भारत राइजिंग ने मोदी युग पर लुटियंस गिरोह को दिखाया आइना
अरविन्द मिश्रा पुस्तक समीक्षा
वेबडेस्क। वर्तमान का निरपेक्ष व मूल्यांकन समृद्ध भविष्य के साथ इतिहास को भी भरोसे का आवरण देता है। भारतीय लोकतंत्र की सुंदरता सत्ता हो या विपक्ष उसके सटीक मूल्यांकन की परंपरा में निहित है। साल 2014 में भारतीय इतिहास ने जो करवट ली उसे सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखना उचित नहीं होगा। 21वीं सदी के दूसरे दशक से देश सामाजिक, लोकतांत्रिक एवं राजनय के क्षेत्र में धर्म के मूल तत्व सनातन के साथ कैसे आगे बढ़ रहा है, उसका राष्ट्र के जीवन पर क्या प्रभाव है, इसका तथ्यात्मक आकलन 'भारत राइजिंग धर्म, डेमोक्रेसी, डिप्लोमेसी' पुस्तक में किया गया है। वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक उत्पल कुमार द्वारा लिखी गई पुस्तक में भारत की यात्रा का सिर्फ एक दशक का विश्लेषण नहीं है, चल्कि यह राष्ट्र के रूप में उसकी प्राचीन एकात्मता के साथ धर्म, लोकतंत्र और राजनय के प्रमुख आयामों का सटीक आकलन प्रस्तुत करती है। पुस्तक ने भारत की एक दशक की यात्रा का सूक्ष्मता के साथ मूल्यांकन करने के लिए धर्म के साथ भारतीय लोकतंत्र की उदारता को केंद्र पर रखा है। पुस्तक ने तथ्यों के साथ स्वतंत्रता के आदोलन के बाद से अब तक की राजनीतिक व्यवस्था, उनकी विचारधारा तथा सियासी दलों की प्रतिबद्धताओं को परखा है।
किताब में बताया गया है कि कैसे आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऊपर वामपंथ के प्रभाव ने देश को विकास का एक ऐसा मॉडल दिया जो पाश्चात्य द्वारा थोपा गया और अव्यवहारिक था। पत्रकार और लेखक फांस्वा गोटियर के शब्दों में यह पुस्तक बताती है कि "भारत को भारत की दृष्टि से ही देखना होगा। बौद्धिक औपनिवेशिक मानसिकता में जकड़े लुटियंस के पश्चिम आधारित विमर्श को भी यह तोड़ती है। पूर्व विदेश सचिव कवल सिब्बल इस पुस्तक को लेकर लिखते है" यह पुस्तक भारत की संपन्न सांस्कृतिक विरासत की नींव पर वर्तमान चुनौतियों के बीच उसके पुनर्रत्थान की गाथा कहती है। प्रसिद्ध लेखक और कूटनीतिज्ञ पवन के चर्मा कहते हैं "भारत राइजिंग पुस्तक तथ्यात्मक, शोधपरक तथ्यों से पूर्ण होने के साथ भविष्य के भारत को लेकर सकारात्मक विमर्श की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है।
पुस्तक का पहला अध्याय अयोध्या से काशी तक एक ऐतिहासिक जागरण में देश को एक सूत्र में पिरोये रखने में प्राचीन मंदिरों के महत्व इंगित करता है। पिछले एक दशक से उन मंदिरों के पुनर्निर्माण से उनके प्राचीन गौरव को लौटाने का जो प्रयास किया जा रहा है, उसने देश में सांस्कृतिक पुर्जागरण का कार्य किया है। यह वह मंदिर हैं, जो विदेशी आक्रांताओं द्वारा कभी नष्ट किए गए बाद में मुस्लिम तुष्टिकरण की वजह से उपेक्षित रहे। किताब में लेखक कहते हैं " प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह निसंकोच हिंदू प्रतीक चिन्हों को धारण करते हैं, इसने बाधित सेवसुलरवाटी बेड़े को जहां वैचारिक रूप से झुलसाने का काम किया है।
पुस्तक में अपने दूसरे अध्याय में लेखक कहते हैं भारत के विकास की जड़े संपन्न ऐतिहासिक विरासत से सिंचित है। संविधान की मूल प्रति में भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के चित्र आवरण में प्रदर्शित किए गए थे। संविधान निर्माताओं की हिदुत्व और सनातन पर आस्था की ऐसी ही अभिव्यक्ति पीएम मोदी ने नये संसद भवन के उद्घाटन के समय सिगोल की स्थापना कर व्यक्त की।
पुस्तक का तीसरा अध्याय भारतीयता तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता के विरुद्ध सक्रिय शक्तियों की वैचारिक, जनसासिटयकी और मजहबी रणनीति को खुलासा करती है। पुस्तक का एक महत्वपूर्ण अध्याय हमारी रसोई तक दाखिल होते चीन की विस्तारवादी सोच को उजागर करती है। किताब के अन्य अध्याय में लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता समिद दलवाई द्वारा लिखी गई पुस्तक मुस्लिम पॉलिटिक्स इन सेक्युलर इंडिया के संदर्भ का उल्लेख है, यह संदर्भ पाकिस्तान
के मूल इस्लामिक चरित्र की कट्टरता को रेखांकित करता है. लेखक ने पुस्तक के अतिम अध्याय में विदेशी मीडिया न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर बीबीसी के भारत विरोधी प्रोपेगेंडा पत्रकारिता को बेनकाब किया है। पुस्तक को पाठकों तक पहुंचाने के लिए लेखक श्री उत्पल कुमार ने लगभग 500 लेख और पुस्तकों को संदर्भित किया है। भारत राइजिंग में प्रस्तुत अभिमत को दिया गया तथ्यों का यही आवरण, इसे भविष्य के भारत का तटस्थ बौद्धिक हस्तक्षेप बनाती है।