Politics : गठबंधन धर्म छोड़ फिर अलग हुए ‘यूपी के दो लडक़े’
उप्र की सीमा से सटी कुछ सीटों पर है सपा का प्रभाव
- पिछली बार सपा के कारण दस सीटें हारी थी कांग्रेस
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच 2018 के चुनाव की तरह ही एक बार फिर कांटे की टक्कर होने वाली है। एक के बाद एक आ रहे सर्वे भी यही इशारा कर रहे हैं। पिछले चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच मात्र पांच सीटों का अंतर था। भाजपा को 109 तो कांगे्रस को 114 सीटें मिली थीं। इस बार भी दोनों दलों के बीच एक-एक सीट की लड़ाई है। यही कारण रहा कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के बाद भी कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ एक भी सीट पर समझौता नहीं किया। ऐसे में सपा-बसपा की वजह से कुछ सीटों पर त्रिकोणीय तो कुछ सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबले देखने को मिल सकते हैं। पिछली बार सपा का वोट शेयर भले ही लगभग एक प्रतिशत था, लेकिन उसने लगभग 10 से 12 सीटों पर चुनाव परिणाम प्रभावित किया था और इसी कारण कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से पिछड़ गई थी।
2017 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव तो सभी को याद होगा ही। यह चुनाव समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था। इस चुनाव में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी काफी चर्चा में रही। दोनों युवा नेताओं के फोटो के साथ उत्तर प्रदेश के गांवों, कस्बों, शहरों से लेकर मथुरा-वृंदावन की कुंज गलियों तक जो होर्डिंग लगाए गए थे उनमें राहुल-अखिलेश को ‘यूपी के लडक़े’ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘बाहरी’ बताया गया था। राहुल-अखिलेश दोनों के फोटो के ठीक ऊपर स्लोगन लिखा गया था ‘यूपी को ये साथ पसंद है।’ हालांकि जब चुनाव परिणाम आए तो पता चला कि यूपी को यह साथ कतईं पसंद नहीं है। 2018 में जब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की बारी आई तो कांग्रेस ने सपा को ठेंगा दिखा दिया। इसके चलते सपा और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़े। 2023 में तमाम विपक्षी दलों को मिलाकर आईएनडीआईए गठबंधन बना तो अखिलेश यादव को उम्मीद जगी कि इस बार कांग्रेस मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कम से कम आठ सीटें जरूर देगी, लेकिन इस बार भी कांग्रेस सुई की नोंक के बराबर भी जगह देने को तैयार नहीं हुई। इसको लेकर दोनों ओर से खूब शब्दबाण चले। जब तक गठबंधन के नेताओं ने हस्तक्षेप किया तब तक अखिलेश यादव लगभग 70 प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुके थे। अब सपा-कांग्रेस फिर से आमने-सामने हैं।
बात मध्य प्रदेश में सपा के प्रभाव की करें तो उसका असर भाजपा-कांग्रेस जितना तो नहीं है, लेकिन बसपा के बाद सपा चौथी ताकत जरूर है। 2018 के चुनाव में सपा ने लगभग दस सीटों पर कांग्रेस के चुनावी समीकरण बिगाड़े थे। सपा ने 52 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से एक बिजावर सीट से जीत दर्ज की थी। पांच सीटों पर दूसरे और चार सीटों पर तीसरे नम्बर रही थी जबकि तीन सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के बीच हार-जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल किए थे। सपा जिन पांच सीटों पर दूसरे नम्बर पर रही उनमें से चार पर भाजपा को विजय मिली थी जबकि केवल एक पृथ्वीपुर सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मैहर सीट कांग्रेस लगभग तीन हजार मतों से हारी थी जबकि सपा को इस सीट पर लगभग 11 हजार वोट मिले थे।
उप्र की सीमा से सटी कुछ सीटों पर है सपा का प्रभाव
मध्य प्रदेश की लगभग 185 किलोमीटर सीमा उत्तर प्रदेश से लगती है। जहां यादव मतदाता लगभग 12 से 14 प्रतिशत बताए जाते हैं। इसके चलते बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल की कुछ सीटों पर सपा का प्रभाव है। सपा ने मध्य प्रदेश में 2003 के चुनाव में सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। इस चुनाव में छतरपुर, चांदला, मैहर, गोपदबनास, सिंगरौली, पिपरिया, मुल्ताई से सपा के सात विधायक चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे। छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला चुनाव था जिसमें सपा का वोट शेयर 5.26 प्रतिशत था। इससे पहले 1998 में सपा ने रौन, दतिया, चांदला, पवई चार सीटों पर जीत हासिल की थी। यह अविभाज्य मध्यप्रदेश का आखिरी चुनाव था। तब मध्यप्रदेश में विधानसभा की कुल 320 सीटें थीं। 2008 के चुनाव में सपा ने 187 प्रत्याशी उतारे थे। जिनमें केवल निवाड़ी से मीरा यादव चुनाव जीतने में सफल हुई थीं जबकि 183 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी और वोट शेयर 2.46 प्रतिशत था। 2013 में सपा ने 164 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे लेकिन इस चुनाव में सपा का खाता नहीं खुला। 161 प्रत्याशी जमानत गंवा बैठे और वोट शेयर 1.70 प्रतिशत था।