"दुर्गा पूजन" समस्त सात्विक शक्तियों के संगठित रूप का ही नाम
दशरथ उपाध्याय
समाज की सामुहिक शक्ति" दुर्गा" की आराधना से जीवन में किसी भी कार्य को संम्पन करने के लिये शक्ति की ही सर्व प्रथम आवश्यकता पड़ती है,अत:सब प्रकार की सफलता देने वाली इस शक्ति"दुर्गा "की आराधना वर्ष के प्रथम आठ दिन व चतुर्मास के पश्चात दशहरे के पूर्व आठ दिन तक छ:माह के अन्तराल से की जाती है। दुर्गा समस्त सात्विक शक्तियों के संगठित रूप का ही नाम है। हमारे ऋषियों ने शक्ति को माता के रूप में देखा है, अत:श्री दुर्गा समस्त मातृत्व का समष्टि रूप ,आदि मातृ शक्ति है। दुर्गा का अवतार राक्षसों " समाज विरोधी,मानव विरोधी दुष्कर्म करने वाले" का वध करने के लिये हुवा एसी कथा है। वे सदा दानवों का संहार करती है । और भक्तों पर माता जैसे पुत्र पर प्रेम प्रकट करती है उसी प्रकार प्रेम करती है।
सात्विक शक्ति का कितना सुन्दर वर्णन है कि एक-एक मनुष्य की सात्विकी शक्ति को एक सूत्र में पिरोकर उसके समष्टि रूप को प्रकट करने का प्रयत्न करना ही वास्तव में श्री दुर्गा की सच्चि पूजा है। और सारे समाज की इस एक भाव इकट्ठी शक्ति का समष्टि रूप ही इस तपस्या का अन्त है, यह होते ही राष्ट्र के जीवन में अपार शक्ति वाली "जिसके सहस्त्रों शीर्ष-हस्त-पाद होगे" सिंह वाहनी श्री दुर्गा का साक्षात् होता है और तब राष्ट्रों को कष्ट देने वाले अनेकों संकट रूपी राक्षसों को वह शक्ति नष्ट कर डालती है, ।और उसके संरक्षण में राष्ट्र में श्रेष्ठ जीवन उत्पन्न होता है। भारतीय विचारधारा के अनुसार प्रत्येक मनुष्य समाज का एक अभिन्न और क्रियाशील अंग है। उसका स्वत्न्त्र कोई अस्तित्व नहीं। इसी लिए ब्यक्ति के स्वतंत्र अस्तित्व को लेकर कभी विचार नहीं किया गया। प्रत्येक स्थान पर जितना भी विचार है हमारे सामुहिक तथा सामाजिक जीवन के नाते ही है । और व्यक्ति के जीवन पर भी जितना विचार है वह समाज के एक क्रियाशील अभिन्न अंग के नाते ही है, इसी लिये हमारे यहाँ " मैं " के स्थान पर" हम " शब्द का प्रयोग होता है। आठ दिन की शक्ति पूजा के पश्चात् नवमी को यह पूर्ण होति है।
ज्योतिष के हिसाब से नो का अंक अपने आप में पूर्ण होता है। इसके गुणक का योग नो ही रहेगा , इस कारण इसे ब्रह्मा का अंक भी माना है जो सर्व प्रकार से पूर्ण है। दूसरा भाव नवमी के पीछे यह भी है कि भगवान राम का जन्म नवमी के दिन होने से प्रत्येक माह की नवमी भारतीयों को भगवान श्रीराम के सम्पूर्ण सुख ,शान्ति ऐश्वर्य संम्पन राम राज जिसे भारतीय जीवन ने अनुभव किया है कि याद दिलाते है। माने हमने शक्ति की आराधना से सम्पूर्ण समाज की संगठित शक्ति का संचय तो किया पर उसका नेतृत्व किसके हाथ में हो इसके लिये भारतीय मनिषियों ने सदा के लिये राष्ट्र को अपना नेता स्विकार करने का मानो मार्ग हमें बता दिया है, जो समाज के सभी पुरूषों में उत्तम अर्थात पुरूषोंतम ब्यक्ति ही राष्ट्र का नेतृत्व करने वाला नेता होना चाहिए। प्रत्येक काल में जो पुरुषोत्तम हो उसी के हाथ में राष्ट्र की बाग़डोर हो और समाज की संगठित शक्ति पर उसका अधिकार हो। राष्ट्र पर सारे संकट अयोग्य व्यक्ति के हाथ में नेतृत्व होने पर ही आते है , इसलिये समाज को संगठित शक्ति की आराधना करने पर उपदेश देते समय भारतीय दार्शनिकों नें योग्य नेतृत्व का आदर्श तथा कसौटी उपस्थित कर बहुत बड़ी समझदारी व उपकार का कार्य किया है।
भगवान राम ने समाज की सर्वमान्य मर्यादाओं का पालन करते हुए साधारण वनवासी व्यक्तियों को संगठित कर उनकी संगठित शक्ति के सहारे अत्याचार का नाश किया। नवमी के दूसरे दिन दशहरा मनाने की प्रथा आज भी इस बात की साक्षी है कि राक्षस राज रावण के आतंक से त्रस्त समाज को किस प्रकार संगठन के आधार पर मुक्ति दिलाई जा सकति है। इसलिए कहा भी है"संघे शक्ति युगे -युगे "अत:आज समाज को संगठित करना परम् आवश्यक हो गया है। अगर यह कार्य हमने कर लिया तो दुर्गा की सच्ची पूजा होगी फिर राष्ट्र के अन्दर जो -जो भी संकट या समस्याये होगी स्वत:ही दूर हो निर्मूल हो जायेगी । किसी भी देवी देवता के चित्र पर दो चार पुष्प या अक्षत चढ़ा देने मात्र से ही पूजा की इतिश्री नहीं समझ लेनी चाहिए । अपितु पूजा का फल तो समाज और राष्ट्र में एकात्मता का भाव पैदा होने से ही प्राप्त होगा । इसी के लिए प्रयत्न करना चाहिए। मॉ दुर्गा हमें इस कार्य के करने में शक्ति व सामर्थ्य प्रदान करें। सर्व मंगल मांगल्ये ,शिवे सर्वारथ साधिके। शरण्ये त्रियम्बके गौरी,नारायणीनमस्तुते ।। सार्वजनिक दुर्गा पूजा की प्रथा भी ईसी सोच का अभिप्राय है।
- लेखक वरिष्ठ चिंतक हैं।