अन्याय की खिलाफत और आत्मनिर्भरता के प्रणेता थे भगवान परशुरामजी

राघवेन्द्र शर्मा

Update: 2024-05-09 17:15 GMT

वेबडेस्क।  भगवान परशुराम जी देश के लिए एक ऐसा आदर्श व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने इस धरती पर सजग, संवेदनशील, जागरूक नागरिक धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए समाज के संचालकों के परीक्षण और मूल्यांकन की जिम्मेदारी अपने हिस्से ले रखी थी। न्याय के प्रति उनका समर्पण इतना प्रबल था कि उन्होंने हमेशा अन्यायी को खुद ही दण्डित किया। कोई युद्ध कभी उन्होंने सेना बनाकर नहीं लड़ा। वे हमेशा 'वन मैन आर्मी' रहे। अन्याय के प्रतिकार के लिए और उसके विरुद्ध संघर्ष के लिए वे अकेले ही पर्याप्त थे। भगवान परशुराम जी ने सिर्फ सीखने-सिखाने या दिखावे के लिए हथियार नहीं उठाए, बल्कि हथियारों का अविष्कार ही उन्होंने इसलिए किया ताकि समाज से अन्याय को मिटाया जा सके और 'न्याय' की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। 'न्याय' की स्थापना के लिए जीवन में यदि अकेले खड़े रहकर भी संघर्ष करना पड़े तो भी उस संघर्ष को अपने जीवन में सजग-संवेदनशील नागरिक होने का धर्म निभाकर किया जाना चाहिए, यह भगवान परशुराम जी के जीवन की हम सबके लिए प्रेरणा है।

भगवान परशुराम जी के जीवन चरित्र का एक प्रेरित कर देने वाला पहलू रामायण के माध्यम से हम सबकी स्मृतियों में है- उनका सिर जो कभी किसी के आगे नहीं झुका, वे भगवान राम की महानता के आगे अपना सिर झुका देते हैं। सीता स्वयंवर में भगवान राम के शिव-धनुष तोड़ देने के बाद 'परशुराम जी जब क्रोधित होकर विदेहराज जनक की राजसभा में पहुँचे और वहाँ जैसे ही उन्हें भगवान राम के शौर्य, पराक्रम और धर्मनिष्ठा का बोध हुआ और वे आश्वस्त हो गए कि अब इस धरती को योग्य क्षत्रिय कुलभूषण प्राप्त हो गया है तो उन्होंने स्वत: दिव्य परशु सहित अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र भगवान राम को सौंप दिए और महेन्द्र पर्वत पर तपस्या करने चले गये। यह प्रसंग परशुराम जी की महानता को रेखांकित करता है।

देश और समाज के लिए परशुराम जी के देय का फलक बेहद व्यापक है। देश में शस्त्र विद्या के सबसे बड़े ज्ञाता, अनुसंधानकर्ता और प्रयोक्ता परशुराम जी रहे हैं। उन्होंने संसार को भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे विश्वविख्यात योद्धा दिए। उन्होंने दक्षिण में समुद्र से भूमि छीनकर भारत को केरल जैसा उपहार दिया। केरल का समुद्र से रिक्लेमेशन परशुराम जी ने ही किया था और वे ही केरल के संस्थापक अवतार हैं। केरल और कोंकण शास्त्रों में परशुराम क्षेत्र के रूप में वर्णित हैं। केरल में आज भी पुरोहित वर्ग संकल्प मंत्र में परशुराम क्षेत्र का उच्चारण कर उस समूचे क्षेत्र को भगवान परशुराम की धरती की मान्यता देता है। यहाँ 108 परशुराम संस्थापित मंदिर हैं। प्रसिद्ध नम्बूदरीपाद ब्राह्मण केरल को परशुराम जी की देन है। कन्याकुमारी और रामेश्वरम की स्थापना परशुराम जी ने ही की थी। उन्होंने जिस स्थान पर तपस्या की वह स्थान आज तिरुअनंतपुरम के नाम से जाना जाता है। केरल में कलारीपयट्टू के रूप में दुनिया के पहले मार्शल आर्ट स्कूल की स्थापना भगवान परशुराम जी ने की, जो भविष्य में बोधिधर्मन के माध्यम से आधुनिक शाओलिन टेम्पल का आधार बनती है। भगवान अयप्पा की मूर्ति का निर्माण भी परशुराम जी ने ही किया था। कांवड़ यात्रा का शुभारंभ परशुराम जी ने किया था। अंत्योदय की बुनियाद भी इस देश में परशुराम जी ने ही रखी थी। समाज सुधार और समाज के शोषित-पीड़ित वर्ग को कृषि-कर्म से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भरता का मूलमंत्र पढ़ाने में भी परशुराम जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जिस तरह देवनदी गंगा को धरती पर लाने का श्रेय राजा भगीरथ को जाता है, ठीक उसी तरह पहले ब्रह्मकुंड (परशुराम कुंड) से और फिर लौहकुंड (प्रभु कुठार) पर हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को धरती पर लाने का श्रेय परशुराम जी को जाता है। गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को भी वे अपने पिता महर्षि जमदग्नि की आज्ञा से इस धरा पर लाये थे। भगवान परशुराम जी का समूचा जीवन अनुपम प्रेरणाओं और उपलब्धियों से भरा हुआ है।सजग-संवेदनशील नागरिक होने का धर्म निभाने का संकल्प,न्याय के प्रति समर्पण का भाव हम सभी के मन में और अधिक प्रबल हो, सशक्त हो यही भगवान परशुराम जी की पावन जयंती अक्षय तृतीया का संदेश है।

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