क्रोध, ईर्ष्या लालच और अहंकार जैसी भावनाओं को लोहड़ी की अग्नि में जला दिया जाए और इस आग की तरह गर्मजोशी से रिश्तों को निभाया जाए।

पतंगबाजी से भरिये जीवन में उल्लास

मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है, पतंगबाजी हमें जीवन में उल्लास सिखाती है, यह संदेश देती है कि किस तरह हम जीवन को रंगों से भर सकते हैं, वहीं पतंग की डोर हमें संदेश देती है कि उड़ान कितनी ही उंची हो, उसकी कमान हमेशा सही हाथ में होनी चाहिए, नहीं तो वह जीवन को भटका सकती है। बस अगर अपने त्यौहारों के पीछे छुपे इस फंडे को हम समझ गए तो त्यौहार हम सिर्फ परंपरा निभाने के लिए नहीं मनाएंगे बल्कि जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए भी मनाएंगे।

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