भगवान परशुराम ने स्थापित किया समयानुकूल उत्कृष्ट आचरण का आदर्श
माधवशरण द्विवेदी
वेबडेस्क। हिन्दू संस्कृति में जिन दशावतारों का वर्णन है उनमें से छटवॉ अवतार भगवान श्री परशुराम जी के जन्म दिन के रूप में भी अक्षय तृतीया को सारे देश में मनाया जाता है। अक्षय का अर्थ है जिसका कभी नाश न हो स्थायी वही रह सकता है। जो सर्वदा सत्य हो। सत्य केवल परमात्मा है श्री परशुराम जी ही अक्षय है और आज भी जीवित है। युग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से होता है युग का परिवर्तन हमेशा अक्षय तृतीया पर होता है सृष्टि के प्रारंभ से आज तक 7 लोग अश्वत्थामा, बलि, ब्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य तथा परशुराम ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने शरीर का त्याग नहीं किया है हैहयवंश का क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन ने अनेको प्रकार की सेवा सुश्रुषा करके भगवान दत्तात्रेय जी को प्रसन्न करके उनसे एक हजार भुजायें, शारीरिक बल, अतुल सम्पत्ति प्राप्त कर लिये थे।
सहस्त्रार्जुन शक्ति समपन्न होकर प्रभुता के मद में देवताओं और ऋषियों पर अत्याचार करता था। सम्पूर्ण पृथ्वी क्षत्रिय, सहस्त्रार्जुन और उसके दस हजार अत्याचारी पुत्रों के अत्याचार से त्रस्त थी पीडित पृथ्वी तथा ऋषियों ने भगवान विष्णु से सहस्त्रार्जुन को रोकने के लिये प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ने जमदग्नि के पुत्र के रूप में माता रेणुका के गर्भ से परशुराम जी के रूप में जन्म लिया। मध्यकाल के सूर्य की प्रचण्ड किरणों जैसी आभा वाले भगवान श्री परशुराम शंकर के परम शिष्य है जिनके विशाल वक्षस्थल पर यज्ञोपवीत शोभायमान है और कांधों पर शत्रु विनाशक धनुष एवं तरकश सुशोभित है वे अपने एक हाथ में शास्त्र एवं दूसरे हाथ में शस्त्र के रूप में अत्यंत तीक्ष्ण धार वाला परशु (फरसा) लिये हुये हैं।
भगवान परशुराम ने श्रीराम को विष्णु धनुष प्रदान किया जिससे वह रावण जैसे आतातायी का संहार कर सकें। भगवान कृष्ण को सुदर्शन चक्र भी श्री परशुराम जी द्वारा प्रदत्त है अस्त्रविद्या आशुतोष महादेव ने सिखाई और परशु विद्या श्री गणेश ने परशुराम जी से सत्य की रक्षा के लिये क्रोध आवश्यक है बाली और रावण के विनाश में यही नीति राम के काम आयी थी। परशुराम की ब्रह्म निष्ठ वीरता का संदेश कृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिया। भगवान कृष्ण भी जरासंघ के भय से भगवान परशुराम की शरण में गये। ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में प्रमुख महर्षि भृगू के चार पुत्र धाता, विधाता, च्यवन और शुक्राचार्य तथा पुत्री लक्ष्मी हुई। च्यवन के पुत्र मौर्य तथा मौर्य के पुत्र ऋचीक हुए महर्षि जमदग्नि इन्हीं ऋचीक के पुत्र थे इनका विवाह महाराजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से हुआ था। माता रेणुका ने पांच पुत्रों को जन्म दिया था जिनके नाम रूमणमान, सुषेण, बसु, विश्वावसु तिा राम रखे गए।
राम यानी परशुधारी राम जब विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार लिया तो लक्ष्मी पृथ्वी के रूप में उनके साथ रही। तेजस्वी परशुराम यज्ञोपवीत संस्कार के बाद शिवजी की अर्चना के लिये हिमालय में अलकनंदा गंगा के किनारे चले गए। शिव ने प्रसन्न होकर शस्त्र, शास्त्र में पारंगत होकर सदा विजयी होने का आर्शीवाद दिया शंकर जी ने उन्हें अस्त्र, शस्त्रों का प्रयोग संहार-उपसंहार की विधि मंत्र सहित प्रदान की। विजया नामक धनुष, अभेद्य कवच अश्वों से युक्त रथ, अक्षय तरकश देते हुये कहॉ ''इससे युद्ध भूमि में तुम्हारी पराजय कदापि संभव नही इच्छानुसार तुम्हारी शक्ति की वुद्धि होती रहेगी'' भीष्म, द्रोण व कर्ण ने भी शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण परशुराम जी से लिया था
परशुराम जी किसी जाति के विरोधी नही थी। बल्कि वह असत्य और दुर्गुणो के विरोधी थे। यही कारण था की जब कर्ण के जाति संबंधी असत्य के बारे में जानकारी मिली तो उन्होने उसे श्राप दिया कि ''यह विद्या तुम अपने संकट काल में भुल जाओगे और महाभारत के समय में ऐसा हुआ भी था। भगवान राम के द्वारा सीता स्वयंवर के समय धनुष तोडा गया तब भगवान परशुराम क्रोध में इसलिये प्रगट हुये क्योंकि यह धनुष स्वंय परशुराम द्वारा त्यागा गया शिवजी का धनुष था। जनक की सभा में राम के सत्य को पहचानते ही धनुष तोडने वाले राम से भेंट के उपरांत उन्होंने अपना फरसा भी त्याग कर तपस्या में लीन हो गये। अपने जीवन में उन्होंने केवल राम का ही लोहा माना।
क्षत्रिय राजा सहस्त्रार्जुन मद में अंधा होकर एक बार वह महर्षि जगदग्नि के आश्रम में आया और उनकी कामधेनु छीनकर अपने साथ ले गया क्रोधित जमदग्नि ने राजा सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया और कामधेनु लेकर वापिस आ गये। प्रतिकार स्वरूप सहस्तत्रार्जुन के दस हजार पुत्रों ने जमदग्नि की हत्या कर दी थी। परशुराम ने प्रतिकार स्वरूप राजा सहस्त्रार्जुन के दस हजार पुत्रों की हत्या कर दी थी। इस क्रम में उन्होंने 21 बार शत्रुओं से युद्ध किया। परशुराम जी ने आतातायी राजाओं को मारकर जो पृथ्वी जीती थी उसे ऋषि कश्यप को दान में दे दी और स्वंय महेन्द्र पर्वत पर चले गये। परशुराम ने ब्रहम्मणों तथा सभी जातियों, धर्मों के लोगों को यह शिक्षा दी थी। ''शास्त्रों के अध्ययन के साथ स्वाभिमान की रक्षा और देत्यों के दमन के लिये शस्त्र उठाने का साहस भी स्वंय में पैदा करना होगा'' भगवान परशुराम ने समयानुकूल उत्कृष्ट आचरण का आदर्श स्थापित किया वह युगो-युगों तक मानव मात्र को प्रेरणा देता रहेगा।