चापेकर बन्धुओ ने रानी विक्टोरिया के पुतले पर डामर पोता
(8 मई 899) पर चापेकर बंधु के किस्से
क्रान्तिवीर चापेकर बन्धुओं का त्याग कौन भुला सकता है। पुणे के फ्लेग कमिश्नर रैंड, ने फ्लेग पीडितों पर बहुत अत्याचार किए और महिलाओं के साथ ज्यादतियाँ भी की थी। देश की अस्मिता के लिए 22 जून 1897 को दामोदर हरि चापेकर, वासुदेव हरि चापेकर, बालकृष्ण हरि चापेकर अपने साथी महादेव रानडे, विनायक आपटे तथा खंडेराव साठे के साथ फ्लेग कमिश्नर वाल्टर रैंड और लेफ्टिनेंट चार्ल्स आयस्टर्स का वध कर सभी क्रान्तिवीरों ने फांसी का फंदा स्वीकार किया।
चाफेकर बन्धु बाल्य काल से ही व्यायाम और शस्त्र चलाने में माहिर थे। उनके पिता कीर्तन कर अपना घर चलाते थे और पिता के साथ तीनो भाई संगत करते थे। चापेकर बन्धु सनातनी होने के कारण, उनकी रगों में देशभक्ति और धर्म भक्ति कूट - कूट कर भरी हुई थी। 23 नवम्बर 1895 को 'सुधाकर' पत्र के सम्पादक वासुदेव पटवर्धन की इसलिए पिटाई की थी कि उसने हिन्दू धर्म की निंदा में एक लेख लिखा था। वैसे ही एक भारतीय ईसाई प्रचारक वेलनकर जो गरीब हिन्दुओ को लालच देकर ईसाई धर्म में परिवर्तन करवाते थे उसकी भी लोहे के बार से जमकर पिटाई कर दी थी। बाद में वेलनकर कभी हिंदुओ की बस्ती में दिखाई नही दिया। उस समय लोगो मे अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों पर अत्याचार और हिन्दू धर्म की निंदा करने पर, अंग्रेजों के विरुद्ध मन मे घृणा भरी हुई थी। लेकिन अंग्रेजों के विरुद्ध प्रकट रूप से कुछ कर नही पा रहे थे।
मुंबई में फोर्ट क्षेत्र में एस्प्लेनेड रोड के पास ब्रिटिश साम्राज्य की रानी विक्टोरिया का एक बड़ा पुतला लगा था। संगमरमर से बना यह 42 फूट का पुतला बड़ौदा के तात्कालीन महाराज खंडेराव गायकवाड़ ने अठ्ठारह हजार पाउंड खर्च कर बनवाया था। जेवरातों से सजी अंग्रेज साम्राज्य की रानी, गर्वोक्ति के साथ बैठकर भारतीयों को चिढ़ा रही है। इस पुतले को देखकर देशभक्त भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध ओर अधिक घृणा बढ़ जाती थी। चाफेकर बन्धुओं की इच्छा हो रही थी कि, उस पुतले को पत्थरों से मार कर ध्वस्त करे लेकिन पुलिस चौकी पास होने के कारण यह सम्भव नही था। लेकिन 16 अक्टूबर 1896 को दशहरे के दूसरे दिन चाफेकर बन्धुओ ने रात्रि के दो बजे टिन के एक डिब्बे में डामर और पूराने जूतो की माला बनाकर ले गए, पहले पुतले को डामर से नहलाया और बाद में जूतो की माला पहनाई और काम करके निकल चुपचाप निकल गए। दूसरे दिन अपने पराक्रम को देखने वे फिर गये थे और वहां का दृश्य देखकर उन्हें बहुत खुशी भी हुई। अंत तक पुलिस यह पता नही लगा पायी की यह किसने किया था।
चाफेकर द्वारा किया हुए इस यह कार्य से, उत्साहित हो कर 1909 में भी नागपुर में दामले तथा जोशी नामक दो देशभक्तों ने रानी के पुतले पर कालिख पोती थी। उसी वर्ष ऐसी घटना इलाहाबाद में भी हुई थी। 1942 में मुंबई के इसी पुतले की नाक किसी ने तोड़ दी थी। शोकांतिका क्रान्तिवीरों की। 22 जून 1897 को क्रान्तिवीर चापेकर बन्धुओ ने "गोंद्या आला रे" कहकर अंग्रेज फ्लैग अधिकारी रैण्ड और ऑयस्टर का वध किया यह हम सब जानते है। कुख्यात वाल्टर चार्ल्स रैण्ड कौन था? वाल्टर रैण्ड आय. सी. एस. अधिकारी था। वह 12-13 वर्ष भारत मे ही खासकर मुम्बई के आसपास रहा। पुणे में फ्लैग अधिकारी के पद पर आने के पहले वह सूरत में कलेक्टर था।
उसने 23 सितम्बर 1883 को मुम्बई से इंग्लैंड जाने के लिए विक्टोरिया जहाज से बुकिंग की थी लेकिन उसे ऑफिशियल सेलिंग ऑर्डर (sailing order) प्राप्त नही हुआ था। बाद में यह पत्र 26 सितम्बर को इंडिया ऑफिस को प्राप्त हुआ । रैण्ड और ऑयस्टर का वध 22 जून 1897 को होने के तीन माह के अंदर उन दोनों की पत्नियों को स्पेशल पेंशन की शुरुआत हुई थी। श्रीमती रैण्ड को 250 पोंड तथा उनके प्रत्येक पुत्रो को 21 पोंड पेंशन और श्रीमती ऑयस्टर की पत्नी को 150 पोंड और पुत्रो को 15 पोंड पेंशन मिलना प्रारम्भ हुई। दोनो अधिकारी ऑन ड्यूटी मारे गए थे, इसलिए बढी हुई विशेष पेंशन दी गयी थी। यह सभी पत्र ब्रिटिश लायब्रेरी में अधिकृत रूप से उपलब्ध है।
क्रान्तिवीर दामोदर चापेकर की पत्नी दुर्गाबाई ( जिनका नाम बहुत कम लोग जानते होंगे।) 1897 में दुर्गाबाई मात्र 17 वर्ष की थी और आगे का जीवन उन्होंने बहुत कठिनाइयों में जीया था। उनका निधन 1956 में हुआ था।1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ। स्वतंत्र भारत में वे 9 वर्षो तक जीवित रही। लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत मे न ही उन्हें कोई पेंशन अथवा स्वातंत्र्य सैनिक का ताम्रपत्र मिला। इस क्रान्तिवीर की विधवा पत्नी की भी स्थिति अन्य क्रांतिकारियों के परिवारों जैसी ही शोकांतिका की रही थी।
(क्योंकि यह माना गया कि भारत को स्वतंत्रता सिर्फ और सिर्फ "चरखा" और "गुलाब" के फूल से मिली थी।)
प्रखर राष्ट्रवादी क्रान्तिवीरो को नमन।
भारत माता की जय।वन्देमातरम। जय हिंद।
( लेखक - अभय मराठे, उज्जैन )