कोरोना की एक नई प्रजाति स्ट्रेन के खतरनाक स्वरूप में उभरने की आशंका ने दुनिया में नया तनाव एवं चिन्ताएं पैदा कर दी है। चिंता इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि महामारी की इस कथित नई किस्म के ज्यादा तेजी से फैलने की आशंकाएं की जा रही है। प्रश्न है कि क्या स्ट्रेन को लेकर की जा रही आशंकाएं, चिन्ताएं, दहशत तनाव की स्थितियां वास्तविक है या कोरी काल्पनिक है। जो भी स्थिति हो, दुनिया को पूरी तरह सर्तकता एवं सावधानी बरतने की जरूरत है। जिस तरह हमने कोरोना महामारी से संघर्ष करते हुए उसे परास्त किया, ठीक उसी तरह कोरोना के नये स्वरूप स्ट्रेन को भी पूरे मनोबल, धैर्य, संकल्प एवं संयम से हराना होगा, कहीं हमारा भय, तनाव एवं कपोल-कल्पनाएं इस महामारी के बढ़ने का कारण न बन जाये।
स्ट्रेन के खतरनाक स्वरूप में उभरने की आशंका के सामने आने के बाद सबसे पहले तो यूरोप ने खुद को ब्रिटेन से अलग कर लिया है। भारत सहित फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, इटली, तुर्की, कनाडा और इजराइल भी ब्रिटेन आने जाने वाली उड़ानों पर रोक लगा चुके हैं। स्वाभाविक है, दुनिया का कोई भी देश महामारी की किसी नई किस्म स्ट्रेन को अपने यहां कतई स्वीकार नहीं करेगा। इस परिदृृश्य में भारत जैसे विशाल देश की चिंता भी वाजिब है, क्योंकि भारत का ब्रिटेन से गहरा जुड़ाव रहा है। दोनों देशों के बीच यातायात भी खूब है, भारत की बड़ी आबादी ब्रिटेन में रहती है, इसलिये भारत सहित दुनिया में कोरोना के इस नये रूप को लेकर दहशत एवं तनाव का होना स्वाभाविक है। भारत ने ब्रिटेन से आने वाली विमान सेवाओं पर 31 दिसंबर तक के लिए रोक भी लगा दी है। हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि ये काल्पनिक स्थितियां है, काल्पनिक बातें हैं, ये काल्पनिक चिन्ताएं हैं। अपने आपको इनसे दूर रखें। भारत सरकार हर चीज के बारे में पूरी तरह जागरूक है। हमने बीत एक साल में बहुत कुछ सीखा है।' लेकिन खतरे की आहट को गंभीरता से लेना, समझदारी है।
ब्रिटिश सरकार ने चेतावनी दी थी कि वायरस का नया स्ट्रेन नियंत्रण से बाहर है। यह मौजूदा कोरोना वायरस से 70 फीसदी ज्यादा तेजी से फैलता है। लंदन और दक्षिण इंग्लैंड में तेजी से बढ़ते मामलों के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने संक्रमण की दर बढ़ने को लेकर सख्त पाबंदियों के साथ अब तक का सबसे कड़ा लॉकडाउन लगाने का फैसला किया था। लेकिन स्ट्रेन ज्यादा घातक है, इसके सबूत अभी नहीं मिले हैं। फिर भी ब्रिटेन से वायरस के इस नए स्ट्रेन को आने से रोकने के लिए समूची दुनिया के देशों में व्यापक हलचल देखने को मिल रही है, इसी कारण विभिन्न संभावनाओं पर चर्चाएं हो रही है, कहते हैं दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है, वाली स्थिति बनना स्वाभाविक है, समझदारी है।
भारत में भी चिंता के स्तर को इस बात से समझा जा सकता है कि इस नए संकट से निपटने के तरीकों पर विचार के लिए ज्वॉइंट मॉनिर्टिंरग ग्रुप की बैठक बुलानी पड़ी है। दुनिया और भारत के शेयर बाजारों पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है। बड़ा प्रश्न तो यह है कि क्या वाकई ब्रिटेन में नए किस्म के कोरोना ने हमला बोल दिया है? वैज्ञानिकों को इसकी तह में जाना चाहिए, यह महज महामारी के कुछ लक्षणों में वृद्धि का मामला है या वायरस ने कोई नया रूप ले लिया है? ब्रिटेन भले ही लॉकडाउन की मुद्रा में है, लेकिन दुनिया का कोई देश अब लॉकडाउन नहीं चाहेगा, और भारत की सरकार तो किसी भी सूरत में नहीं। ब्रिटेन तुलनात्मक रूप से एक छोटा देश है, वहां की कुल आबादी सात करोड़ भी नहीं है, लेकिन भारत तो आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे घनी आबादी का देश है। अतः भारत को हर हाल में ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। केंद्र सरकार अगर सतर्क है, तो इसका सीधा अर्थ है, हवाई अड्डों पर निगरानी चैकस होगी। याद रखना चाहिए, भारत में कोरोना विदेश से ही आया और शुरुआत में हवाई अड्डों पर ढिलाई बरती गई थी, इसलिए अब तो यूरोप से आने वाली फ्लाइटों पर रोक लगाने का निर्णय समयोचित है। व्यापक प्रयत्नों के बाद भारत में पिछले कुछ महिनों से न केवल कोरोना संक्रमण घट रहा है, बल्कि जान गंवाने वालों की संख्या भी घटी है। हम कह सकते हैं कि हमारे यहां संक्रमण काबू में आ रहा है, ऐसे में, भारत को किसी भी देश से आने वाले नये खतरे के प्रति बहुत सावधान रहना ही चाहिए।
इस बिन्दु पर सोच उभरती है कि हम दायें जाएं चाहे बायें, अगर आने वाले संकट से बचना है तो दृढ़ मनोबल चाहिए। गीता से लेकर जितने ग्रंथ हैं वे सभी हमें यही कहते हैं कि "मनोबल" ही वह शक्ति है जो ऐसे संकटों से बचाते हुए व्यक्ति को सुरक्षित जीवन के लक्ष्य तक पहुंचाती है। घुटने टेके हुए व्यक्ति को हाथ पकड़ कर उठा देती है। अंधेरे में रोशनी दिखाती है। विपरीत स्थिति में भी मनुष्य को कायम रखती है। वरना हम तनाव, भय, आशंका एवं दहशत के चक्कर में मनोबल जुटाने के बहाने और कमजोर हो जाते हैं। दृढ़ मनोबली के निश्चय के सामने किस तरह कोरोना महामारी झुकी है, जानलेवा बाधाएं हटी हैं, कोरोना से उपरत होते हुए हमने देखा है। जब कोई मनुष्य समझता है कि वह किसी काम को नहीं कर सकता तो संसार का कोई भी दार्शनिक सिद्धांत ऐसा नहीं, जिसकी सहायता से वह उस काम को कर सके। यह स्वीकृत सत्य है कि दृढ़ मनोबल से जितने कार्य पूरे होते हैं उतने अन्य किसी मानवीय गुणों से नहीं होते। इसलिये स्ट्रेन को न केवल भारत बल्कि समूची दुनिया परास्त करेंगी। इसके लिये सरकारी प्रयत्नों, पाबंदियों एवं चिकित्सीय उपक्रमों के साथ-साथ मनोबल कायम रखना होगा, संयम बरतना होगा। संयम का अर्थ त्याग नहीं है। संयम का अर्थ है मनोबल का विकास। संकल्प शक्ति का विकास। संयम नहीं, संकल्प नहीं, मनोबल नहीं, तो जीवन क्या है? मात्र बुझी हुई राख है। फिर तो वह मृत्युमय जीवन है, भयभीत जीवन है। हमें भय एवं आशंकाओं से बाहर आना ही होगा।
गांव की एक सुनसान गली। रात का सन्नाटा। एक व्यक्ति अपने घर लौट रहा है। गली में कुत्ता भौंकता है। मनुष्य डर जाता है। कुत्ते के काट खाने की कल्पना मात्र से ही भयभीत हो जाता है। उसे अकेले में कुछ नहीं सूझता। एक पत्थर उठा लेता है। हथेली में मजबूती से पकड़ कर धीरे-धीरे आगे बढ़ता है और भौंकते कुत्ते के पास से गुजर कर घर पहुंच जाता है।
यह पत्थर ही तो है - मनोबल, संकल्प, संयम, जिसके सहारे कोरोना के नये संस्करण स्ट्रेन को पार किया जा सकता है।