कमलनाथ को भाजपा में क्यों नहीं मिला कोई नाथ!
कैलाश विजयवर्गीय तो खुलेआम कह चुके थे कि कमलनाथ के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हैं।
नईदिल्ली/विशेष प्रतिनिधि। कमलनाथ के भाजपा में जाने फिर न जाने के प्रहसन के गहरे राजनीतिक औऱ वैचारिक निहितार्थ भी हैं। बेशक कमलनाथ जैसे बड़े कद के नेता को भाजपा ने इस प्रकरण के सहारे राजनैतिक रूप में अविश्वनीयता के कटघरे में खड़ा कर दिया हो लेकिन सवाल भाजपा की ओर भी उछल रहे हैं जिनका जवाब पार्टी को संभवत: मिल ही गया होगा। अजेय कहे जाने वाले छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा को इस पूरे घटनाक्रम से मनोवैज्ञानिक रूप में बढ़त मिलेगी। वहीं दो दिन तक जो घटनाएं कमलनाथ को लेकर घटित हुर्इं उसने कमलनाथ की निष्ठा और राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए। उनके समर्थक विधायक, पूर्व विधायकों का अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर कांग्रेस के सिंबल हटाना, पूर्व मंत्री सज्जन वर्मा का यह कहना कि 100 प्रतिशत कमलनाथ भाजपा में जा रहे हैं। दिल्ली बंगले पर कांग्रेस के झंडे की जगह भगवा ध्वज का चढ़ाया जाना फिर उतारा जाना असल में कमलनाथ की राजनैतिक विश्वसनीयता को रसातल में ले जाने वाला घटनाक्रम रहा है।
अब सवाल भाजपा से भी बनता है कि एक ऐसे राज्य में जहां उसे प्रचंड बहुमत मिला हो वहां कमलनाथ की उसे क्या वाकई जरूरत थी? जमीनी सच्चाई यह है कि कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे में मनोवैज्ञानिक रूप से यह भले कारगर लगता हो लेकिन राजनीतिक रूप से इसकी आवश्यकता मप्र भाजपा को नहीं थी। कैलाश विजयवर्गीय तो खुलेआम कह चुके थे कि कमलनाथ के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हैं। इधर, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी किसी सूरत में नहीं चाहते होंगे कि जिन कमलनाथ को अपदस्थ करके वह भाजपा के हमराही बने वह कमलनाथ भाजपा में आएं।
प्रदेश नेतृत्व की भावनाओं को भी आलाकमान ने इस मामले में बखूबी समझने की कोशिशें की, नतीजतन कमलनाथ को भाजपा में कोई नाथ नही मिला। दूसरा, तेजेन्द्र बग्गा सरीखे सिख नेताओं ने भी जिस तरह सिख दंगों के मुद्दे को उठाया उसके मद्देनजर पार्टी को पंजाब की परिस्थितियों का भान भी हुआ ही होगा। समानान्तर रूप से भाजपा कैडर में भी इसे लेकर नाराजगी का भाव था, यह सर्वविदित ही है कि भाजपा का मूल पिंड से जुड़ा कैडर ही उसकी असल पूंजी है औऱ उसके लिए कमलनाथ कभी मन से स्वीकार्य ं हो सकते हैं। बेशक भाजपा के अखिल भारतीय विस्तार में दीगर दलों से आए नेताओं का योगदान भी है लेकिन यह भी याद रखना होगा कि हर कोई हिमंता विश्व शर्मा जैसे उपयोगी नहीं हो सकता है न ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह राजनीतिक पराक्रम दिखाकर कोई फायदा देने की स्थिति में है। इसलिए इस पूरे प्रकरण को भाजपा कैडर के लिए एक शुभ संकेत ही माना जाना चाहिए।